कौन है प्रोफेसर अली खान !

सोनीपत के अशोका विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद की परिस्थितियों एवं सेना की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कर्नल सोफिया कुरैशी की भूमिका को लेकर एक पोस्ट डाली है। यह दो-चार या दस पंक्तियों की नहीं, पूरा बड़ा विश्लेषणात्मक लेख है जिसमें कहा गया है कि क्या पाकिस्तान से युद्ध करना जरूरी था? सोफिया कुरैशी के साहस की सराहना होनी चाहिए लेकिन उनकी तारीफ करने वालों से (दक्षिणपंथी) पूछा जाना चाहिए कि मुस्लिमों की लिंचिंग और बुलडोजर के इस्तेमाल पर भी उन्हें कुछ बोलना चाहिए, वगैरह वगैरह। चूंकि खान साहब प्रोफेसर हैं, कई विशेषज्ञों के मास्टर डिग्री होल्डर है, और सबसे बड़ी बात- महमूदाबाद के शाही घराने के सदस्य हैं, इस लिए अपनी, बात कहने- लिखने की महारथ हासिल है।

उनकी पोस्ट पर हरियाणा में दो प्राथमिकी दर्ज हुईं और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। देशद्रोह हो, अराजकता या वैमनस्य-द्वेष फैलाने का मामला हो, आतंकवादियों, कट्टरपंथियों के विरुद्ध मामला हो, पूरे देश के वामपंथी, फर्जी सेक्युलरवादी या कथित प्रगतिशील बुद्धिजीवियों की टोलियां – जिनमें शिक्षक-छात्र, वकील, पत्रकार, साहित्यकार शामिल है, आरोपियों के पक्ष में तन कर खड़ी हो जाती हैं। अभिव्यक्ति स्वतंत्रता, संविधान के अनुच्छेद सब याद‌ आने लगते हैं। अपराधी या आरोपी को बिना मेहनताने के वकील और पैरोकार मिल जाते हैं। प्रोफेसर खान के मामले में भी ऐसा ही हुआ। न्यायपालिका पर द‌बाव बनाने का यह नायाब तरीका है।

पूरे देश में प्रोफेसर खान की गिरफ्तारी के विरोध में जबरदस्त लॉबिंग हुई। कामरेड श्रद्धानंद सोलंकी के नेतृत्व में छोटूराम धर्मशाला में वामपंथियों की बैठक बुलाई गई। कहा गया कि मुसलमान होने के नाते उन्हें गिरफ्तार किया गया। यह अभिव्यक्ति की संविधान प्राप्त आजादी के विरुद्ध‌ है। डिप्टी कमिश्नर को एफआईआर रद्द कर झूठे मुकदमें से बरी करना चाहिए।

पुलिस चाहती थी कि प्रो. खान को पुलिस रिमांड में रखा जाए किन्तु कोर्ट संख्या 30 के जज ने पुलिस का आग्रह ठुकरा दिया। इस पर खान साहब के प्रशंसकों ने सार्वजनिक रूप से जज का आभार जताया। प्रो. खान के पक्ष में सोनीपत के 8 वकीलों ने वकालतनामा भरा था, वे गदगद हो गए। दूसरी ओर कपिल सिब्बल जैसे दिग्गज वकील ने प्रो. खान को सुप्रीम कोर्ट से जमानत दिला दी।

भारत की अदालतें न्यायकारी, महान हैं। तथ्यों, सबूतों, गवाहियों को तराजू में तौलती हैं। फैसला करना अदालत का काम है। जो अंतिम निर्णय होगा, वह ठीक ही होगा।

यह विचारणीय है कि ये प्रो.खान हैं कौन जिन्होंने ऑपरेशन सिंदूर पर ऐसा लिख मारा कि चारों ओर हलचल मच गई। इनका संबंध महमूदाबाद (सीतापुर उ.प्र.) से जुड़ा है जो सदियों पुराना शाही खानदान है जिसने बगदाद से आकर अपनी हुकूमत कायम की है।

उनके पूर्वज इस्लाम के प्रथम खलीफा अबू बकर के कबीले के बगदाद के गर्वनर के प्रतिनिधि काजी नसरुल्लाह थे जिन्हें भारत में इस्लाम के प्रचार प्रसार के उद्देश्य से भेजा गया था। वे 13वीं सदी में भारत आए और अपने कबीले के साथ उत्तरप्रदेश के अमरोहा में बस गए। ये सभी लड़ाके तथा युद्ध में पारंगत लोग थे। सोलहवीं शताब्दी में यह कबीला अवध में आया। कबीले के सरदार महमूद खान के नाम पर वर्तमान सीतापुर जिले में नया शहर महमूदाबाद बसाया गया। इन्होंने अकबर के शासन के विस्तार में लड़ाइयां लड़ी और खान बहादुर का खिताब हासिल किया। इनके पारिवार के पुरुष (बड़ा पुत्र उत्तराधिकारी) राजा महमूदाबाद कहलायें। अवध के महरौली, महमू‌दाबाद, सहजती, पैतेपुर, सेमरा, गुलारामाऊ, केदारपुर, चांदपुर, रसूलाबाद, सिकंदराबाद, सरैया, गढ़ी इब्राहिमपुर, रसूलपुर, जलालपुर, पिपर झाला में तथा बाराबंकी जिले में अल्लापुर, रानीमऊ, बंधौली, सुरजनपुर, गौरा गजनी सैकड़ों गांवों में, अचल संपत्ति। नैनीताल में विशाल बंगला। ईराक, इंग्लैंड, पाकिस्तान में बड़ी जायदादें।

सीतापुर के जिला अधिकारी, पुलिस अधीक्षक, सी.एम.ओ. के आवास भी महमूदाबाद रियासत की है। राजधानी लखनऊ का फैशनेबल बाजार हजरतगंज, बटलर पैलेस, महमूदाबाद मेंशन, हलवासिया मार्केट, मलका जमालिया, गोलागंज भी राजा महमू‌दाबाद की संपत्ति थी।

ये सारी संपत्तियां राजा आमिर अहमद खान के नाम दर्ज थीं। ब्रिटिश राज में में राजा आमिर अहमद ने भारत को इस्लामी राज बनाने के लिए राजा ने मोहम्मद अली जिन्ना का खुल कर साथ दिया किन्तु पूरा भारत इस्लामी राज्य नहीं बन सका और भारत का विभाजन हो गया। विभाजन के बाद आमिर अहमद खान ईराक, इंग्लैंड होता हुआ पाकिस्तान चला गया। अक्तूबर, 1973 में उसकी मृत्यु हो गई। भारत से भागने के बाद राजा महमूदाबाद की समस्त संपति शत्रु संपत्ति घोषित कर दी गई जिसपर सरकार का अधिकार हो गया। उसका बेटा मौहम्मद अमीर भारत लौट आया तो कांग्रेस ने उसका भव्य स्वागत किया। महमूदाबाद से पहले लोकप्रिय मुस्लिम नेता अम्मार रिजवी चुनाव लड़ते थे। वे कांग्रेस शासन में शिक्षा मंत्री भी रहे थे। तुष्टीकरण की नीति पर चलते हुए कांग्रेस ने सन् 1985 व सन् 1989 में मोहम्मद अमीर को टिकट देकर विधायक बनवाया। उसने महमूदाबाद रियासत की जब्तशुदा संपत्ति की वापसी के लिए अदालती कार्रवाई शुरू कर दी। सन् 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर समस्त संपत्ति पूर्व राजा को लौटाने का आदेश दिया कि राजा भारत लौट आया है अतः वह अब शत्रु नहीं रहा। इसलिए संपत्ति उसी की रहेगी। तब यह संपत्ति 50,000 करोड़ रुपये की आंकी गई थी। अब लाखो करोड़ों रुपये की है। मोदी सरकार ने शत्रु संपत्ति अध्यादेश जारी किया तो यह संपत्ति पुनः शत्रु संपत्ति मान ली गई।

मुकद‌मा लड़ते लड़ते पूर्व राजा महमूदाबाद का 4 अक्तूबर 2023 को निधन हो गया। पूर्व राजा के दो बेटे हैं- प्रो. अली खान तथा अमीर हसन खान। बगदाद से आए खानदान का यह संक्षिप्त इतिहास है। जो सिलसिला 13वीं सदी से शुरू हुआ, वह 2025 में भी जारी है।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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