ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने शासनकाल में तीन महत्त्वपूर्ण कद‌म उठाये थे। सरकारी मतालबा-लगान, मालगुजारी, आबपाशी, जुर्माना (अर्थदंड) वसूल करने के लिए हर जिले में राजस्व विभाग के मुखिया- कलेक्टर (राजस्व एकत्र करने और जायदादों का रिकार्ड तैयार कराने वाला सर्वोच्च अधिकारी) की नियुक्ति, हर जिले में सेना के ठहरने के लिए ‘पड़ाव’ की भूमि का प्रबंध तथा जिला मुख्यालय पर ब्रिटिश अधिकारियों एवं विशिष्टजनों के लिए बड़े भू-भाग पर ‘कम्पनी बाग’ की स्थापना। कलेक्टर राजस्व संबंधी जिले भर के कार्यों की देखभाल का मुखिया होने के साथ-साथ जिले का सर्वोच्च प्रशासनिक प्रमुख होता था अतः उसे ‘कलेक्टर एंड डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट’ के पद से संबोधित किया जाता था। ब्रिटिश शासनकाल में वे इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) के अन्तर्गत चुने जाते थे। स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात आईसीएस, आईएएस- इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) बन गई और जिला प्रमुख के रूप में इनका पद जिला अधिकारी, डिप्टी कमिश्नर बन गया। डीएम या डीसी का यह नाम-पद भारत में खूब प्रचलित है।

कभी डीएम पद की बहुत आन-बान-शान और दबदबा था लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था के चलते इस पद के ग्लैमर व गरिमा में गिरावट आरम्भ हो गई। विशेष रूप से सत्ता की हनक में जनपद के इस सर्वोच्च अधिकारी की प्रतिष्ठा को निर्वाचित नेताओं ने ठेस पहुंचाने से गुरेज़ नहीं किया। बसपा प्रमुख मायावती आईएएस अधिकारीयों से बदसलूकी करने से नहीं चूकीं और कुछ को अपना खासमखास बना कर सिर पर बैठाया।

अभी वक्फ बोर्ड एक्ट के संशोधन विधेयक पर लोकसभा में चर्चा के दौरान सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने सभी जिला अधिकारियों पर उंगली उठा दी, जिसका सही जवाब उन्हें संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू से सुनना पड़ा। सपा-बसपा शासन के दौर के अलावा भी कुछ श्रेष्ठ एवं ईमानदार प्रशासनिक अधिकारियों को नेताओं का नाहक ही कोपभाजन बनना पड़ा था। विचारों में मतभेद के कारण मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी गिरीश चन्द्र चतुर्वेदी एवं प्रभात चतुर्वेदी जैसे कर्त्तव्यपरायण एवं श्रेष्ठ जिला अधिकारियों का मुजफ्फरनगर से स्थानान्तरण हुआ तो दूसरी ओर प्रशासनिक कुशलता तथा श्रेष्ठ लोकव्यावहार के कारण योगेन्द्र नारायण जैसे आईएएस की मुजफ्फरनगर में दो-दो बार तैनाती हुई।

सख्त प्रशासक के रूप में देश भर में अपनी पहचान रखने वाले चौधरी चरण सिंह एक बार मुजफ्फरनगर के ग्राम भैंसी आए थे, जहां गांव के प्रमुख किसान और चौधरी साहब के मुरीद अतर सिंह ने उन्हें भोजन पर निमंत्रित किया हुआ था।

जब चौधरी साहब भोजन के लिए अतर सिंह के साथ चले तो उन्होंने देखा कि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट वी.पी. साहनी सड़क की दूसरी ओर अपनी गाड़ी के पास चुपचाप शान्त भाव से खड़े हैं। चौधरी साहब समझ गए कि अतर सिंह ने साहनी जी को भोजन के लिए निमंत्रित नहीं किया है। वे पीछे मुड़े और अपने सहायक साहब सिंह से बोले- ‘गाड़ी लाओ, मुझे वापस जाना है। भोजन नहीं करना।’ उन्होंने अतर सिंह से कहा- ‘तुमने कलेक्टर साहब को भोजन के लिए आमंत्रित क्यों नहीं किया?’

वातावरण में सन्नाटा छा गया। साथ चल रहे पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा (संपादक देहात) ने चौधरी साहब से कहा कि ये गांव के सीधे-सादे लोग हैं, औपचारिकताओं को नहीं समझते। साहनी साहब को भी समझाया। चौ. चरणसिंह ने वी. पी. साहनी को अपनी बगल में बैठा कर भोजन कराया था।

जिला अधिकारी या डीएम के विषय में इतनी बड़ी भूमिका हमें बिहार के एक आईएएस अधिकारी योगेन्द्र सिंह के कार्य व्यव्हार को ध्यान में रख लिखनी पड़ी। योगेन्द्र सिंह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जनपद नालन्दा में जिला अधिकारी पद पर तैनात थे। अभी चार-पांच दिन पूर्व समस्तीपुर के जिला अधिकारी पद पर उनका स्थानान्तरण हुआ। उन्होंने विदाई समारोह नहीं होने दिया। आवास से एक बैग उठाया, कुछ निजी सामान ट्रॉली में रखा और रेलवे स्टेशन पहुंच गए। लाइन में लग कर ट्रेन का टिकट लिया और गाड़ी आने पर उसमें बैठ कर समस्तीपुर चले गये।

हर डी.एम या आईएएस के लिए ऐसा करना मुमकिन नहीं। दशकों पहले मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिला अधिकारी डॉ. प्रभात कुमार का स्थानान्तरण हुआ। मैं कोठी पर गया तो वे ट्रक में घरेलू सामान रखवा रहे थे। अकेले थे। विदाई देने वालों की कोई भीड़ नहीं थी। हाथ मिलाया तो बुखार से गर्म लगा। मैंने पूछा तो बोले- हाँ, हल्का बुखार है। मुझे याद है स्वतंत्रता दिवस की 50वीं वर्षगांठ पर डॉ. प्रभात कुमार ने अपनी कोठी पर जनपद के विशिष्टजनों व स्वाधीनता संग्राम सेनानियों को स्वागत भोज दिया था। शिक्षा ऋषि स्वामी कल्याण देव भी तब मौजूद थे।

प्रशासनिक सेवाओं में ऐसे कम ही लोग मिलते हैं। समस्तीपुर के नये जिला अधिकारी योगेन्द्र सिंह ने मिसाल पेश की है। आज के माहौल में उनका अनुसरण करना संभव नहीं, तो कठिन जरूर है। योगेन्द्र सिंह को हमारी शुभकामनाएं।

गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'