देश की सेना के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास स्थापना (डीआरडीई) ने न्यूक्लियर, बायोलाजिकल और केमिकल (एनबीसी) कैनिस्टर नीलकंठ-पी (गैस मास्क में उपयाेग किया जाने वाला फिल्टरनुमा उपकरण) तैयार किया है। कैनिस्टर का यह नया अपग्रेड वर्जन लंबे समय तक सेना के जवानों को रासायनिक-जैविक एजेंटों से सुरक्षित रख आक्सीजन लेने में मदद करेगा। इससे पहले जो एनबीसी कैनिस्टर तैयार किया गया था वह एल्युमिनियम बॉडी का था और दो ही घंटे तक काम करता था। यह दोगुनी क्षमता के साथ प्लास्टिक बाडी में विशेष तौर पर तैयार किया गया है। खास बात यह कि एनबीसी कैनिस्टर मार्क-टू वर्जन का पहला आर्डर ग्वालियर की ही शक्ति इंजीनियरिंग कंपनी को दिया गया है, जो ढाई लाख एनबीसी कैनिस्टर तैयार करेगी।
जानकारी के अनुसार डीआरडीई ग्वालियर के वैज्ञानिकों की टीम ने वर्ष 2000 में एनबीसी कैनिस्टर तैयार किया था। इसका उत्पादन तब भी ग्वालियर की कंपनी शक्ति इंजीनियरिंग को दिया गया था। सेना के जवानों को रासायनिक-जैविक एजेंटों की मौजूदगी में आक्सीजन लेने के साथ सुरक्षित रखने के लिए फेस मास्क के पास कैनिस्टर को लगाया जाता है।
फिल्टर की तरह काम करता है कैनिस्टरः डीआरडीई की ओर से तैयार किए गए कैनिस्टर एक तरह से फिल्टर की तरह काम करते हैं। न्यूक्लियर, बायोलाजिकल और केमिकल एजेंट की मौजूदगी वाले वातावरण में जवानों को बचाने के लिए यह फिल्टर का कार्य करते हैं। इस वातावरण में से आक्सीजन ही मिल सके, यह मुख्यत: सही ढंग से यही काम करते हैं। शेष रासायनिक एजेंटों को यह अंदर नहीं आने देते हैं।
एनबीसी सूट मार्क-5 भी डीआरडीई ने बनाया थाः सेना के जवानों को रासायनिक, जैविक हमलों से बचाने के लिए ग्वालियर डीआरडीई लैब ने ही एनबीसी सूट मार्क-5 तैयार किया है जो कि सबसे अत्याधुनिक सूट है। इस सूट को बनाने के तरीके को इंडियन स्टैंडर्ड भी माना गया है, जिससे भारत अब दुनिया के चुनिंदा देशों में शामिल हुआ है। रासायनिक-जैविक हमलों से बचाव की मानक तकनीक अब दुनियाभर के देश भारत से ले सकेंगे। भारतीय मानक ब्यूरो से मान्यता के बाद भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर हुआ है। यह मानक जैविक हमलों से बचाव सामग्री की गुणवत्ता के बारे में तुलनात्मक रैकिंग या स्क्रीनिंग की भी जानकारी प्रदान करता है। एनबीसी सूट को भी खास तरीके से तैयार किया गया है, जिस पर रासायनिक जैविक हमलों का असर नहीं होता है।
लेयर-4 लैब भी ग्वालियर में बनेगीः डीआरडीई ने कठिन प्रयोगों, व्यापक परीक्षण और मूल्यांकन के बाद रासायनिक-जैविक खतरों का मुकाबला करने के लिए अनेक उत्पादों (सूट, मास्क, जूते, चश्मे) और तकनीक (बायो डाइजेस्टर) का विकास किया है। डीआरडीई द्वारा बनाए गए उपकरण सेना और बड़े विभागों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हैं। सबसे लेटेस्ट एनबीसी (न्यूक्लियर बॉयोलॉजिकल एंड केमिकल) सूट मार्क-फाइव उत्पाद है। वहीं डीआरडीई की लेयर-4 लैब जो कि पुणे के बाद देश में दूसरे नंबर की लैब होगी। यह ग्वालियर के महाराजपुरा में बनेगी। रक्षा मंत्रालय से स्वीकृति मिल चुकी है। इसका डिजायन तैयार किया जा रहा है।