नाजिम महज दो महीने का है और उसका ऑक्सीजन लेवल 79 तक गिर चुका है। परिवार शुक्रवार को उसे जिला अस्पताल लेकर आया, जहां डॉक्टरों ने हाई डिपेंडेंसी यूनिट में ऑक्सीजन सपोर्ट पर भर्ती किया। डॉक्टरों के अनुसार बच्चे की हालत गंभीर है और वह सांस लेने में कठिनाई महसूस कर रहा है।
जिलाधिकारी ने बताया कि गिरते तापमान और बढ़ते प्रदूषण के कारण बच्चों में खांसी, निमोनिया और एलर्जिक इन्फेक्शन के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। जिला अस्पताल की ओपीडी में हर दूसरे बाल रोगी खांसी और बुखार से परेशान दिखाई दे रहा है। चार दिन बाद छह घंटे के लिए ओपीडी खुलने पर 1,500 से अधिक मरीज पहुंचे।
डॉक्टरों का कहना है कि सांस लेने में तकलीफ, सीने में भारीपन और एलर्जी की समस्याओं के चलते रोजाना 50 से अधिक बच्चों को भर्ती करना पड़ रहा है। आम दिनों में यह संख्या केवल दो-तीन होती है। भर्ती मरीजों को नेबुलाइजर के साथ उपचार दिया जा रहा है। प्रदूषण के कारण बच्चों की सांस की नली में सूजन आ रही है, जबकि बड़ों में अस्थमा और सीओपीडी की समस्याएं बढ़ रही हैं।
जिला अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. बीर सिंह ने बताया कि खांसी लंबे समय तक ठीक नहीं हो रही और सांस की पुरानी समस्याओं वाले मरीजों की दवा की खुराक बढ़ानी पड़ रही है। कई मरीजों को इनहेलर का इस्तेमाल करने की सलाह दी जा रही है। वहीं, नाक और गले में एलर्जी की समस्याएं भी बढ़ रही हैं। चेस्ट फिजिशियन डॉ. प्रदीप वार्ष्णेय ने कहा कि युवा भी सांस फूलने और छाती में दर्द की शिकायत के साथ अस्पताल पहुंच रहे हैं।
बचाव के उपाय:
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शाम को खुले में व्यायाम और सैर से बचें।
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बाहर जाते समय एन-95 मास्क पहनें।
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बुजुर्ग, बच्चे, गर्भवती महिलाओं और पुराने मरीजों को विशेष सावधानी रखें।
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घर पर भाप लेने का उपाय अपनाएं।
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कोल्ड ड्रिंक और खट्टी चीजों से परहेज करें।
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छोटे बच्चों को गर्म और पूरी आस्तीन वाले कपड़े पहनाएं।
डॉ. संगीता गुप्ता, प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक, ने बताया कि अस्पताल में कुल 256 बेडों में से लगभग 200 बेड भरे हुए हैं। बुखार और सांस की तकलीफ से परेशान मरीजों को प्राथमिक उपचार के बाद भर्ती किया जा रहा है।