22 अक्टूबर: क्या आपको याद है कि 27 अगस्त, 2013 को ग्राम मलकपुर (तहसील-जानसठ) से आ रहे ममेरे भाइयों सचिन व गौरव की कवाल ग्राम में हत्या कर दी गई थी? सचिन के शरीर पर 17 और गौरव के जिस्म पर 15 घाव हुए थे। कवाल का शाहनवाज भी मरा था। तत्कालीन जिला अधिकारी सुरेन्द्र सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मंजिल सैनी ने तत्काल मौका-ए-वारदात पर पहुंच हालात को फौरन काबू किया। पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से पता चला कि सचिन व गौरव ही हत्या बर्बरता पूर्वक की गई थी। शरीरों पर नुकीली चीज़ घोपने व पत्थर से कुचले जाने के दर्जनों निशान थे। डीएम व एसएसपी ने 7 लोगों को हिरासत में लेकर स्थिति को नियंत्रित किया।
7 सितंबर 2013 को नंगले मदौड़ में महापंचायत के बाद जिले में क्या हुआ, यह सारा देश जानता है लेकिन 27 अगस्त की आधी रात को लखनऊ से आये टेलीफोन का ज़िक्र मुज़फ्फरनगर-शामली तक होने लगा था। इस टेलीफोन सन्देश के बाद हिरासत में लिये गए सभी लोगों को रात में ही हवालात से छोड़ दिया गया और कुशल प्रशासक माने जाने वाले दोनों अधिकारियों-सुरेन्द्र सिंह व मंजिल सैनी का आधी रात में ही मुज़फ्फरनगर से लदान कर दिया गया।
सवेरे पूरे इलाके में हवा फैल गई कि आजम खान के आदेश से साचिन-गौरव के हत्यारे छोड़ दिए गए और जिन दो योग्य प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों की कार्यप्रणाली से पूरा जिला आश्वत था, उन्हें आधी रात को ही चार्ज छोड़ने का हुकम दिया गया। यद्यपि आजम खान ने इन आरोपों का खंडन किया लेकिन उत्तर प्रदेश के लोग जानते हैं कि समाजवादी पार्टी की सरकार के दौर में आजम खान का क्या दबदबा और जलवा था।
जौहर विश्वविद्यालय और जौहर ट्रस्ट के नाम पर कैसे दलितों की जमीनें हड़पी गईं, कैसे नहर तथा सरकारी जमीनों पर कब्जे हुए, ये मामले अदालतों में अभी लंबित हैं। रामपुर के नागरिक जानते हैं कि कचहरी का एक अदना टाइपिस्ट किन हथकंडों के जरिये बुलंदियों तक पहुंचा। कैसे वह बड़े-बड़े अधिकारियों को अपने जूते पालिश कराने का रौब झाड़ता था और कैसे सार्वजनिक रूप से अधिकारियों के साथ बदसलूकी करता था।
एम.पी.एम.एल.ए. कोर्ट के जज शोभित बंसल ने आजम खान के लख्तेज़िगर अब्दुल्ला आजम का फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के वाद में पिता-माता व पुत्र को 7-7 वर्ष की कैद और आजम, तजीन फात्मा व अब्दुल्ला पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी ठोका है। पुरानी आदत के मुताबिक आज़म खान ने तंज कसते हुए कहा कि अदालत ने न्याय नहीं किया, सिर्फ फैसला दिया है, हम अपील करेंगे। यूं हमारी अदालतें महान हैं। आतंकियो के लिए रात में खुल सकती हैं, फर्जी वाड़ा करने व प्रधानमंत्री के विरुद्ध षड्यंत्र रचने वाली को जमानत दे सकती हैं और धमाकों में निर्दोषों की हत्या करने वालों के मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल सकती हैं। बड़े से बड़े अपराधी के लिए रोशनी की एक किरण तो बाकी रहती ही है। अखिलेश यादव कह रहे हैं कि आजम खान को मुसलमान होने की वजह से सजा दी गई यानी न्याय करने वाला जज भी भगवाधारी हो गया। आजम खान पर तो अभी और भी मुकदमे हैं। जो जज उन्हें आरोप मुक्त करेगा क्या वह न्यायकारी जज न होकर पक्का सेक्यूलरिस्ट होगा, और जो सजा देगा, वह जज साम्प्रदायिक या मुस्लिम विरोधी माना जायेगा।
गोविन्द वर्मा