ये क्यूँ कर रहे स्यापा !


भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म किये जाने के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट की मोहर लगने से बौखलाये पाकिस्तान के पिट्ठुओं का हमने हवाला दिया था कि वे अतीत के षड्यंत्रों को लेकर कैसे बौखलाये हुए हैं। कश्मीर की कथित आज़ादी की कल्पना के सहारे अब्दुल्ला व मुफ्ती परिवार पाकिस्तानी शासकों के साथ कैसे कदमताल करता आया है, पुरानी पीढ़ी सब कुछ जानती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कैसे फारूक अब्दुला, उमर अब्दुला, महबूबा मुफ्ती व अलगाववादी सुर में सुर मिला कर एक साथ बोले, ऐसी ही आवाज़ पाकिस्तान की ओर से आई है। पाकिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री जलील अब्बास जिलानी ने भारत की सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर फौरन प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और भड़ास निकालते हुए कहा कि कश्मीरियों के साथ न्याय नहीं हुआ है। भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कोई कानूनी महत्त्व नहीं है।
8 अगस्त, 1953 को जम्मू-कश्मीर के ‘प्रधानमंत्री’ शेख अब्दुल्ला को देश द्रोह के आरोप में जेल भेजने वाले महाराजा हरिसिंह के उत्तराधिकारी डॉ. कर्णसिंह ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विरोध करने वाले गैंग से कहा है कि वे वास्तविका को स्वीकार करें और विधानसभा चुनावों के लिए पूरी ताकत से तैयार हों।
डॉ. कर्णसिंह की सलाह मानने के अलावा अब्दुल्ला-मुफ्ती गिरोह के पास कोई विकल्प शेष नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 70 बरसों से चल रहे ऐसे विवाद को ख़त्म कर दिया है जिसके चलते 54000 लोगों की जानें गईं और लाखों कश्मीरी पंडितों को अपने देश में ही विस्थापित होना पड़ा। अब देश के इतिहास का एक नया अध्याय खुला है जिसका सुफल जम्मू-कश्मीर और लद्दाक की खुशहाली के रूप में मिलेगा। अनुच्छेद 370 के काले अध्याय का रोना काले दिलों वाले ही रोते रहेंगे।
अनुच्छेद 370 का अंतिम फैसला हो गया लेकिन कुछ ‌यादें आपसे
साझा करना चाहेंगे। साठ के दशक में आर्य समाज के ओजस्वी और प्रखर वक्ता प्रकाशवीर शास्त्री मुजफ्फरनगर आये थे। टाउन हॉल का मैदान श्रोताओं से खचाखच भरा था। तिल रखने की जगह भी नहीं थी। शास्त्री जी ने कश्मीर में पं. जवाहरलाल नेहरु व शेख अब्दुला की साठगांठ, कबालियों के 1948 के हमले की सच्चाई, नेहरु के जनमत संग्रह का प्रस्ताव, जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान व अलग झण्डा तथा भारतीयों के लिए कश्मीर जाने को वीसा जैसा परमिट लेना और जेल में बंद श्यामा प्रसाद मुखर्जी को इलाज के नाम पर ज़हर देने की पूरी कहानी विस्तार से सुनाई थी। कहा था कि धारा 370 भारत माता के गले पर तलवार रखने जैसी है।
हमें यह भी याद है कि जब शेख अब्दुल्ला के साथ पं. जवाहरलाल नेहरु की पटरी बैठ गई थी, तब अब्दुल्ला, मिर्जा अफजल बेग व अन्य 22 लोगों के विरुद्ध षड्यंत्र का मुकदमा वापस ले लिया गया था। हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार व पत्रकार, सहारनपुर के ‘नया जीवन’ के संपादक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ ने अपने अखबार में हैरत जताई थी कि यह कैसा मुकद‌मा था कि दिल्ली से रिहाई का आदेश आते ही उस जज ने शेख अब्दुल्ला को अपने चेम्बर में बुला कर चाय पिलाई, जिसकी अदालत में शेख अब्दुल्ला का मुकदमा चल रहा था। जज का नाम प्रभाकर जी ने छापा था किन्तु हमें अब याद नहीं है।
11 वर्षों की बंदी के बाद जेल से रिहा होते ही शेख अब्दुल्ला जीरो से हीरो बन गये थे और ‘शेर-ए-कश्मीर’ कहलाने लगे थे। वे पृथक कश्मीर आन्दोलन के नेता बन चुके थे और पूरे भारत के मुस्लिमों के लोकप्रिय नेता माने जाने लगे थे।
शेख अब्दुल्ला का तर्ज-ए-बयाँ व तर्ज-ए-गुफ्तगू कट्टर नेता जैसी हो गई थी। हमें सन्‌ या तारीख याद नहीं लेकिन यकीनन सरकारी कागजात या रिकॉर्ड में दर्ज होगा। शेख अब्दुल्ला मेरठ आएं थे। फैज़-ए-आम कॉलेज के मैदान पर उनके उत्तेजक भाषण के बाद शहर में दंगा भड़क गया था । गुड़ मंडी, भूसा मंडी, मछली बाजार, जली कोठी, बुढ़ाना गेट, शाहपीर गेट व लालकुर्ती तक दंगा फैल गया। जली कोठी के क्षेत्र में स्कूलों से घर लौट रही छात्राओं के साथ बदसलूकी हुई। खूब मार-काट हुई। अन्ततः शहर व छावनी क्षेत्र में कर्फ्यू लगाना पड़ा। उसी शेख अब्दुल्ला का परिवार अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर स्यापा कर रहा है !
गोविन्द वर्मा

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