जितिन प्रसाद के भाजपा में शामिल होने पर कांग्रेस की बागी MLA अदिति ने कहा- ‘पार्टी को आत्ममंथन की जरूरत’

कांग्रेस के पास प्रदेश में बचे-खुचे कुछ प्रमुख नेताओं में शामिल पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद बुधवार को भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस के चर्चित नेता और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हाराव के राजनीतिक सलाहकार रहे कुंवर जितेंद्र प्रसाद के पुत्र जितिन कांग्रेस के ब्राह्मण चेहरा कहे जाते थे। 

भाजपा के लिए ब्राह्मण चेहरे के रूप में वह कितना लाभदायक सिद्ध होंगे और उन्हें इस भूमिका में कितनी स्वीकार्यता मिलेगी, यह तो भविष्य बताएगा लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उनकी आमद ने भाजपा को मनोवैज्ञानिक सियासी बढ़त दिलाने के साथ रुहेलखंड में मजबूती जरूर दिला दी है। इसका उसे वर्ष 2022 की चुनावी चौसर सजाने में लाभ मिलेगा। तो पहले से ही बिखर रही कांग्रेस की चुनौतियों में इजाफा होगा।

मध्य प्रदेश के प्रमुख नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद यूपी कांग्रेस के प्रमुख चेहरों में शुमार जितिन का भाजपा में जाना कांग्रेस की राजनीतिक कश्ती के लगातार कठिन भंवर में और ज्यादा फंसने का प्रमाण है। हालांकि जितिन का भाजपा में शामिल होना चौंकाने वाला नहीं है। दरअसल, कांग्रेस की तरह खुद जितिन की भी राजनीतिक कश्ती भंवर में फंसी हुई थी। 

लोकसभा के दो चुनाव से सफलता तो मिल ही नहीं रही थी, ऊपर से वह विधानसभा का चुनाव भी हार गए थे। पस्त कांग्रेस में भी बीते कुछ महीनों से हाशिए पर रहने जैसी स्थिति थी। ऐसे में जितिन के लिए नया राजनीतिक ठिकाना तलाशना मजबूरी हो गया था। इसमें उनके सामने भाजपा से बेहतर विकल्प नहीं था।

जितिन ने भाजपा को ही क्यों चुना
बसपा का हाल सभी के सामने है। सपा की राजनीति में रुहेलखंड के समीकरण जितिन के इस पार्टी के बारे में सोचने की राह में बड़ी बाधा थे। साथ ही दिल्ली की राजनीति में दिलचस्पी और खुद को ब्राह्मण चेहरे के रूप में तराशने की कोशिश भी उन्हें कांग्रेस के बाद सिर्फ  भाजपा का ही विकल्प देती थी। ऊपर से ज्यातिरादित्य सिंधिया की भाजपा में पहले से मौजूदगी और उनकी पकड़-पहुंच ने भी जितिन को भाजपा को विकल्प चुनने का रास्ता सुझाया। 

वैसे वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी जितिन के भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं सियासी गलियारों में फैली थीं। यह चर्चाएं अकारण नहीं थीं, लेकिन कुछ राजनीतिक परिस्थितियों और बताया जाता है कि प्रियंका गांधी के फोन पर उन्होंने भाजपा में ज्वाइनिंग नहीं की थी। राजनीतिक विश्लेषक प्रो. एपी तिवारी भी कहते हैं कि कांग्रेस में तवज्जो नहीं मिल रही थी और राहुल गांधी से भी पहले जैसे रिश्ते नहीं रहे थे।

बिरादरी के लिए बनाई थी ब्राह्मण चेतना परिषद
कानपुर के बिकरू कांड (विकास दुबे के एनकाउंटर) के बाद जितिन ने ‘ब्राह्मण चेतना परिषद’ बनाकर खुद को ब्राह्मण चेहरे के रूप में ढालने की कोशिश की है, लेकिन राजनीतिक समीकरणों व परिस्थितियों में उनके लिए इस पहचान को बहुत आगे ले जाना आसान नहीं दिखता है। यह जरूर है कि उनके रूप में भाजपा को रुहेलखंड खासतौर से तराई क्षेत्र में एक बड़ा चेहरा जरूर मिल गया है। बावजूद इसके कि इस इलाके में उनकी पकड़ व पहुंच अपने पिता जितनी मजबूत नहीं रह गई है। 

बिकरू कांड के बाद ब्राह्मणों की लामबंदी और प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा करने की मुहिम चलाने वाले जितिन उस पहचान को अब कितना परवान चढ़ा पाएंगे, यह समय बताएगा। पर, भाजपा उनकी मौजूदगी के सहारे प्रदेश के सियासी माहौल पक्ष में होने का संदेश जरूर देगी। इसका असर कांग्रेस और विपक्ष के कुछ अन्य नेताओं के भाजपा में शामिल होने के रूप में सामने आ सकता है। क्योंकि जितिन भी खुद की प्रासंगिकता साबित करने की कोशिश करेंगे। 

राजनीतिक शास्त्री प्रो. एसके द्विवेदी कहते हैं कि जितिन के आने से भाजपा को मिलने वाली मनोवैज्ञानिक बढ़त उसके मिशन 2022 को मजबूती देगी। विपक्ष के कुछ अन्य चेहरे भी उसके साथ जुडें़गे। साथ ही शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी सहित रुहेलखंड के राजनीतिक समीकरणों को भाजपा के लिहाज से मजबूत करेगी। रही बात कांग्रेस की तो भाजपा ने जितिन के जरिए 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए उसे और कमजोर करने की मुहिम की शुरुआत कर दी है।

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