16 मई, 2024 को दारुल उलूम देवबन्द के मोहतमिम मौलाना मुक्ती मोहम्मद अबुल कासिम नोमानी ने मीडिया को बताया कि विद्यालय परिसर में औरतों का प्रवेश रोक दिया गया है। श्री नोमानी ने महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की वजह यह बताई कि औरतें विद्यालय में बन रही नई लाइब्रेरी को देखने आती थीं तो लाइब्रेरी के फोटो खींच लेती थीं।
फोटो पर या फोटो खींचने पर इस्लाम में मुमानियत हो सकती होगी लेकिन अब तो मुसलमान पासपोर्ट पर, आधार कार्ड पर, बयनामों आदि पर धड़ल्ले से फोटो लगाते हैं। मुस्लिम शादियों में खूब फोटोग्राफी/वीडियोग्राफी होती है। फोटोग्राफी प्रोफेशन में कई मुस्लिम फोटोग्राफरों ने नाम कमाया है। मुजफ्फरनगर में एक समय गुफरान और महबूब फोटोग्राफर का ऊंचा स्थान रहा। 'देहात' के प्रेस फोटोग्राफर रह चुके राशिद खान फोटोग्राफी और मिलनसारी के लिए लोकप्रिय थे। दुर्भाग्य से वे कोरोना काल में हम सब से बिछुड़ गए।
जहां तक फोटो का सवाल है, मौहतमिम साहब ने खुद विद्यालय परिसर में बन रही सात मंजिला लाइब्रेरी का फोटो अपने हाथों से मीडिया वालों को दिया था और अब तक बन चुकी लाइब्रेरी की पांच मंजिलों की तफसील बताई थी। मौलाना ने कहा कि बिना सरकारी मदद के बनने वाली लाइब्रेरी एक अजूबे से कम नहीं नहीं है। यह अपने आप में एक नज़ीर है। जब सातवीं मंजिल तामीर हो जाएगी, तब इसकी छत पर
हेलीकॉप्टर उतर सकेंगे।
पुस्तकालय में इस समय डेढ़ लाख किताबें हैं लेकिन लाइब्रेरी का वकार (गरिमा) बढ़ाने वाली, भारत पर 50 वर्षों से अधिक समय तक हुकूमत करने वाले मुगल बादशाह के हाथों से लिखी कुरान शरीफ लाइब्रेरी की सबसे शानदार उपलब्धि है। लाइब्रेरी में दुनिया भर के इस्लामिक उलेमाओं, मुफ्तियों व इस्लामिक विद्वानों द्वारा लिखी किताबें, नवाबों, बादशाहों के शासनकाल की हस्तलिखित पुस्तकें संग्रहीत हैं। राजाओं-महाराजाओं के 800 वर्षों के शासनकाल के मध्य रची गई कुछ पुस्तकें की मूलप्रतियां भी हैं। मुस्लिम-अरब देशों सहित इस्लाम धर्म पर शोध करने के लिए पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, अफगानिस्तान, श्रीलंका, मलेशिया आदि से भी शोधकर्ता इस लाइब्रेरी में आते हैं। लाइब्रेरी में कुरान के विभिन्न 17 पहलुओं पर हज़ारों किताबें इस लाइब्रेरी में हैं। कासिम नोमानी साहब ने कहा कि दारुल उलूम की यह लाइब्रेरी भारत की अकेली अजीमुश्शान लाइब्रेरी है।
मौहतमिम साहब ने यह भी बताया कि देवबन्द की इस लाइब्रेरी में अनेक ऐतिहासिक पुस्तकें, व पुरालेख उपलब्ध हैं लेकिन यह नहीं बताया कि क्या देवबन्द की इस लाइब्रेरी में विश्व के सबसे पहले विश्वविद्यालय तक्षशिला विश्वविद्यालय और संसार के सबसे पहले आवासीय विश्वविद्यालय-नालंदा का भी इतिहास है, जिसे पढ़ कर आज के उलेमा जान सकें कि हजारों वर्ष पूर्व भारत शिक्षा के क्षेत्र में कितना अग्रणी था और दुनिया भर के छात्र यहां विविध विषयों के अध्ययन के लिए भारत आते थे।
तक्षशिला (जो अब रावलपिंडी-पाकिस्तान में है) भगवान राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष द्वारा बसाई गई नगरी थी, जहां विश्व का पहला और एकमात्र विश्वविद्यालय स्थापित किया गया। यह दुनिया का सबसे पहला मेडिकल कॉलेज था जहां मस्तिष्क व आंतों तक को शल्यक्रिया (सर्जरी) सिखाई जाती थी। साथ ही यहां वेद-वेदांग, अष्टादश विद्या, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, शस्त्र संचालन, युद्धविद्या, ज्योतिष, आयुर्वेद, ललित कला, हस्तशिल्प, अश्वविद्या, मन्त्रविद्या, विविध भाषाओं, भूगोल, अंतरिक्ष विद्या आदि 60 विषयों की शिक्षा दी जाती थी। संसार भर के 10, 500 छात्र तक्षशिला विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करते थे।
तक्षशिला पूर्व और पश्चिमी मार्गों पर स्थित था। बाहर से आने वाले विदेशी आक्रमणकारियों ने शिक्षा के सबसे बड़े इस केन्द्र को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भारत के विश्व प्रसिद्ध विद्वान व ज्ञानी-पाणिनी, कौटिल्य (चाणक्य) चन्द्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित आचार्य तक्षशिला विश्वविद्यालय में आचार्य थे।
इसी प्रकार मगध (बिहार) में पांचवीं शताब्दी में कुमार गुप्त ने नालन्दा में संसार का सबसे पहला आवासीय विश्वविद्यालय स्थापित किया। 30 एकड़ भूक्षेत्र में स्थापित इस विश्वविद्यालय में दुनिया भर के 10,000 छात्र पढ़ते थे। 2000 शिक्षक विभिन्न विषयों की शिक्षा देते थे। आचार्य नागार्जुन, शीलभद्र, धर्मपाल, चन्द्रपाल, गुणमति, स्थिरमति, वसुबंधु, असंग, धर्मकार्ति जैसे विद्वान शिक्षा प्रदान करते थे। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग नालन्दा विश्वविद्यालय के छात्र व शिक्षक रहे। नालंदा विश्वविद्यालय में नौ मंजिलों का विराट पुस्तकालय था जिसमें 3 लाख से अधिक पुस्तकें थीं। पुस्तकालय रत्नरंजक, रत्नोदधि, रत्नसागर नामों के तीन विशाल भवनों में स्थित था।
नालन्दा विश्वविद्यालय में कई देशों के छात्रों के साथ ही तुर्की (तुर्किय) के छात्र भी शिक्षा प्राप्त करते थे लेकिन 12वीं शताब्दी में तुर्की से आये हमलावर बख्तियार खिलजी ने नालन्दा विश्वविद्यालय पर हमला कर दिया। सभी 10 हजार छात्रों व लगभग 2000 शिक्षकों का कत्लेआम कर दिया गया। विद्यालय की सभी इमारतों को जमींदोज कर उनमें आग लगा दी गई। विश्वविद्यालय का पुस्तकालय (लाइब्रेरी) महीनों जलती-सुलगती रही। इतिहासकार जॉर्ज कनिंघम, पुरातत्वविद डेविड स्पूनर, हीराचंद शास्त्री, जे. ए. पेज, एम. कुरैशी, जी.सी. चन्द्रा, एन. नाज़िम, अमलानन्द घोष आदि ने प्रामाणिक साक्ष्यों के आधार पर बख्तियार खिलजी की हैवानियत और भारत की गौरवशाली शिक्षण व्यवस्था की वास्तविकताओं को उजागर किया है। बताया कि भारत में दुनिये के सबसे पहले विश्वविद्यालय और पुस्तकालय भारत में ही स्थापित हुए थे।
मौलाना कासिम साहब से सवाल है कि क्या विदेशी आक्रमणकारियों और भारत में बाहर से आकर तक्षशिला व नालन्दा विश्वविद्यालयों, उनकी लाइब्रेरियों व उनके मठों, मंदिरों को तहस-नहस करना, आग लगाना जायज़ था? शिक्षा केन्द्र या लाइब्रेरी तो समाज की अमानतें हैं। लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इन से ज्ञान प्राप्त करते हैं। दारुल उलूम की लाइब्रेरी भी देश का नायाब तोहफ़ा बन सकती है बशर्ते इसका दायरा किसी एक सम्प्रदाय के लिए संकुचित न हो, स्त्री-पुरुष सभी का प्रवेश हो।
ज्ञान के सभी अध्याय देवबन्द में खुलने चाहियें। यह भी पढ़ाया जाए कि तक्षशिला व नालन्दा विश्वविद्यालयों को फूंक कर भारत की संस्कृति को कैसे नष्ट करने की कोशिश हुई। ये सभी तथ्य लिखित रूप में दारुल उलूम की लाइब्रेरी में उपलब्ध होने चाहियें। लाइब्रेरी में महिलाओं का प्रवेश रोकने या लाइब्रेरी की छत पर हैलीकॉप्टर की लैंडिंग करने से दारुल उलूम का रुतबा बढ़ने से रहा।
गोविन्द वर्मा