15 सितंबर: यूपीए के नये अवतार-इंडि अलायंस के बिहारी नेता नीतीश कुमार को जैसे राजनीतिक गलियारों में पलटू राम कहा जाता है, वैसे ही मराठवाड़ा के नेता शरद पवार की राजनीतिक पहचान बेपेंदी के लोटे के रूप में है। इन्हीं शरद पवार के दिल्ली निवास स्थान पर
इंडि गठबंधन की १४ सितम्बर को बैठक हुई।
बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस में पवन खेड़ा ने गठबंधन के नेता के नाम की घोषणा या सीटों के बटवारे संबंधी कोई सूचना देने के बजाय बताया कि गठबंधन के नेताओं ने निर्णय लिया है कि देश के टीवी चैनलों के 14 पत्रकारों का बहिष्कार कर दिया गया है। इनके द्वारा प्रायोजित डिबेट में कांग्रेस सहित कोई भी दल हिस्सा नहीं लेगा।
पवन खेड़ा ने जिन 14 पत्रकारों के बहिष्कार की घोषणा की, वे नरेन्द्र मोदी या भाजपा समर्थक माने जाते हैं। पत्रकारों के कांग्रेसी बहिष्कार की एक विशेषता यह रही कि कांग्रेसी बहिष्कार की लिस्ट में अंजना ओम कश्यप, श्वेता सिंह, रजत शर्मा, दीपक चौरसिया जैसे दक्षिणपंथी पत्रकारों के नाम नहीं हैं। मजे की बात यह है कि जिन मीडिया चैनलों में बहिष्कृत पत्रकार कार्यरत हैं, उन टीवी चैनलों को कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से बख्श दिया है। आश्चर्य है कि सुशान्त सिन्हा को बहिष्कृत सूचि में डाला गया है, जबकि वे टीवी पर कोई डिबेट आयोजित नहीं करते।
गौरतलब है नरेन्द्र मोदी को सत्ता से हटाने की सुपारी लिए बैठे बिहारी ठग्गू ने चन्द दिनों पहले अपने चैनल पर कहा था कि I.N.D.I.A. को मोदी से टक्कर लेने से पहले गटर में पड़े पत्रकारों को 'सुधारना' होगा। यह पत्रकार आजकल कांग्रेस के प्रवक्ता के रूप में काम कर रहा है। कांग्रेस की जेब में बैठे इस बिहारी पत्रकार ने ही गोदी मीडिया का शिगूफा छोड़ा था।
भले ही राहुल गांधी विदेश जाकर भारत में मीडिया पर अंकुश का झूठा प्रचार करते हों, लेकिन सच्चाई यह है कि जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अब राहुल गांधी प्रेस (मीडिया) को अपने जूते के नीचे दबाये रखने में विश्वास रखते हैं।
अभी कुछ महीने पहले राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस की बीट पर काम करने वाले एक पत्रकार को भाजपा के लिए सवाल उठाने का आरोप लगा कर जलील किया। यही नहीं, उस पत्रकार की हवा निकलने की बात कह कर भरी प्रेस कांफ्रेंस में उसकी खिल्ली उड़ाई। अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल ने पत्रकारों से धक्का मुक्की की और उस पत्रकार को भी बुरी तरह झिड़क दिया जो रात दिन राहुल के गुणगान में लगा रहता है।
अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में प्रेस की आजादी की दुहाई देकर जवाहरलाल नेहरु चाहते थे कि प्रेस उनकी शान में कसीदे पढ़े और उनकी गुट निरपेक्षता, समाजवादी नीति, मिश्रित अर्थव्यवस्था तथा उनकी पाश्चात्य संस्कृति के विचारों का समर्थन करे। सन् 1960 में कॉन्सीटूशन क्लब (दिल्ली) में आयोजित पत्रकार सम्मेलन में पंडित नेहरु का पूरा भाषण इन्हीं विचारधाराओं के इर्द-गिर्द घूमता रहा। सम्मेलन में शामिल नेहरु जी के अति निकटस्थ व प्रिय, वीके कृष्ण मेनन ने साफ-साफ कहा था कि पत्रकार एडिटोरियल नहीं छापते, प्रोपराइटोटियल छापते हैं।
'ऑरगेनाइजर' के संपादक, प्रखर राष्ट्रवादी पत्रकारिता के प्रकाश स्तम्भ के केवल रतन मलकानी पर शिकंजा कसने के उद्देश्य से जवाहर लाल नेहरु ने 1951 में संविधान में पहला संशोधन कराया था।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री पद पर रहकर इन्दिरा गाँधी ने स्वतंत्र प्रेस की धारणा को नहीं पनपने दिया। आपातकाल में कितने पत्रकार जेल गये, कितने अखबारों के सरकारी विज्ञापन बन्द हुए, कितने ब्लैकलिस्ट हुए, इस सब का रिकार्ड आज भी मौजूद है। रामनाथ गोयनका (इंडियन एक्सप्रेस) को इंदिरा गाँधी ने कैसे परेशान किया, यह कोई पत्रकार भूल नहीं सकता। पुराने पत्रकार नहीं भूले हैं कि हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्टर सुनीता एरन को इस लिए नौकरी से निकाल दिया गया था कि उन्होंने रायबरेली की स्पॉट रिपोर्टिंग में लिख दिया था कि रायबरेली में चारों तरफ बरगद ही बरगद के निशान दिखाई दे रहे हैं और रात स्वप्न में भी मुझे बरगद दिखाई दिया। दरअसल बरगद इन्दिरा गांधी के प्रतिद्वंदी राजनारायण का चुनाव चिह्न था। इन्दिरा गांधी ने इन्द्रकुमार गुजराल को सूचना प्रसारण मंत्री पद से इसलिए हटाया कि वे पत्रकारों के प्रति नर्मरुख रखते थे। कांग्रेस के अखबार-नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज़ के सैकड़ों पत्रकारों को नौकरी से निकाल बाहर किया गया जबकि कांग्रेसी नेता अरबों रुपये की सम्पत्ति के तलबगार हैं। राजीव गांधी ने कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज के जरिये मानहानि का कानून बनवाने का असफल प्रयास किया।
सोनिया गांधी ने नेहरु-गांधी परिवार की सत्ता पर काबिज होने की अधिनायकवादी परम्परा को पुष्ट किया है। प्रियंका-राहुल को शिष्टाचार सिखाने की सलाह देकर पी.वी. नरसिम्हाराव सोनिया की आँखों की किरकिरी बन गए थे। सोनिया ने उनके निधन के बाद श्री नरसिम्हा राव का पार्थिव शरीर कांग्रेस मुख्यालय में श्रद्धांजलि हेतु भीतर लाने नहीं दिया। ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने विदेशी होने के कारण उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाने से इंकार किया तो वे उन से खार खाने लगीं। प्रणब मुखर्जी आरएसएस मुख्यालय गये तो कांग्रेस ने उनसे किनारा कर लिया। प्रणव दा को 'भारतरत्न' से नवाजे जाने पर सोनिया और पूरी कांग्रेस को साँप सूंग गया। कांग्रेस के निष्ठावान व वरिष्ठ नेताओं को पार्टी छोड़ने पर मजबूर किया गया। इन बातों का सन्दर्भ देने का कारण यह है कि प्रियंका व राहुल दोनों अपनी माँ से निर्देशित हैं। राहुल जो कुछ कह रहे हैं, कर रहे हैं, वह सब सोनिया गांधी की इच्छाओं और रणनीति के मुताबिक है। हिन्दुत्व या सनातन के विरुद्ध षडयंत्र, सड़क से संसद तक हंगामा, ट्रैक्टर व टायर फूंकना, मोदी को सिलसिले वार गालियां देने का अभियान, न्यायपालिका और मीडिया पर दबाब बनाने की मुहिम की असली सूत्रधार तो सोनिया गांधी ही हैं।
पूरे देश ने देखा है कि कैसे अनर्व गोस्वामी, सुधीर चौधरी और मनीष कश्यप जैसे पत्रकारों का उत्पीड़न इसी नीति के तहत किया गया। मनीष कश्यप पर 13 एफ.आई.आर दर्ज कर उन्हें एमके स्टालिन और तेजस्वी यादव ने रासुका लगा कर अब भी जेल में ढूंसा हुआ है।14 पत्रकारों का बहिष्कार कर कांग्रेस ने मीडिया को सन्देश दिया है- या तो 'राहुल मेव जयते' कहो, नहीं तो गटर में जाने को तैयार रहो। इस हथकंडे का असर भी हुआ है, भारत का मीडिया विभाजित हो कर कांग्रेस से अपना अपमान करा रहा है। जिस प्रकार न्यायपालिका पर दबाव का झूठा आरोप लगा कर अपने अनुकूल फैसले कराने में कांग्रेस कामयाब होती है, ऐसे ही प्रेस या मीडिया को लांछित करने का उसे लाभ मिलता है। फिलहाल तो सोनिया की यह रणनीति कामयाब दिखती है। आगे क्या होगा त्यह भविष्यवाणी कौन कर सकता है? हाँ, यह जरूर समझा जा सकता है कि सब कुछ पुत्रमोह में हो रहा है।
गोविन्द वर्मा