विद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार के समक्ष टोरंट पावर मॉडल को पेश करते हुए दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम (डीवीवीएनएल) के निजीकरण पर गंभीर सवाल उठाए। समिति ने आरोप लगाया कि निजीकरण को सही ठहराने के लिए भ्रामक आंकड़े प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

समिति के अनुसार, वर्ष 2023-24 में टोरंट पावर ने राज्य विद्युत निगम से 4.36 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदी, जिसे उसने औसतन 7.98 रुपये में उपभोक्ताओं को बेचा। इससे कंपनी को करीब 800 करोड़ रुपये का लाभ हुआ, जबकि पावर कॉरपोरेशन को इसी अवधि में 275 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।

कर्मचारी नेताओं ने यह भी बताया कि शहरी क्षेत्रों में 2010 में हुए निजीकरण के बाद से टोरंट पावर को अब तक 2,434 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। इसके अलावा, कंपनी द्वारा सरकार का 2,200 करोड़ रुपये का बकाया अब तक नहीं चुकाया गया है। किसानों को मुफ्त बिजली देने की शर्त भी पूरी नहीं की जा रही।

राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश वर्मा ने टोरंट पावर पर तकनीकी नुकसान में कमी लाने के निर्धारित लक्ष्य को न पाने का आरोप लगाते हुए इसके ऑडिट की मांग की। वहीं, किसान नेता पुष्पेंद्र सिंह और आरडब्ल्यूए प्रतिनिधि जीपी अग्रवाल ने टोरंट के अनुबंध को खत्म करने की मांग करते हुए आरोप लगाया कि कंपनी मनमर्जी से बिल वसूलती है और उपभोक्ताओं की शिकायतों की अनदेखी करती है।

डीवीवीएनएल लाभ में, घाटे का तर्क गलत: संघर्ष समिति

संघर्ष समिति ने दावा किया कि डीवीवीएनएल घाटे में नहीं, बल्कि मुनाफे में कार्य कर रहा है। 2024-25 में कंपनी ने 11,546 करोड़ रुपये की राजस्व वसूली की, जबकि विभिन्न सरकारी विभागों पर 4,543 करोड़ रुपये बकाया हैं। सब्सिडी जोड़ने पर कुल संभावित आय 21,795 करोड़ रुपये तक पहुंचती है। इसके मुकाबले डीवीवीएनएल का कुल व्यय 19,639 करोड़ रुपये है, जिससे कंपनी को 2,156 करोड़ रुपये का अनुमानित लाभ हो रहा है।