मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे किसानों के मसीहा चौधरी चरणसिंह की अनेक सभाओं व कार्यक्रमों की कवरेज व फोटोग्राफी करने का सौभाग्य मिला। ये सभी रिपोर्टिंग समय-समय पर ‘देहात’ में प्रकाशित हुईं। चौधरी साहब की 37वीं पुण्य तिथि पर उनसे संबंधित कुछ यादें ताजा कर रहा हूँ।

मुझे याद आ रहा है कि चौधरी साहब के निधन की मनहूस खबर सुनकर मैं सत्यवीर अग्रवाल (जनता पार्टी, मुजफ्फरनगर के पूर्व अध्यक्ष) को साथ लेकर चौधरी साहब के अंतिम दर्शन करने दिल्ली गया था। देश के करोड़ों किसान-मजदूरों के हितार्थ जीवन खपा देने वाले महामानव के पार्थिव शरीर को हमने नमन् किया।

मुझे यह भी याद आ रहा है कि जब चौधरी साहब पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा के निमंत्रण पर भोजन पर ‘देहात भवन’ पधारे थे, उन्हें परोसी जाने वाली खीर बर्तन के तले में लग गई थी। खीर से जले हुए की हल्की-हल्की बास आ रही थी। पिता जी ने खीर खाई तो जलने की गंध महसूस हुई। उन्होंने चौधरी साहब से कहा- ‘आप जली हुई खीर खा गए।’ चौधरी साहब ने हंस कर कहा- ‘मैं न खाता तो इतने सारे लोग भी खीर न खाते। बादाम किशमिश पड़ी सारी खीर बेकार न चली जाती!’

एक छोटी सी चीज़ के पीछे कितनी बड़ी सोच थी। आदमी यूं ही महान नहीं बनता!

गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'