मानव के लिये आजीविका, धन, सम्पदा आदि अनिवार्य आवश्यकतायें हैं किन्तु अन्य ऐसी निधियां एवं सम्पदायें भी हैं जिन्हें पाकर व्यक्ति निर्धन होकर भी जीवन-पर्यन्त अभिभूत रहता है। महान् आत्माओं का दर्शन, सापिप्य, आशीर्वाद, आदमी की सबसे बड़ी सम्पदा या निधि है। उत्कृष्ट देशभक्त, महान् स्वाधीनता सेनानी, प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान काबुल में भारत की अन्तरिम सरकार का गठन करने वाले, भारत की आर्य संस्कृति के प्रतीक पुरुष राजा महेन्द्र प्रताप सिंह जी की पुण्य तिथि पर मैं उनको कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं। मैं खुद को अति सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे इन महापुरुष का अल्पकालिक सामिप्य और आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
प्रमुख शिक्षाविद् और ‘देहात’ अखबार तथा राजा महेन्द्र प्रताप प्रेम विद्यालय नारसन के संस्थापक चौ. शेरसिंह जी से एवं मोल्हाहेड़ी रियासत परिवार के सदस्यो से पिताश्री स्व. राजरूप सिंह वर्मा का निकट सम्पर्क रहा। इस नाते और पत्रकार के रूप में राजा जी और पिता जी के बीच पारस्परिक मधुर संबंध थे। मोल्हाहेड़ी परिवार के एक सदस्य धर्मवीर सिंह एडवोकेट रेलवे स्टेशन रोड पर रहते हैं। राजा जी देहरादून जाते समय उनके निवास स्थान पर ठहरे हुए थे। मैंने प्रथम बार उनके दर्शन वहीं किये थे। दूसरी बार उनके दर्शन तब हुए जब वे हमारे सरवट रोड स्थित ‘देहात भवन’ में पधारे थे। एक घंटा से अधिक समय तक वे ‘देहात परिवार’ के बीच रहे। देश-दुनिया के हालात पर पिताश्री एवं भंवर सिंह एडवोकेट (कुटबा वाले), बाबू सर्वदमन एडवोकेट आदि से बातचीत करते रहे। उनकी एक बात मुझे अभी तक याद है। पिताश्री का नाम लेकर राजा जी ने कहा-‘जानते हो दुनिया में मारकाट, हायतोबा क्यों मची है? असल में हिंसक जीव शेर, चीते, बाघ-बघेरे व भेड़िये पुनर्जन्म लेकर आदमी के रूप में पैदा हो गए हैं।’ ‘देहात’ के फोटोग्राफर और रीगल स्टूडियो के मालिक नौबत सिंह जी ने राजा साहब के साथ एक ग्रुप फोटो खींचा था। बहुत खोजने पर भी नहीं मिला। लगता है अनमोल निधि खो गई है।
मुजफ्फरनगर के प्रतिष्ठित जमींदार परिवार के सदस्य, समाजसेवी कृष्णगोपाल अग्रवाल जी से राजा साहब का गहरा आत्मीय संबंध था। वृन्दावन से देहरादून आते-आते उनके मोतीमहल स्थित आवास पर प्रवास करते थे। पिताश्री के पास राजा जी अपनी पत्रिका ’संसार-संघ‘ नियमित रूप से भेजते थे जिसमें उनके भ्रमण का ब्यौरा और विचार प्रकाशित होते थे। यह पत्रिका अंगरेजी और उर्दू भाषाओं में भी छपती थी।
खेद है कि ऐसे महान् देशभक्त और विराट व्यक्तित्व के धनी राजा महेन्द्र प्रताप जी की याद को अक्षुण्ण रखने के लिये सत्ताधीशों ने कुछ नहीं किया यद्यपि 33 वर्षों का निर्वासित जीवन बिता कर सन् 1946 में स्वदेश लौटने पर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने उनकी अगवानी करने को अपनी पुत्री मणिबेन को कलकत्ता (अब कोलकाता) भेजा था। भारत लौटते ही राजा साहब गांधी जी से मिलने वर्धा गये थे किन्तु नेहरु जी की चापलूस मंडली में शरीक नहीं हुए। शासकीय स्तर पर उनकी निरन्तर उपेक्षा का यही कारण था। उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ ने 2019 में कहा था कि महान् देशभक्त राजा महेन्द्र प्रताप जी की स्मृति को जीवन्त रखने के लिए कुछ ऐतिहासिक कार्य किया जाना चाहिए। सितम्बर 2021 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अलीगढ़ में राजा साहब के नाम पर विश्वद्यिलय का शिलान्यास किया किन्तु फिर भी बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है।
पुण्य तिथि पर राजा साहब को कोटि-कोटि नमन्!
गोविन्द वर्मा
संपादक देहात
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