राजमार्गों का निर्माण, विकास, सौंदर्यीकरण करने के उद्देश्य से देश भर की ख़ास सड़कों पर निर्माता कंपनियों ने टोल प्लाजा बनाये हैं। इनका उद्देश्य टोल टैक्स वसूल कर निर्माण की लागत की प्रतिपूर्ति करना है। निर्माता कम्पनियां मार्गों से गुजरने वाले वाहनों से टोल टैक्स वसूलती हैं जिसका अधिकार शासन ने एक कानूनी अनुबंध के तहत दिया हुआ है।
प्रायः यह देखने में आ रहा है कि राजनीतिक दलों के कुछ दबंग नेता, जेबी किसान व मजदूर संगठनों के स्वयंभू पदाधिकारी और सरकारी सुरक्षागार्ड प्राप्त कुछ लोग टोल प्लाजा पर वाहनों से पहुंचते हैं और दबंगई, मुठमर्दी, या साफ शब्दों में कहें तो खुली गुंडागर्दी दिखा कर अपने वाहन को बिना टोल टैक्स दिये ले जाने का प्रयास करते हैं। रोके जाने पर ये मुफ्तखोर टोल कर्मियों को धमकाते हैं, पीटते हैं और अपने संगठन के कार्यकर्ताओं को बुला कर रास्ता जाम करा देते हैं, बैरिकेडिंग-अवरोध हटा कर टोल फ्री करा देते हैं। ये लोग मुफ्तखोरी के लिए महिला टोलकर्मियों से भी बदसलूकी करने से नहीं हिचकते। जब इनके संगठन की सभा या पंचायत के लिए गाड़ियां, ट्रैक्टर ट्रालियां टोल प्लाजा पर पहुंचती हैं तब फजीहत व तोड़फोड़ से बचने के लिए टोल प्लाजा के कर्मी खुद ही वाहनों को टोल फ्री कर देते हैं। शंभू बॉर्डर पर किसान आन्दोलन के समय सभी टोल प्लाजाओं को फ्री करके करोड़ों की नहीं अपितु अरबों रुपयों की हानि पहुंचाई गई।
कुछ किसान संगठनों ने तो हजारों की संख्या में टोल फ्री पास बनवा लिए। एक संगठन के नेता ने कहा- यूनियन की सदस्यता की रसीद दिखाओ और टोल टैक्स से छुटकारा पाओ। यूनियन के लोग सिवाया, रोहाना, छपार टोल प्लाजा पर टैक्स बचाने के लिए अक्सर हंगामा बरपा करते हैं। खुद टोल कर्मियों से उलझते हैं और फिर उनके ऊपर अभद्रता का आरोप लगा कर टोल फ्री करा देते हैं। टोल प्लाजा का मैनेजर पीछा छुड़ाने को हाथ जोड़ता नजर आता है और नेता जी मूछों पर ताव देते हुई बिना टोल टैक्स अदा करे, अपने लावलस्कर के साथ निकल जाता है।
अभी 28 सितंबर को किसानों मजदूरों के नेताजी अपने परिवार के साथ हरियाणा से कार से आ रहे थे। पटनी-परतापुर टोल प्लाजा पर टोल कर्मी ने नियमानुसार इन की गाड़ी को अवरोध लगा कर रोक दिया। अब फास्टैग के जरिये टोल टैक्स का भुगतान मनी ट्रांसफर पद्धति के जरिये स्वतः हो जाता है। जिन वाहनों की स्क्रीन पर यह अंकित नहीं है, उन्हें दुगना टैक्स नकद जमा कराना पड़ता है। मुफ्त में गाड़ी ले जाने के प्रयास में किसान नेता व टोल कर्मी के बीच रार हुई तो नेताजी ने टोल प्लाजा पर अपने समर्थकों को बुला लिया जिन्होंने अपना पुराना फार्मूला अपनाया और टोल फ्री करा दिया। प्लाजा के मैनेजर ने नेताजी के सामने हाथ जोड़े और आश्वस्त किया कि जिस वाहन पर उनके संगठन का झंडा होगा, उसे मुफ्तखोरी का अधिकार होगा।
प्रश्न है कि मुफ्तखोरी का यह अधिकार किसान या मजदूर संगठन को ही क्यूं मिले? जो सफाई कर्मी दुनिया भर की गन्दगी व मैला ढोते हैं, वे टोल टैक्स क्यूं अदा करें। जो शिक्षक व गुरुजन समाज को शिक्षा-दीक्षा देते हैं उन्हें भी मुफ्तखोरी का अधिकार मिले। समाज के लोगों के स्वास्थ्य व जिन्दगी की रक्षा करने वाले चिकित्सकों को भी यह मुस्तखोरी की सुविधा हासिल होनी चाहिये। टोल प्लाजाओं पर मुफ्तखोरी रोकने की ताकत न तो सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी में है, न राज्य सरकारों में अतः उन्हें टोल टैक्स वसूलने के नियमों में संशोधन कर उन संगठनों व व्यक्तियों का भी टोल फ्री कराना चाहिए जो टोल प्लाजाओं पर मुठमर्दी व हेकड़ी नहीं दिखा सकते।
गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'