52 साल के राजनीतिक सफर में पहली बार खुद ही हार गए अमरिंदर सिंह

अपने विरोधियों को कमजोर करके साइड लाइन करने में माहिर कैप्टन अमरिंदर सिंह 52 साल के राजनीतिक सफर में पहली बार खुद ही हार गए। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की ही कई कमजोरियां रहीं, जिनको मुद्दा बनाकर विरोधियों ने उनकी कुर्सी पर संकट खड़ा करने की पटकथा तैयार की। अकाली दल के प्रति नर्मी समेत बेअदबी केसों, नशाखोरी और अफसरशाही के राज में कांग्रेस विधायकों की नाराजगी इस कदर बढ़ी कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।

भट्ठल, दूलो, बाजवा व केपी को सियासी कमजोर किया कैप्टन ने
वर्ष 1998 में जब कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस में एंट्री हुई तो पंजाब में पूर्व सीएम राजिंदर कौर भट्ठल और शमशेर सिंह दूलो का दबदबा था। सबसे पहले कैप्टन ने दोनों को पंजाब की सियासत से खत्म किया। वर्ष 2002 में कांग्रेस ने कैप्टन के नेतृत्व में प्रचंड जीत हासिल की और पांच साल सरकार चलाई। 

2007 के बाद मोहिंदर सिंह केपी प्रधान बने तो कैप्टन ने उनको भी फेल कर दिया और संगठन में अपना दबदबा कायम रखा। प्रताप बाजवा हों या शमशेर सिंह दूलो या राजिंदर कौर भट्ठल या फिर केपी, कैप्टन ने किसी विरोधी को सर उठाने का मौका तक नहीं दिया। नवजोत सिंह सिद्धू की कांग्रेस में एंट्री के बाद कैप्टन दिन प्रतिदिन कमजोर होते चले गए। हुआ ऐसा कि उनका अपना कुनबा ही बिखर गया। 
नदियों के बंटवारे में अड़े कैप्टन
पंजाब में सियासत की धुरी माने जाने वाले किसानों के लिए कैप्टन हमेशा ही खड़े रहे। वर्ष 2002 में सरकार बनने के बाद बतौर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कई फैसले किसानों के हित में लिए। इस दौरान सबसे महत्वपूर्ण फैसला नदियों से पानी के बंटवारे के मामले पर लिया। हालांकि 2007 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई, इसके बाद भी आलाकमान ने कैप्टन को दो बार प्रधान बनाकर अपना विश्वास दिखाया। कैप्टन ने पानी के मुद्दे में अपनी हाईकमान की परवाह न करते हुए पंजाब में विधानसभा में प्रस्ताव पास कर पंजाब के पानी की रक्षा की।

दिल्ली में कमजोर हुए कैप्टन
वर्तमान में पंजाब कांग्रेस के हालातों के लिए कैप्टन की दिल्ली में कमजोर पैरवी को माना जा रहा है। दिल्ली में कैप्टन के कमजोर होने की एक बड़ी वजह यह भी है कि कैप्टन की पैरवी करने वाले कांग्रेसी दिग्गज अब नहीं रहे। कैप्टन को सबसे बड़ा नुकसान सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की मौत से हुआ। 
अकाली दल के प्रति नरमी
वर्ष 2017 से पहले कैप्टन स्टेज पर अकाली दल को बुरी तरह से ललकारते थे। रेता, बजरी, केबल, ड्रग के मामलों में अकाली दल के नेताओं को अंदर करने की बात करने वाले कैप्टन सीएम बनने के बाद अकाली दल के नेताओं के प्रति काफी नर्म हो गए। इतना ही नहीं, अकाली दल के कई चहेते अधिकारियों को उनहोंने फील्ड में महत्वपूर्ण कुर्सी पर बैठाकर रखा।

कैप्टन नेताओं से दूर रहते रहे
कैप्टन हमेशा संगठन पर हावी रहे और नेताओं को सिर नहीं उठाने दिया। प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ भी कैप्टन से मिलने के लिए तरसते थे और कई बार उनको घंटों इंतजार करना पड़ता था। विधायक भी खुलकर बोलने लगे। पंजाब में अफसरशाही हावी होने के आरोप लगाए गए। इस पर कैप्टन को विधायकों और नेताओं से मुलाकात कर फोटो तक जारी करनी पड़े। कैप्टन सिसवां फार्म हाऊस में रहे और कार्यकर्ताओं से उनकी दूरी काफी बन गयी और पंजाब में कैप्टन विरोधी हवा अचानक तेज हो गई। कैप्टन की जनता के बीच सक्रियता भी न के बराबर थी, जिस कारण आम जनता में यह संदेशा जा रहा था कि कैप्टन फार्म हाउस में बैठकर सरकार चलाते हैं।

बेअदबी व नशे के मुद्दे पर कांग्रेस अहसज
कैप्टन अमरिंदर सिंह नशे व बेअदबी के मुद्दे पर पूरी तरह से घिर गए। कांग्रेस के तमाम नेता जनता के बीच जाकर असहज महसूस कर रहे थे। अगले कुछ माह में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने जा रहे थे, ऐसे में तमाम विधायक व संगठन के नेता असहज महसूस कर रहे थे। चुनावों से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुटका साहब की सौगंध खाकर कहा था कि वह नशे का सफाया पंजाब से कर देंगे। बेअदबी के मामलों में भी सरकार की अदालत से लेकर जनता के बीच खासी किरकिरी हुई।

पंजाब में गुटबंदी को बढावा दिया कैप्टन ने
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हरेक क्षेत्र में दो गुट बनाकर अपनी सरकार चलाई। किसी समय माझा का जरनैल सुखजिंदर रंधावा और तृप्त बाजवा को बनाकर उनकी हवा बनी, बाद में उनके विरोधी अश्वनी सेखड़ी व प्रताप बाजवा को जफ्फी डाल ली। इसी तरह से पूर्व विधायक कंवलजीत सिंह लाली व उनके भाई के बीच कैप्टन ने एक को जफ्फी डालकर चलते रहे। एक समय राणा गुरजीत सिंह की पीठ पर पूरी तरह से हाथ रखा तो बाद में राणा गुरजीत सिंह को हाशिये पर उनके कट्टर विरोधी भुल्लथ से विधायक सुखपाल खैहरा को गले लगा लिया। फिरोजपुर में एक समय पिंकी विधायक के कंधे पर हाथ रखा तो बाद में उनके विरोधी राणा सोढ़ी को ताकतवर किया। पूर्व सांसद मोहिंदर सिंह केपी के विरोधी सांसद चौधरी संतोख सिंह को पूरी ताकत दी और केपी को कमजोर किया। 

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