उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू के कार्यकाल के समापन पर बोले पीएम मोदी- यह बहुत भावुक क्षण है

नई दिल्ली.  उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम.वेंकैया नायडू को सोमवार को राज्यसभा में विदाई(M Venkaiah Naidu farewell) दी गई। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी बात रखी। नायडू बुधवार को पद छोड़ेंगे। जगदीप धनखड़ 11 अगस्त को पद एवं गोपनीयता की शपथ लेंगे। बता दें कि 18 जुलाई से शुरू हुआ संसद का मानसून सत्र(Parliament Monsoon Session) सत्र 12 अगस्त तक चलेगा। इसी सत्र में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव हुआ है।

आपके अनुभवों का लाभ देश को मिलता रहेगा
आज हम सब यहां राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू को उनके कार्यकाल के समापन पर धन्यवाद देने के लिए मौजूद हैं। यह इस सदन के लिए बहुत ही भावुक क्षण है। सभा के कई ऐतिहासिक क्षण आपकी गरिमामयी उपस्थिति से जुड़े हैं। अनेक बार आप कहते रहे हैं कि मैं राजनीति से रिटायर हुआ हूं परन्तु सार्वजनिक जीवन से नहीं थका हूं। आपके अनुभवों का लाभ भविष्य में देश को मिलता रहेगा। हम जैसे अनेक सार्वजनिक जीवन के कार्यकर्ताओं को भी मिलता रहेगा। हम इस वर्ष ऐसा 15 अगस्त मना रहे हैं जब स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री सब के सब ऐसे लोग हैं जो आज़ाद भारत में पैदा हुए, और सब के सब बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं। ये देश के नए युग का प्रतीक भी है। अगर हमारे पास देश के लिए भावनाएं हों, बात कहने की कला हो, भाषा की विविधता में आस्था हों तो भाषा, क्षेत्र हमारे लिए कभी भी दीवार नहीं बनती हैं ये आपने(एम. वेंकैया नायडू) सिद्ध किया है।

हमेशा युवाओं के लिए काम किया
मोदी ने कहा-आदरणीय सभापति महोदय आप तो देश के एक ऐसे  उपराष्ट्रपति हैं, जिसने अपनी सभी भूमिकाओं में हमेशा युवाओं के लिए काम किया है। आपने सदन में भी हमेशा युवा सांसदों को आगे बढ़ाया और उन्हें प्रोत्साहन दिया। उपराष्ट्रपति के रूप में आपने सदन के बाहर जो भाषण दिए, उनमें करीब 25% युवाओं के बीच में रहे हैं। ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है।

कंधे से कंधा मिलाकर काम करने का सौभाग्य
व्यक्तिगत रूप से मेरा ये सौभाग्य रहा है कि मैंने बड़े निकट से आपको अलग अलग भूमिकाओं में देखा है। आपकी बहुत सारी भूमिकाएं ऐसी भी रही, जिसमें आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने का भी मुझे सौभाग्य मिला है। उपराष्ट्रपति और सदन के सभापति के रूप में आपकी गरीमा और निष्ठा, मैंने आपको अलग अलग जिम्मेदारियों में बड़ी लगन से काम करते हुए देखा है। आपने कभी भी किसी काम को बोझ नहीं माना। आपने हर काम में नए प्राण फूंकने का प्रयास किया है। आपका ये जज्बा और लगन हम लोगों ने निरंतर देखी है। मैं प्रत्येक माननीय सांसद और देश के हर युवा से कहना चाहूंगा कि वो समाज, देश और लोकतंत्र के बारे में आपसे बहुत कुछ सीख सकते हैं।

भाषा की ताकत
कैसे कोई अपनी भाषा की ताकत के रूप में सहजता से इस सामर्थ्य के लिए जाना जाए और उस कौशल से स्थितियों को बदलने की सामर्थ्य रखे, ऐसे आपके सामर्थ्य को मैं बधाई देता हूं। आपकी किताबों में आपकी वो शब्द प्रतिभा झलकती है, जिसके लिए आप जाने जाते हैं। आपके one liners, wit liners होते हैं। उनके बाद कुछ कहने की जरूरत ही नहीं रह जाती। आपने दक्षिण में छात्र राजनीति करते हुए अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। तब लोग कहते थे कि जिस विचारधारा से आप जुड़े थे, उसका और उस पार्टी का निकट भविष्य में तो दक्षिण में कोई सामर्थ्य नजर नहीं आता है। लेकिन आप उस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के शीर्ष पद तक पहुंचे। आप कहते हैं कि मातृभाषा आंखों की रोशनी की तरह होती है, और दूसरी भाषा चश्मे की तरह होती है। ऐसी भावना हृदय की गहराई से ही बाहर आती है। आपकी मौजूदगी में सदन की कार्यवाही के दौरान हर भारतीय भाषा को विशिष्ट अहमियत दी गई है। वेंकैया जी की मौजूदगी में सदन की कार्यवाही के दौरान हर भारतीय भाषा को विशिष्ट अहमियत दी गई है। आपने सदन में सभी भारतीय भाषाओं को आगे बढ़ने के लिए काम किया। सदन में हमारी सभी 22 शेड्यूल भाषाओं में कोई भी सदस्य बोल सकता है, उसका इंतजाम आपने किया। आपकी ये प्रतिभा और निष्ठा आगे भी सदन के लिए एक गाइड के रूप में हमेशा काम करेगी। कैसे संसदीय और शिष्ट तरीके से भाषा की मर्यादा में कोई भी अपनी बात प्रभावी ढंग से कह सकता है। इसके लिए आप प्रेरणा पुंज बने रहेंगे। आपके कार्य, आपके अनुभव आगे सभी सदस्यों को जरूर प्रेरणा देंगे। आपने विशिष्ट तरीके से आपने सदन चलाने के लिए ऐसे मानदंड स्थापित किये हैं, जो आगे इस पद पर आसीन होने वालों को प्रेरित करते रहेंगे।

मोदी ने दिया श्लोक का उदाहरण
शास्त्रों में कहा गया है- न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा:, वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम् ।
अर्थात, जिस सभा में अनुभवी लोग होते हैं, वही सभा होती है और अनुभवी लोग वहीं हैं, जो धर्म, कर्तव्य की सीख दें। किसी भी सदस्य ने आपके किसी भी शब्द को कभी अन्यथा नहीं लिया। आपने हमेशा इस बात पर बल दिया कि संसद में व्यवधान एक सीमा के बाद, सदन की अवमानना के समान होता है। आपके मार्गदर्शन में राज्यसभा ने अपने मानकों को पूरी गुणवत्ता से पूरा किया है। आप माननीय सदस्यों को निर्देश भी देते थे, उन्हें अपने अनुभवों का लाभ भी देते थे और अनुशासन को ध्यान में रखते हुए प्यार से डांटते भी थे।

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