जब मैं बाल अवस्था से किशोर अवस्था में प्रविष्ठ हुआ तब सहारनपुर के मूर्धन्य पत्रकार, शैलीकार, साहित्कार, स्वाधीनता संग्राम सेनानी कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हिन्दी साहित्य-जगत में छाये हुए थे। उनके लेखन के मूल में सदा ‘रचनात्मकता’ रही। सहारनपुर से ‘विकास’ साप्ताहिक तथा ‘नया जीवन’ मासिक प्रकाशित करते थे। इन दोनों में ही उनके रचनात्मक विचारों से ओत‌-प्रोत प्रेरणादायक लेख प्रकाशित होते थे। प्रभाकर जी ने अनेक प्रेरणास्पद पुस्तकें लिखीं, जैसे- ‘बाजे पायलिया के घुंघरू’, दीप जले, ‘शंक बजे’ आदि। उनकी एक पुस्तक है- ‘माटी हो गई सोना।’

प्रभाकर जी की यह पुस्तक दर्शाती है कि रचनात्मक विचारों वाला पुरुषार्थी व्यक्ति यदि ठान ले तो मिट्टी को भी सोना बना सकता है।

मैं मुजफ्फरनगर की एक ऊर्जावान शख्सियत और भारतीय जनता पार्टी के निष्ठावान नेता डॉ. सुभाष चंद्र शर्मा का उल्लेख करना चाहूंगा। सन् 2019 में डॉ. सुभाष चंद्र शर्मा को माननीय राज्यपाल उत्तर प्रदेश ने राज्य सरकार की संस्तुति पर आयुर्वेदिक तथा यूनानी तिब्बी चिकित्सा पद्धति बोर्ड का अध्यक्ष मनोनीत किया। हम सभी जानते हैं कि एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति ने प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्ध‌तियों को पीछे धकेल दिया है। डॉ. सुभाष चन्द्र शर्मा ने आयुर्वेदिक चिकित्सा की पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं अपने निजी अनुभवों के आधार पर प्रदेश में भारतीय चिकित्सा पद्ध‌तियों के पुर्नरुत्थान के लिए प्रयास किये किन्तु उनका बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में अतिमहत्वपूर्ण कार्य लखनऊ में विधानसभा एनेक्सी के समीप स्थित खंडहर हो चुके आयुर्वेद भवन का पुर्नर्निमाण कराना था। 26 वर्षों से इस भवन पर ताला लटका हुआ था। इतने बड़े अन्तराल से बन्द पड़ा आयुर्वेद भवन सर्दी, गर्मी, बरसात के मौसम की मार झेलते-झेलते जर्जर हो चुका था। डॉक्टर साहब ने खंडहर हो चुके भवन को गिराकर उस स्थान पर नया भवन बनाने का संकल्प लिया। विभागीय अधिकारियों ने शुरू में आनाकानी दिखाई। नियमों की बाधायें सामने आईं। बन्द पड़े भवन का 26-27 वर्षों का गृहकर, वाटर टैक्स, जो लगभग 26 लाख रुपये हो चुका था, चुकाया नहीं गया था। खंडहर को गिराना, नये भवन का नक्शा पास कराना तथा नये भवन की लागत निकाल कर अर्द्धशासकीय संस्था उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट्स लिमिटेड से भवन निर्माण कराना एक थकाने वाली जटिल प्रक्रिया थी। सामान्यतः कोई राजनीतिक नेता इन झमेलों से बचता है किन्तु डॉ. सुभाष चंद्र शर्मा ने जीवट के साथ ये बाधाएं और सरकारी औपचारिकतायें पूरी कीं तथा 18 नवम्बर, 2019 को आयुर्वेद‌ भवन की भूमि पूजन एवं आधारशिला रखी। आज 32, सरोजिनी नायडू मार्ग लखनऊ पर दो मंजिला इमारत खड़ी है जो डॉ. सुभाष चंद्र शर्मा की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं जिजीविषा की प्रतीक है।

डॉ. सुभाष चंद्र शर्मा को इस रचनात्मक सोच के संस्कार अपने परिवार से मिले। उनके दादा राजवैद्य पंडित हरीदत्त शर्मा का औषधालय मुजफ्फरनगर में रुड़की रोड पर नगरपालिका कन्या विद्यालय के सामने था। वे प्रज्ञाचक्षु थे, आयुर्वेद चिकित्सा में प्रवीण और नाड़ी विशेषज्ञ थे। उनके पश्चात पिता चन्द्रमणि शर्मा ने आयुर्वेद चिकित्सा का उत्तरदायित्व संभाला। डॉ. सुभाष चंद्र शर्मा को चिकित्सा का महत्वपूर्ण कार्य विरासत में मिला।

एक बात आज तक समझ में नहीं आई। योगी सरकार ने बोर्ड के अध्यक्ष का कार्यकाल मात्र एक वर्ष का क्यों रखा है? यह कार्यकाल यदि 5 वर्षों का होता तो डॉ. सुभाष चंद्र शर्मा प्रदेश में देसी चिकित्सा पद्धतियों की पुनर्स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान देते। सरकार को उनका कार्यकाल बढ़ाना चाहिए था, इससे भारतीय चिकित्सा पद्धति को बहुत बल मिलता। उन्होंने नया आयुर्वेद भवन निर्मित कराकर एक बड़ा योगदान किया है जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।

गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'