(कथित) जाटबैल्ट में भारतीय जनता पार्टी को किसी कद्दावर जाट नेता की तलाश थी क्योंकि सोमपाल शास्त्री (सुपुत्र रघुवीर सिंह शास्त्री, पूर्व उप-कुलपति गुरुकुल कांगड़ी) पार्टी से किनारा कर गये थे, यद्यपि शास्त्री जी को भाजपा ने केन्द्र में मंत्री बनाया था। चौधरी चरण सिंह के आशीर्वाद से सक्रिय राजनीति की शुरुआत करने वाले जाट नेता सत्यपाल मलिक को भारतीय जनता पार्टी ने आगे किया और सीधे सन् 2004 में पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। बी.के.ड़ी., कांग्रेस, जनतादल, लोकदल, जनमोर्चा, समाजवादी पार्टी की परिक्रमा करने वाले श्री मलिक को सम्भवतः घाट-घाट का पानी पीने का प्रीमियम भाजपा ने दिया और उन्हें 23 अगस्त 2018 को बिहार का राज्यपाल बनाया गया। आजकल वे मेघालय के राज्यपाल हैं। सभी जानते हैं कि राजनीतिक दल अपने थके-हारे नेता का सम्मान करते हुए किसी राज्य का गवर्नर बना देते हैं। राजनीतिक भाषा में इसे ‘पॉलिटिकल एडजस्टमेंट’ कहा जाता है। किसान मसीहा चौ. चरणसिंह की नीतियों के प्रति असम्मान दिखा कर सत्यपाल मलिक 1984 में कांग्रेस में शामिल हो गये थे। बाद में कई दल बदले। बागपत में चौ. अजीत सिंह से चुनाव हार चुके थे, इस लिये वे मुजफ्फरनगर में अपने लिये राजनीतिक जमीन तलाशने को कई बार यहां आये। तब जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष विजय मलिक जी के निवास स्थान पर उनसे भेंट हुई। मुजफ्फरनगर से लोकसभा चुनाव लड़ने की सम्भावनाओं पर पहले गोलमोल जवाब दिया और जब डॉ. संजीव बालयान का टिकट लगभग पक्का हो गया तो कहा कि मेरा यहां से चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है, मुजफ्फरनगर में मेरे बहुत से लोग हैं, उनसे मिलने आता हूं।

राज्यपाल पद सम्मानजनक अवश्य है किन्तु जिन नेताओं की सदा से सक्रिय राजनीति में दिलचस्पी रही और आदतन कीचड़ उछालने के अभ्यस्त हैं वे राज्यपाल जैसे गरिमापूर्ण पद के सम्मान की रक्षा में नाकाम रहते हैं। सत्यपाल मलिक के साथ कुछ ऐसा ही है।

अपनी वाचालता और भावनात्मक भाषणों के जरिये वे मेरठ कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष बने। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन के दौरान जब वे उनके साथ मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में बोले तो हजारों लोग उनके भाषण के दौरान तालियां बजाते रहे। पुरानी पीढ़ी के लोग जानते हैं कि कांग्रेस के दिग्गज नेता बाबू जगजीवन राम की राजनीतिक हैसियत खत्म करने की रणनीति के तहत उनके पुत्र सुरेश व सुषमा नाम की लड़की के गन्दे फोटो प्रकरण में किन-किन युवा नेताओं का नाम आया था। लच्छेदार भाषण और हवाई बातों तथा गम्भीर चिन्तन की अलग-अलग धारायें हैं जिनसे नेता का कद व व्यक्तित्व निर्धारित होता है। जनता उसे उसी रूप में देखती और मानती है।

पहले जयपुर, फिर जोधपुर के जाट सम्मेलनों में सत्यपाल मलिक ने राज्यपाल होते हुए राजनीति में सीधा हस्तक्षेप करते हुए उसी नेता और उसी पार्टी के विरुद्ध ताल ठोकी जिसने उन्हें राज्यपाल के पद पर बैठाया। जाटों के सम्मेलनों में कहा कि जाट 600 साल तक दुश्मनी नहीं भूलता। 7 मई को मुजफ्फरनगर, बघरा और मेरठ के जाट-मुस्लिम अधिवक्ताओं की बैठक में भी कहा- जाट व सिख 300 सालों तक अपने दुश्मन को नहीं भूलता। ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला इंदिरा गांधी से लिया गया था, यह नहीं भूलना चाहिये। यह भी कह दिया कि लालकिले पर झंडा फहराने का जाटों का अधिकार है क्योंकि जाटों-सिखों ने बड़ी कुर्बानियां दी हैं। नरेन्द्र मोदी को सुधर जाने की चेतावनी भी दी और पहले से बड़ा किसान आन्दोलन चलाने का आह्वान भी किया। उन्होंने कहा कि रिटायर होने के बाद मैं जाटों और सिखों के बीच जा कर बड़े नेताओं की पोल खोलूंगा। वे जो कुछ कह रहे हैं उससे मोदी विरोधियों को राहत मिल रही है। उन्हें खुशी है कि गालियां देने वाली चौकड़ी में भाजपा का ही एक नेता शीघ्र ही शामिल होने वाला है।

यक्ष प्रश्न तो यह है कि अनर्गल प्रलापों से देश की राजनीति किस दिशा में जायेगी?

गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'