नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2025-26 के अप्रैल से अगस्त तक के शुरुआती पांच महीनों में भारत का राजकोषीय घाटा ₹5.98 लाख करोड़ तक पहुँच गया है। यह आंकड़ा सरकार के पूरे साल के लक्ष्य का लगभग 38.1% है, जो आर्थिक प्रबंधन पर बढ़ते दबाव को दर्शाता है।

विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘टैरिफ पॉलिसी’ जैसी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सख्ती के कारण भी भारत की अर्थव्यवस्था पर दबाव बना हुआ है। पिछले साल इसी अवधि में राजकोषीय घाटा करीब ₹4.35 लाख करोड़ था, यानी इस बार घाटा लगभग ₹1.63 लाख करोड़ ज्यादा है।

टैक्स संग्रह में कमी से बढ़ा दबाव
सरकार की सबसे बड़ी चिंता इस बार टैक्स से होने वाली कमाई में गिरावट रही। अप्रैल से अगस्त के बीच नेट टैक्स कलेक्शन ₹8.1 लाख करोड़ रहा, जो पिछले साल के ₹8.7 लाख करोड़ से कम है। इसका मुख्य कारण इस वित्त वर्ष में ₹12 लाख तक की आमदनी वालों को आयकर में छूट देना बताया गया है। इससे जनता को राहत मिली है, लेकिन राजकोषीय स्थिति पर असर पड़ा है।

वहीं गैर-कर राजस्व यानी डिविडेंड, ब्याज और सरकारी उपक्रमों से प्राप्त आय में सुधार हुआ है। यह पिछले साल के ₹3.3 लाख करोड़ से बढ़कर ₹4.4 लाख करोड़ तक पहुँच गया, जिससे सरकार की कुल आमदनी ₹12.8 लाख करोड़ रही, जो पिछले साल के ₹12.2 लाख करोड़ से बेहतर है।

पूंजीगत व्यय में उछाल
सड़कों, रेलवे और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर खर्च में भी भारी बढ़ोतरी हुई है। अप्रैल से अगस्त के बीच पूंजीगत व्यय ₹4.3 लाख करोड़ रहा, जबकि पिछले साल यह केवल ₹3 लाख करोड़ था। यह इस वर्ष के पूंजीगत व्यय लक्ष्य का 38.5% है।

आगे की राह
सरकार ने इस वित्त वर्ष के लिए कुल ₹15.7 लाख करोड़ के घाटे का लक्ष्य तय किया है, जो देश की GDP का 4.4% है। हालांकि यह पिछले साल के ₹16.9 लाख करोड़ से थोड़ा कम है, लेकिन शुरुआती पांच महीनों के आंकड़े दर्शाते हैं कि आगे आर्थिक संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।