यूपी: निकाय चुनाव में महापौर और अध्यक्ष की सीटों के आरक्षण पर सबसे अधिक सवाल

नगर निकाय चुनाव में लगातार कई चुनाव से एक ही वर्ग के लिए सीटों के आरक्षण को लेकर पिछड़ा वर्ग आयोग ने सबसे अधिक सवाल महापौर और अध्यक्षों की सीटों को लेकर उठाया है। आयोग ने लखनऊ व प्रयागराज नगर निगमों में महापौर के अलावा 70 से अधिक नगर पालिका परिषदों व चार दर्जन से अधिक नगर पंचायतों में अध्यक्ष की सीटों के आरक्षण में गड़बड़ी की आशंका जताई है। रिपोर्ट में आयोग के अध्ययन का हवाला देते हुए इन निकायों की सीटों के आरक्षण में नियमों की अनदेखी की भी बात कही गई है।

दरअसल यूपी के निकाय चुनाव में पिछड़ों के सीटों का आरक्षण चक्रानुक्रम व्यवस्था के मुताबिक करने का प्रावधान है। इस प्रावधान मुताबिक एक सीट पर एक वर्ग को ही बार-बार आरक्षण का लाभ नहीं दिया सकता है। जबकि इस बार के चुनाव के लिए शासन द्वारा जारी तमाम ऐसी सीटों को उसी वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया है, जिस वर्ग के लिए यह सीटें पिछले कई चुनाव में आरक्षित रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ऐसी तमाम सीटों को लेकर सवाल उठाए हैं। खास तौर पर लखनऊ और प्रयाग जैसे नगर निगमों में महापौर और नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में अध्यक्ष की सीटों के आरक्षण को लेकर सवाल उठाए गए हैं। आयोग ने इन खामियों की तरफ भी यह भी सवाल उठाया है कि कुछ चुनावों को छोड़ दिया जाए तो बार-बार कैसे सीटें अनारक्षित होती रही। आयोग की इस टिप्पणी के बाद अब शासन स्तर पर इन सवालों का जवाब तलाशा जा रहा है।

बता दें कि प्रदेश में महापौर की 17 और अध्यक्ष की 745 सीटें हैं। इनमें नगर पालिका परिषद की 200 और नगर पंचायत अध्यक्ष की 545 सीटें शामिल हैं। सूत्रों का कहना है कि पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपने सर्वे में पाया है कि महापौर व अध्यक्ष की सीटों में चक्रानुक्रम व्यवस्था का पूरी तरह से पालन नहीं किया गया। चक्रानुक्रम व्यवस्था के मुताबिक अनुसूचित जनजाति महिला, अनुसूचित जनजाति, एससी महिला, एससी, ओबीसी महिला, ओबीसी, माहिला व अनारक्षित वर्ग के लिए सीटें आरक्षित होंगी। वरियताक्रम खत्म होने के बाद पुन: वही चक्र फिर से चलेगा, लेकिन सर्वे में इसका पूरी तरह से पालन होते नहीं पाया गया है।

आयोग ने इन निकायों का दिया है उदाहरण
पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में कुछ निकायों का उदाहरण भी दिया गया है। इसके मुताबिक लखनऊ वर्ष 2012 में अनारक्षित था, वर्ष 2107 में महिला किया गया और वर्ष 2022 में पुन: इसे अनारक्षित प्रस्तावित कर दिया गया। इसी प्रकार आगरा वर्ष 2012 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। वर्ष 2017 में इसे अनारक्षित किया गया और वर्ष 2022 में एससी महिला के लिए प्रस्तावित कर दिया गया। ऐसे ही वाराणसी वर्ष 2012 में अनारक्षित था, वर्ष 2017 में इसे ओबीसी महिला किया गया और वर्ष 2022 में पुन: अनारक्षित प्रस्तावित कर दिया गया। सहारनपुर वर्ष 2012 में महिला थी। वर्ष 2017 में इसे पिछड़ा वर्ग के लिए किया गया और वर्ष 2022 के चुनाव में पुन: महिला के लिए प्रस्तावित कर दिया गया।

100 से अधिक अध्यक्ष की सीटों पर भी सवाल
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में महापौर के अलावा अध्यक्ष की सीटों के आरक्षण पर भी सवाल उठाए हैं। सूत्रों का कहना है कि आयोग ने नगर पालिका परिषद में अध्यक्ष की 70 से अधिक सीटों के आरक्षण पर सवाल उठाते हुए इसके परीक्षण का सुझाव दिया है। इसके अलावा नगर पंचायत में अध्यक्ष की चार दर्जन से अधिक सीटों के आरक्षण में नियमों की अनदेखी की बात कही गई है।

अधिकारियों पर कार्रवाई संभव
सूत्रों का कहना है कि आरक्षण प्रक्रिया में गड़बड़ी की शिकायतों को देखते हुए शासन में निकाय चुनाव का काम देख रहे विशेष सचिव सुनील चौधरी और अनुभाग अधिकारी संजय तिवारी को हटाया गया था। वहीं, अब आयोगकी रिपोर्ट में भी गड़बड़ी की पुष्टि हो चुकी है। ऐसे में निकाय चुनाव की तैयारियों से संबंधित कई अन्य अधिकारी भी कार्रवाई के डर से सहमे हुए हैं। माना जा रहा है कि उच्च स्तर पर आयोग की रिपोर्ट में उठाए गए सवाल को गंभीरता से लिया गया है। लिहाजा कुछ और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।

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