दिल्लीवासी सराहना के पात्र हैं क्योंकि उन्होंने लोकतंत्र का लबादा ओढ़े झूठ, फरेब और अहंकार की राजनीति करने वाले दो रंगे सियारों को एक साथ पटकनी दे दी।

कहने को यह चुनाव दिल्ली विधानसभा का था किन्तु इस पर पूरे देश की निगाहें थीं। संजय राउत मुंबई से और तेजस्वी पटना से बैठे-बैठे केजरीवाल की झोली में 70 में से 70 सीटें डालने का फार्मूला सुझा रहे थे, तो अखिलेश चुनाव प्रचार में उतर कर भविष्य‌वाणी कर गए कि केजरीवाल की तीसरी बार ताजपोशी होने जा रही है। राहुल ने इंडी गठबंधन की पोलपट्टी खोली, स्पष्ट कर दिया कि भानुमती के कुनबे में सब गोलमोल है। 70 में से एक भी सीट न जीत पाने वाले राहुल का भ्रम एक बार फिर टूटा। शर्मनाक हार पर केजरीवाल से आत्मनिरीक्षण की बात कहने वालों को लोग मुर्ख ही बतायेंगे क्योंकि उसने अन्ना हजारे को धता बताने के साथ ही लूट खसोट की महायोजना बना डाली थी। सत्ता की मलाई और मुफ्त की रेवड़ियां बांट कर केजरीवाल ने पालतू रोबोटों की सेना खड़ी की किन्तु जब यह धोखे की टट्टी सामने आ गई तो झूठ फरेब की नौटंकियां काम नहीं आई और बेईमानी का किला ताश के पत्तों की तरह ढह गया।

केजरीवाल राजनीति पर बदनुमा दाग है। वह समझ नहीं पाया कि न केवल दिल्ली के मतदाता बल्कि देश का प्रत्येक विवेकशील नागरिक उसे धूर्त और प्रपंची नटवरलाल के रूप में देखता है। सैकड़ों हजारों नहीं, करोड़ों की संख्या में ऐसे भारतीय हैं जो दिल्ली के मतदाता न होते हुए भी उसकी हार और राजनीतिक पराभव की कामना कर रहे थे।

जिस दिल्ली में राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा और कई कई नगर निगम हों, वहां कांग्रेस की बार-बार होने वाली दुर्गति क्या सन्देश देती है? 70 के सदन में 0 सीट आने पर क्या मां, बेटी व बेटे को कुछ शर्म आएगी? विदेशों तक में भारत की प्रतिष्ठा व सम्मान को गिराने वाले राजधानी में अपनी प्रतिष्ठा के दफ्न होने पर क्या आत्मचिन्तन करेंगे। 27 वर्षों बाद सत्तारूढ़ होने वाली भाजपा के अपने वायदे तथा जनआकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए बिजली की गति से काम करना होगा। दिल्ली चुनाव परिणामों की धमक पंजाब तक जाएगी। देखना है आगे क्या होता है।

गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'