दुनिया आज भीषण महायुद्ध से जूझ रही है, जिससे भारत भी बच नहीं सका है। इस महायुद्ध की विभीषिका पहले और दूसरे विश्वयुद्ध से बहुत-बहुत बड़ी मारक क्षमता से भी कहीं ज्यादा विकराल और सर्वग्राही है। पहले विश्वयुद्ध परस्पर देशों के बीच लड़े गए थे, जिसमें सैनिकों के साथ नागरिकों के प्राण भी गए थे किंतु वर्तमान कोरोना महायुद्ध उन युद्धों से सर्वथा भिन्न है। इस युद्ध में मित्र देश और शत्रु देश नहीं लड़ रहे बल्कि पूरे संसार को अपनी मुट्ठी में दबोच लेने की पैशाचिक हवस से एक देश ने पूरी दुनिया के देशों पर ऐसा हथियार छोड़ दिया है जो संसार के छोटे-बड़े, गरीब-अमीर सभी मुल्कों के असंख्य लोगों के प्राण हरने के साथ इन देशों की अर्थव्यवस्था, उद्योग, खेती, रोजगार सभी को सुरसा की भांति लीलता जा रहा है। इच्छाधारी मायावी हथियार दुनिया भर में कोहराम मचाने में कामयाब होता दिख रहा है।
कोरोना का मायावी हथियार इंसानों पर कहर बरपा करने के साथ देशों के आंतरिक, सामाजिक तथा प्रशासकीय स्थिति को भी तहस-नहस कर रहा है। इससे लोगों में आपाघापी, लूट-खसोट, नियमों की अवहेलना का माहौल बनता जा रहा है। कानून व्यवस्था को चुनौती देने की मन: स्थिति बना दी है। भीड़ डॉक्टरों तथा पुलिस पर हमले करने लगी है। लोग न केवल ऑक्सीजन सिलेंडरों, औषधियों एवं खाद्य पदार्थों की कालाबाजारी में जुट गए हैं बल्कि मृतकों के कफनों की चोरी कर उन्हें दोबारा बेचने का जघन्य अपराध करने में लगे हैं। ऊंची पहुंच वाले और शासनतंत्र के संचालक पहले से ऐसा प्रबंध कर लेते हैं ताकि बड़ी अदालतें भी इन्हे दण्ड न दे पायें।
नेतागण इस मायावी शत्रु से लड़ने के बजाय इस भीषण त्रासदी में भी वोट बैंक मजबूत करने में लगे हैं। जो व्यक्ति, संस्थायें या सरकार अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में तत्पर हैं, प्रेस कॉन्फ्रेंसों, ट्वीट एवं वक्तव्यों के सहारे उनकी टांग घसीटी जा रही है। इस विकराल युद्ध में कोरोना जैसे मायावी शत्रु से एक होकर लड़ने की आवश्यकता है न कि आपस में उलझने की। पक्ष-विपक्ष का कर्तव्य है कि वह जनता को समझाये कि सभी को कोरोना प्रोटोकॉल का मिलकर पालन करना है।
यह और भी भयंकर स्थिति है कि कोरोना ग्रामीण क्षेत्रों में भी पांव पसार रहा है। कहना जरूर है कि यदि आज़ादी के बाद हमारे नेताओं ने वोट बैंक के लिए जाति-बिरादरी की मानसिकता के रोबोट तैयार करने के बजाय आदर्श नागरिक बनाये होते तो आज हम कोरोना के हमले को आसानी से झेल सकते थे और संकट काल में कालाबाजारियों तथा कफ़न खसोटों के हौसले भी पस्त मिलते। इजरायल, न्यूजीलैंड और कोरोना आविष्कारक चीन भी, अपनी एकजुटता के बल पर कोरोना पर बहुत कुछ काबू पाने में सफल हुए हैं। भारत की जनता और नेताओं को इस भयंकर संकट काल में इन देशों से सबक लेना चाहिए। हमारे देश में युद्धकाल या आपात स्थिति में शकुनियों के सक्रिय होने की परंपरा रही है। ये देश का मनोबल तोड़ने में लगे हैं। मानवरूपी इन गिद्धों का यदि मुंह काला नही किया जा सकता तो कम से कम इनका सामाजिक बहिष्कार अवश्य होना चाहिए।
गोविंद वर्मा
संपादक देहात