पालमपुर, प्रदेश का जिला चंबा क्षेत्र में भूकंप की दृष्टि से माइक्रोसिसमिक एक्टिविटी बढ़ी है। चंबा क्षेत्र में कम तीव्रता के बार-बार आ रहे भूकंप के झटके इसका साफ संकेत दे रहे हैं। इसका कारण धौलाधार के उत्तरी तथा रावी के बाएं किनारे के क्षेत्र का माइक्रोसिस में एक्टिव होना माना जा रहा है। बीते 10 वर्षों की अवधि में हिमाचल में आए भूकंपों में लगभग 42 प्रतिशत का केंद्र जिला चंबा और चंबा की जम्मू-कश्मीर के साथ लगती सीमा रही है। इस वर्ष अब तक की अवधि में 35 बार हिमाचल में भूकंप के झटके आए हैं, इनमें 18 बार चंबा क्षेत्र में ही भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं।
यानी आधे झटके एक ही क्षेत्र में महसूस किए गए हैं। इनकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर चार से कम रही है। प्रदेश में इस बार जनवरी से लेकर मई तक की अवधि में 35 बार भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। यद्यपि इसके बाद भूकंप आने की प्रक्रिया थमी है तथा नौ अक्टूबर को लाहुल स्पीति में भूकंप आने के बाद यह ठहराव टूटा है। वर्ष 2019 में देवभूमि में 30 बार भूकंप के झटके आए थे।
भूकंप के छोटे झटके भूमि के नीचे एकत्रित ऊर्जा को बाहर निकाल रहे हैं। यही ऊर्जा बड़े भूकंप का कारण बनती है। ऐसे में इन छोटे झटकों को राहत भरा माना जा सकता है। धौलाधार के उत्तरी तथा रावी के बाएं किनारे के क्षेत्र को माइक्रोसिसमिक एक्टिव क्षेत्र माना जाता है। चंबा माइक्रोसिसमिक एक्टिव क्षेत्र है। वैज्ञानिक इसे सकारात्मक पहलू मानते हैं, जबकि इसके विपरीत कांगड़ा, मंडी, हमीरपुर, ऊना तथा सिरमौर में टैक्टॉनिक लाइन के कारण धरती के नीचे एकत्रित ऊर्जा रिलीज नहीं हो पा रही है, जिस कारण इस क्षेत्र को भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील माना जाता है।