19 नवंबर: भारत में इस्लामिक एजेंडा चलाने वाला तंत्र कई दशकों से चुपचाप ऐसा हथकंडा चला रहा है जिससे न सिर्फ अरबों रुपये सालाना का कारूँ का खजाना एजेंडा-धारियों के हाथ लगता है, बल्कि एक तीर से कई शिकार होते हैं। यह धंधा है उपभोक्ता सामग्रियों के प्रमाणीकरण या सर्टिफिकेट जारी करने का हथकंडा चलाना।
इस सर्टिफिकेशन की शुरुआत भारत से मांस आयात करने वाले इस्लामिक देशों के आग्रह और दबाव पर हुई। भारत में कथित सेक्युलर दलों के कारखानेदार मुस्लिम देशों को अपनी फैक्ट्रियों से अरबों रुपये मूल्य का मांस निर्यात करते हैं। भारत में दो प्रकार का मांस उपलब्ध है- एक झटके का गोश्त, दूसरा हलाल का। हलाल का गोश्त वह है जो कलमा पढ़ते हुए पशु की गर्दन काटने से तैयार होता है। झटके में गर्दन एक ही झटके से अलग कर दी जाती है। इस्लामिक मान्यता है कि कलमा पढ़ते-पढ़ते जिस पशु की गर्दन कटेगी, उसका मांस हलाल है और वही इस्तेमाल करने योग्य है। झटके का मांस हराम या त्याज्य है। यही कारण है बड़ी-बड़ी मांस फैक्ट्रियां चलाने वालों ने अपने कारखानों में कलमा पढ़ने वाले मौलवियों की तैनाती की हुई है जो गर्दन काटने वाली ऑटोमैटिक मशीनों के सामने खड़े होकर कलमा पढ़ते हैं। मांस के जिन डिब्बों पर हलाल का सर्टिफिकेट लगा होगा, वे ही कतर, यूएई, सऊदी अरब, जोर्डन, सूडान आदि 57 मुस्लिम देशों में भेजा जा सकता है।
हलाल का सर्टिफिकेट देने का धंधा इस्लामी संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने शुरू किया जबकि इस संगठन का कार्य इस्लामिक शिक्षा के प्रचार प्रसार का है, व्यापार या धंधेबाजी से इसका कोई सरोकार नहीं। भारत के संविधान, उद्योग-व्यापार मंत्रालय अथवा किसी अदालती कानून में हलाल का प्रमाण पत्र जारी करने का कोई प्रावधान नहीं है। जमीयत ने एक स्वयंभू संस्था बना कर हलाल का सर्टिफिकेट देना शुरू किया और मनमाने तरीके से सर्टीफीकेट देने की फीस भी खुद ही निर्धारित कर दी। एक अनुमान के अनुसार हलाल के सर्टिफिकेट देने की फीस से हर साल 30 हजार करोड़ रुपये की कमाई होती है। मोटी कमाई के चक्कर में मुस्लिमों के तीन अन्य संगठन भी सर्टिफिकेट के धंधे में लिप्त हो गए।
इस धंधेबाजी में हलाल के मीट के साथ-साथ हजारों किस्म की अन्य वस्तुएं, यहां तक कि शहद व आयुर्वेदिक औषधियां और गैर-मांसाहारी वस्तुओं को भी शामिल कर लिया गया। डेयरी पदार्थ, चाय, कॉफी तक हलाल की सूचि में आ गए। भारत की 400 बड़ी कम्पनियां, जो शाकाहारी खाद्य या उत्पाद तैयार करती हैं, जमीयत से हलाल का सर्टिफिकेट लेने को बाध्य हैं। इस्लामिक देशों का एक सिंडिकेट है जिसकी सालाना आमदनी साढ़े सात लाख करोड़ रुपये से अधिक की है। दुनिया भर के मुस्लिमों में यह धारणा बना दी गयी कि जिस वस्तु पर ‘हलाल’ का सर्टिफिकेट लगा है, वही पवित्र है बिना सर्टिफिकेट वाले प्रदार्थ हराम हैं। धंधेबाज़ कहते हैं कि सारी दुनिया में हलाल का सर्टिफिकेट प्रचिलित है।
भारत में जब भी कोई आतंकी ढेर किया जाता है या सुरक्षाबल अथवा पुलिस, एटीएस द्वारा गिरफ्त में लिया जाता है, जमीयत के नेता फौरन मुठभेड़ को फर्जी और पकड़े गए आतंकी को निर्दोष घोषित कर देते हैं। ऐसे राष्ट्रद्रोहियों को कानूनी सहायता देने के लिए जमियत ने वकीलों का पैनल बनाया हुआ है। इसके नेता अकूत धन सम्पदा के बल पर शासन को अस्थिर करने के लिए बारहों महीने देश विरोधी कुप्रचार करते रहते हैं लेकिन इस मकड़जाल को तोड़ते की हिम्मत योगी आदित्यनाथ ने ही दिखाई है।
उत्तर प्रदेश में उन सभी उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिन पर हलाल का सर्टिफिकेट लगा है। विदेशों को निर्यात किये जाने वाले मॉस या मांस से बने पदार्थों को इस पाबन्दी से छुट दी गयी है। भारत के अन्य राज्यों को भी हलाल की तिकड़म के जरिये धन लूटने की पृथा को बन्द करना चाहिये।
गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'