जो ताकतें देश को अस्थिर-कमजोर करने के लिए मुल्क भर में दशकों से सिल सिलेवार धमाके कराती आई हैं, वही अब देश में हिंदू त्योहारों व शोभायात्राओं पर सिल सिलेवार हमले, लूटमार और आगजनी कर रही हैं। हिम्मतनगर, बनासकाठा, आणद, करौली, गुलबर्ग, खारगोन और राजधानी दिल्ली का जहांगीरपुरी। जैसा करौली व खारगोन आदि में हुआ उस पर देश व शासन संभालने वालों को गुमराह या विचलित होने के बजाय ऐसी कार्यवाही की जरूरत हैं ताकि भविष्य में ये तत्व सिर न उठा सकें। पहले अशोक गहलोत, फिर असदुद्दीन ओवैसी और अब अरविंद केजरीवाल ने दंगाइयों के प्रति सहानुभूति प्रकट कर अपनी मानसिकता प्रकट कर दी है। सबसे अधिक शरारती और शैतानी रवैया मीडिया के उस वर्ग से हैं जो जहांगीरपुरी के पूर्व नियोजित षड्यंत्र को दरकिनार कर दो गुटों का झगड़ा बता कर देश के गद्दारों को रूपोश करने की कोशिश में जुटा है। विपक्ष भुस में आग लगा कर नरेंद्र मोदी पर हमलावर है।
इन सभी को दंगाइयों के हाथों में तलवारें, जलते हुए वाहन, छतों से फेंके गए पत्थर और पेट्रोल बम तथा नारा ये तदबीर के नारे दिखाई-सुनाई नहीं दिया? इससे पहले कि लोगों का विश्वास शासन चलाने वालों से उठ जाए, जरूरी और परिणामदायक कदम उठाने अनिवार्य है।
गोविंद वर्मा
संपादक देहात