संघर्ष और तमाशे में ज़मीन आसमान का अंतर है राहुल जी

लखीमपुर खीरी कांड ने विपक्ष को भाजपा -नरेंद्र मोदी को घेरने का मौका दे दिया है। यह बाद की बात है कि वह दु:खद घटनाक्रम क्यों घटित हुआ और हिंसा, मार्केट, आगजनी के कौन दोषी हैं। पुलिस और न्यायिक जांचो में सारी असलियत सामने आ जाएगी, फ़िलहाल यह कड़वी सच्चाई दुनिया के सामने है कि इस बबाल में ९ लोगों कि जानें चली गई। विपक्ष यदि इतनी बड़ी घटना पर चिल-पुकार मचा रहा है तो उचित ही है।


यहाँ यह सवाल उठता है कि विरोध प्रदर्शन कैसा हो? किसी हिंसा के विरोध में क्या हिंसक प्रदर्शन किया जा सकता है? क्या लाठी-डंडे और तलवारें हाथ में लेकर हिंसक प्रदर्शन उचित है? क्या हिंसा के विरोध में हिंसक कार्यवाही न्यायसंगत एवं लोकतान्त्रिक है? जहाँ लाठी, डंडे और तलवारें नहीं चल सकतीं क्या वहां पैने और उत्तेजक शब्दवाण चलना न्यायोचित है?
खेद है कि लखीमपुर-खीरी मामले में विपक्ष मर्यादाओं को भूल रहा है। चाहे विपक्षी नेता हों या संयुक्त किसान मोर्चा का नेतृत्व, समझौते के बाद अबभी उत्तेजक और भड़काऊ माहौल बनाने में जुटे है। सुबह से शाम तक धमकी और चेतावनी देने का अटूट सिलसिला यगा गए है। कथित काले कृषि कानूनों को एकदम ख़त्म करने की मांग को खीरी मेमल्स जोड़ कर पूरे देश में ऐसी अराजकता के हालात बनाने की जजीतोड़ कोशिश की जा रही है। चुनावी माहौल अपने पक्ष में बनाया रखने के लिए जो उचित-अनुचित है, वह सभी कुछ किया जा रहा है।


कांग्रेस यानि सोनिया-प्रियंका-राहुल सारे विपक्षी निकलने की दौड़ में है। किसानो का सच्चा हितैषी बन कर दिखने के लिए पुलिस या झाड़ू लगाने जैसे तमाशे करने की क्या जरूरत है? राहुल जब मीडिया के समक्ष शांतिपूर्ण सत्याग्रह की बात कर रहे थे तब देश के करोड़ों लोग टीवी पर यह भी देख रहे थे कि हाथों में लाठियां और तलवारें लहराते हुवे लोग वहां चालक की कैसे क्रूरतापूर्वक हत्या कर रहे है। खून के प्यासे इन कथित सत्याग्रहियों से घिरा एक व्यक्ति कैसे अपने प्राणों की भीख मांग रहा है यह कारुणिक दृश्य टीवी पर करोड़ों लोगों ने देखा।


कांग्रेस के मालिकान से पूछा जा सकता है कि सरकार पर हिटलरशाही और विरोध का गला घोटने का आरोप मढ़ने वाले उस समय कहाँ थे जब कपिल सिब्बल की प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस की वानर सेना बवाल मचा रही थी? दिल्ली और देशभर में सिखों का कत्लेआम, आपातकाल में पूरे देश को कैदखाना बना आदि अनेक अनुत्तरित प्रश्न हैं जिनका जवाब कांग्रेस के पास नहीं है।


शांतिपूर्ण प्रदर्शन और सत्याग्रह कैसा होता है , यह प्रियंका व जखोल को सीखना चाहिए। मीडिया के सामने फोटो सेशन कराना और स्ट्रीट फाइटर बनना दोनों अलग-अलग चीजें हैं। अभी चार अक्टूबर को मुजफ्फरनगर में जनकल्याण उपभोक्ता समिति के तत्वाधान में शांति सेना की सदस्याओं ने कचहरी में महंगाही व बेरोजगारी के विरुद्ध जोरदार प्रदर्शन एवं सत्याग्रह किया। नए कृषि कनूनों का भी प्रबल विरोध हुवा किन्तु कोई हंगामा बरपा नहीं हुआ। अच्छा है कि प्रियंका-राहुल इन छोटे-छोटे संगठनों से कुछ नसीहत लेने की कोशिश करेंगे।

राहुल जी ऐरकण्डीशन महलों में चापलूसों से घिर कर आम आदमी के लिए संघर्ष नहीं किया जा सकता।
धूप में निकलो, घटाओं में नहा कर देखो,
ज़िंदगी क्या है, किताबों को हटा कर देखो।

गोविंद वर्मा

संपादक देहात

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