उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर ज़िले के जानसठ तहसील में तैनात एसडीएम जयेंद्र सिंह पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। आरोप है कि उन्होंने तीन करोड़ रुपये की रिश्वत लेकर करोड़ों की सरकारी भूमि भूमाफिया अमृतपाल के नाम दर्ज कर दी। इस मामले की शिकायत डीएम उमेश मिश्रा को दी गई है, जिन्होंने तत्काल जांच के लिए तीन एडीएम की एक टीम गठित की है।
पुराना विवाद, नई कार्रवाई
जानकारी के अनुसार मामला इसहाकवाला गांव का है, जहां 1962 में डेरावाल कोऑपरेटिव फार्मिंग सोसायटी बनाई गई थी। सोसायटी के पास कुल 743 हेक्टेयर भूमि थी। वर्ष 1972 में हरबंस नामक सदस्य 23 एकड़ ज़मीन के साथ सोसायटी से अलग हो गए थे। वर्तमान में इसी ज़मीन को लेकर हरबंस के पोते और सोसायटी के पुराने सचिव जीवन दास के बेटे गुलशन के बीच विवाद जानसठ एसडीएम कोर्ट में चल रहा था।
2018 में तहसील प्रशासन ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि हरबंस का सोसायटी की ज़मीन में कोई हिस्सा नहीं है। लेकिन मार्च 2024 में एसडीएम पद पर आए जयेंद्र सिंह ने जुलाई 2025 में विवादित भूमि को अमृतपाल के नाम दर्ज करने का आदेश दे दिया। इसमें 600 बीघा सोसायटी की ज़मीन के साथ-साथ 150 बीघा सरकारी ज़मीन भी शामिल थी।
शिकायत के बाद आदेश रद्द
जैसे ही गुलशन और उनके बेटे ईशान को जमीन के हस्तांतरण की जानकारी मिली, उन्होंने 29 जुलाई को डीएम से शिकायत की। इसके बाद रातोंरात एसडीएम ने अपने ही आदेश को निरस्त कर दिया। डीएम ने इस पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच के लिए तीन एडीएम की टीम बनाई है।
हाईवे से जुड़ा मुआवजा विवाद
खास बात यह है कि जिस भूमि को सरकारी माना गया था, वहीं से राष्ट्रीय राजमार्ग गुजर रहा है। अमृतपाल और सोसायटी के कुछ सदस्य हाईकोर्ट में मुआवज़ा मांगने गए थे, लेकिन कोर्ट ने साफ किया कि यह सरकारी ज़मीन है, इसलिए कोई मुआवज़ा नहीं दिया जा सकता। इसके बावजूद, एसडीएम द्वारा वही ज़मीन अमृतपाल के नाम दर्ज कर दी गई।
पहले भी लग चुके हैं आरोप
एसडीएम जयेंद्र सिंह पर यह पहला आरोप नहीं है। इससे पहले भी उन पर पूर्व विधायक विक्रम सैनी के करीबी लोगों से 10 लाख रुपये रिश्वत लेने का आरोप लग चुका है। उस समय खुलासे के बाद उन्होंने रकम वापस की थी।
डीएम उमेश मिश्रा ने कहा, "मामले की जांच चल रही है, रिपोर्ट आने के बाद जो भी दोषी होगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।"