लोकतंत्र के लिए नहीं लूटतंत्र के लिए है सारी कवायद?

इस साधारण सी लगने वाली ख़बर के बड़े गहरे मायने निकलते हैं कि 8 राज्य सरकारों द्वारा सामान्य स्वीकृति वापस लिए जाने के कारण सीबीआई भ्रष्टाचार एवं धोखाधड़ी घोटालों के आरोपितों के विरुद्ध कार्यवाही नहीं कर पा रही हैं। सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि बैंक धोखाधड़ी, आय से अधिक संपत्तियों अथवा भ्रष्टाचार-कदाचार के संगीन मामलों में सीबीआई को राज्य सरकारों से सामान्य स्वीकृति (जनरल कंसेंट) लेनी पड़ती है, तब कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ती है। केंद्रीय जांच एजेंसी के समक्ष बड़े बैंक घोटालों तथा गंभीर प्रकृति के 50 हजार करोड़ रुपये के घोटालों के मामले हैं जिन पर वे कार्यवाही करने में नाकाम हो रही है क्योंकि महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मिजोरम, केरल, राजस्थान, झारखंड, पंजाब सरकारों ने भ्रष्टाचारियों घोटालेबाजों के विरुद्ध कार्यवाही करने की जो सामान्य स्वीकृतियां दी थी, वे वापस ले ली गई है। महाराष्ट्र सरकार ने तो बची-खुची स्वीकृतियां अगस्त मास में भी वापस ली हैं। सीबीआई ने बड़े बैंक घोटालों, गंभीर वित्तीय अनियमितता व भ्रष्टाचार के संज्ञान में आये जिन मामलों की महाराष्ट्र सरकार से स्वीकृति मांगी थी, एक वर्ष में 71 बार उनका अनुस्मारक (रिमाइंडर) भेजने पर भी महा अघाड़ी सरकार ने पत्र का एक बार उत्तर देना गवारा नहीं समझा।

क्या किसी राज्य के नौकरशाह की इतनी जुर्रत है कि वह किसी केंद्रीय एजेंसी को धता बता दे। ये सभी गैर भाजपाई राज्य सरकारें हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भ्रष्टाचार-कदाचार के आरोपी आईपीएस अधिकारी के साथ मुख्यमंत्री होते हुए धरने पर बैठी थीं और अपने दो मंत्रियों को आरोपी बनाने पर 6 घंटे तक सीबीआई के कोलकाता कार्यालय को घेरे रहीं। महाराष्ट्र के डीजीपी कर्मवीर सिंह का प्रकरण सभी को मालूम है। तीसरा मोर्चा बनाने में जुटे ओम प्रकाश चौटाला अभी सजा काट कर जेल से लौटे हैं। मायावती के चहेते रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा सहित 57 लोगों के विरुद्ध नोएडा-लखनऊ में अरबों रुपये के घोटाले की चार्जशीट लखनऊ में 6 सितंबर 2021 को प्रस्तुत की गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 6 सितंबर 2021 को फैसला दिया कि समाजवादी पार्टी शासन में मंत्री रहे आजम खान ने मौलाना मोहम्मद अली जोहर ट्रस्ट के नाम पर 27 दलित किसानों व नहर विभाग की जो 471 एकड़ जमीन अपने प्रभाव से गैरकानूनी तरीके से बय कराली थी, उसमें से सिर्फ 12.5 एकड़ भूमि का ही ट्रस्ट हकदार है।

इसी 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि नोएडा के भ्रष्ट अधिकारियों की सांठगांठ से सुपरटेक में निवेशकों के साथ धोखाधड़ी करके जो 40 मंजिला इमारतें खड़ी कर ली है, उन्हें ढहा दिया जाए। नोएडा अधिकारियों व प्रमोटरों के 29 हजार करोड़ के घोटालों का राज़-फ़ाश हुआ है। ये सभी घोटाले सपा, बसपा के शासनकाल के हैं। नोएडा के जिस अधिकारी के कब्जे से एक किलोग्राम हीरे व दस करोड़ रूपये की नकदी बरामद हुई थी, उसे बचाने की कोशिश पर अदालत ने तल्ख़ टिप्पणी की थी।

लालू प्रसाद यादव को अभी जमानत ही मिली है, बरी नहीं हुए। वाड्रा और नेहरू-गांधी परिवार पर एसोसिएटेड जनरल्स का करोड़ों का केस अभी चल रहा है। ममता के भतीजे अभिषेक बैनर्जी व बहू का मामला जेरे तफ़्तीश है। इसी प्रकार मायावती के भाई की कथित फर्जी कंपनियों के मामले हैं। महाराष्ट्र में अनिल देशमुख वसूली कांड में फंसे हैं। पंजाब में सिद्धू राजनीतिक ड्रग माफियाओं के विरुद्ध मुहिम छेड़े हुए हैं। मीडिया प्रचार पर हजारों करोड़ खर्च करने के बाद भी केजरीवाल पर उंगलियां उठ रही हैं।

क्या इन सब को डर है कि यदि सत्ता में न लौटे तो उनका रुतबा, धन दौलत, शानशौकत कैसे कायम रहेगी? यदि घोटालों की जांच और अदालतों के फैसले सुचारू ढंग से होते रहे तो क्या होगा? इससे बचने के लिए ही तो क्या सब हथकंडे अपनाये नहीं जा रहे?

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here