जब नेहरु जी शुकतीर्थ आये !

शुक्रताल, 28 नवंबर, 1958: तारीख़ पढ़ कर चौंकिए मत। मैं आपको 65 वर्ष पूर्व पौराणिक तीर्थस्थल शुक्रताल ले जा रहा हूं। शिक्षा ऋषि के रूप में विख्यात स्वामी कल्याणदेव महाराज ने 5000 वर्ष पूर्व के महाभारतकालीन तीर्थ के पुनरुत्थान का बीड़ा उठाया हुआ था। शापग्रस्त राजा परीक्षित की मुक्ति हेतु जहां शुकदेव मुनि ने श्रीमद्‌‌भागवत की कथा सुनाई थी, स्वामी जी उस अक्षय वट और रेत के टीले को आदर्श तीर्थस्थल में बद‌लना चाहते थे।

स्वामी जी देश के महान् सन्तों, धर्म प्रेमियों, समाजसेवियों, राजनीतिज्ञों, नेताओं को शुक्रताल की पुण्यभूमि लाते रहते थे। 28 नवंबर, 1958 को स्वामी जी देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु को शुक्रताल लेकर आये। मेरी आयु उस समय 17 वर्ष की थी। मैं पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा संपादक “देहात” के साथ नेहरु जी की जनसभा और कार्यक्रम में सम्मिलित होने शुक्रताल गया हुआ था।

28 नवंबर, 1958 की दो घटनायें मुझे अभी तक याद हैं। स्वामी जी ने पिताश्री को नेहरु जी के कार्यक्रम के लिए निमंत्रित किया हुआ था। इस अवसर पर हमारी माता जी ने छोटे भाई राजरत्न को भी शुक्रताल भेजा था। उन्होंने नेहरु जी की तर्ज पर एक पोशाक: चूड़ीदार पायजामा और शेरवानी बनवा कर राजरत्न को पहनाई। शेरवानी की जेब के पास एक गुलाब का फूल लगाया, ठीक उसी अंदाज़ में जैसे नेहरु जी लगाते थे।

पिताश्री, मैं और राजरत्न मंच के पास ही थे। नेहरु जी की नज़र राजरत्न पर पड़ी तो वे लपक कर आगे बढ़े और राजरत्न को गोदी में उठाकर दुलराने लगे। महाराज जी ने पिताश्री और नन्हें राजरत्न का परिचय कराया। उस समय जिला कांग्रेस कमेटी के कार्यवाहक अध्यक्ष चौ. बलवन्त सिंह (जिला कांग्रेस अध्यक्ष वीरेन्द्र वर्मा तब अमेरिका की यात्रा पर गये हुए थे) तत्कालीन जिला अधिकारी एस. सी. सिंहा, प्रमुख समाजसेवी लाला इन्द्रप्रकाश जी तथा स्वामी जी महाराज के पास चौबीसों घंटे साथ रहने वाले शुकलजी आदि विशिष्ठजन नेहरु जी के समीप मौजूद थे।

दूसरी विशेष घटना, जो मुझे अभी तक याद है, वह है जनसभा के मंच पर स्वामी जी महाराज व नेहरु जी के चन्द बोल। वटवृक्ष से काफी दूर, नदी के उत्तर-पूर्वी किनारे पर एक मंच बना था, जिस पर केवल महाराज जी और पं. जवाहरलाल नेहरु विराजमान थे। स्वामी जी ने शुकतीर्थ पधारने पर नेहरु जी का आभार जताया और उन्हें ‘भारत का सम्राट’ कहकर सम्बोधित किया। इस पर नेहरु जी ने माइक तत्काल स्वामी जी के हाथों से ले लिया और बोले- ‘अब भारत में कोई सम्राट नहीं है, यहां की जनता ही सम्राट है।’ दो पल सन्नाटे के बाद माइक स्वामी जी ने नेहरु जी से ले लिया और बोले- ‘आप तो भारतवासियों के हृदय सम्राट हैं।’ तब नेहरु जी मुस्कुरा उठे और भारतीय लोकतंत्र तथा कृषि विकास पर खुलकर बोले। उनका पूरा भाषण ‘देहात’ में प्रकाशित हुआ था।

नेहरु जी के आगमन पर शुक्रताल के कार्तिक गंगा स्नान के मेले में एक चमत्कार-सा हुआ। पहली बार मेला बिजली के लट्टुओं से जगमगाया था। ग्राम निरगाजनी, (जो हमारी ननिहाल है) की झाल (विद्युत केन्द्र) से शुक्रताल तक बिजली के खम्भे लगाये गए और शुकतीर्थ बिजली की रोशनी से जगमगा उठा। यह नेहरु जी के शुक्रताल आगमन और स्वामी जी की कर्मठता तथा पुरुषार्थ का ही प्रताप था।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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