बांग्लादेश के 64 जिलों में से 61 में हिन्दुओं की आबादी है जहां जमात-ए-इस्लामी के गुंडे दमनकारी सेना से मिलकर 1947 व 1971 के कालखंड से भी भयंकर करतूतें कर हिन्दू समाज से पैशाचिक क्रूरता बरत रहे हैं। भारत में हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का राग अलापने वाले फर्जी सेक्युलरवादियों ने हिन्दुओं के नरसंहार व उत्पीड़न पर एक शब्द नहीं बोला है, हाँ, यह जरूर कहा है कि भारत में भी बांग्लादेश जैसा हाल होना चाहिए।
भाईचारे की दुहाई देने वाले सीएए और एनआरसी, हिजाब मुहिम के बीच दुर्गा पूजा, हनुमान जयंती पर जहांगीरपुरी, नूंह, हावड़ा, हुबली, कानपुर, प्रयागराज आदि शहरों में अपने भाईचारे का प्रमाण दे चुके हैं और आगे की तैयारी में जुटे रहते हैं।
हापुड़ के सिंभावली थाना क्षेत्र के ग्राम वैठ के निवासी अब्दुल्ला ने थाने में रपट लिखाई है कि गांव के कुछ लोग (मुस्लिम) उसे गांव न छोड़ने पर हत्या करने की धमकी दे रहे हैं क्यूंकि उसने 30 जुलाई को स्याना सीमा पर शिवभक्तों के लिए कांवड़ सेवा शिविर लगाया था। जो शख्स वास्तव में भाईचारा स्थापित करना चाहता है, वह इन सेक्युलरवादियों की आँखों में कांटे की तरह खटकता है। इन्हें तो उन जुनूनी लोगों की दरकार है जो खुद को बाबर व औरंगजेब की औलाद समझते हैं।
भाईचारे के खोखले नारे लगाने वालों के मन में देश की राजनीतिक व्यवस्था के प्रति कितना ज़हर भरा है, समय-समय पर इसकी पोल खुलती रहती है।
अभी 2 अगस्त को मुरादाबाद जिले के कुंदरकी कस्बे में मौहल्ला कायस्थान में रहने वाले अलीदाद खान की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। उनका बेटा दिलनवाज खान स्टेशन रोड स्थित मस्जिद के इमाम मुफ्ती मोहम्मद राशिद के पास पहुंचा और उससे नमाज़-ए-जनाज़ा पढ़वाने की गुजारिश की। इमाम ने कहा कि तुम्हारा बाप और तुम लोग भारतीय जनता पार्टी को वोट देते हो, नमाज नहीं पढ़वाऊंगा। मस्जिद में जो 2-4 और लोग बैठे थे, उन्होंने भी इमाम की हाँ में हाँ मिलाई। मरने वाला किसी राजनीतिक दल का समर्थक हो, इमाम को तो नमाज़ पढ़वानी चाहिए थी क्यूंकि अलीदाद मुस्लिम था और इस्लाम पर ईमान रखता था। राशिद के दिल में तो घृणा भरी थी। इन्हें भाजपा सरकार का आयुष्मान कार्ड भी चाहिए, मुफ्त का राशन भी चाहिए व सभी सरकारी सहूलियते चाहिए लेकिन भाजपा समर्थक किसी मुस्लिम के जनाजे की नमाज नहीं पढ़वाएंगे। सोचते हैं खुदा इन्हें जन्नत में 72 हूरों के पास भेजेगा। झूठे और फर्जी सेक्युलरवादियों ने अपनी राजनीतिक दुकान चलाने के लिए हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की यह गत बना दी है।
गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'