इस प्रकार की घटनायें मेरठ जिले के सिवाया टोल प्लाजा और मुजफ्फरनगर जनपद के छपार, रोहना एवं उत्तर प्रदेश-हरियाणा सीमा के पटनी-परतापुर टोल प्लाजाओं पर अक्सर होती रहती हैं। 22 अक्टूबर को भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ता सैकड़ों कारों में सवार होकर बरास्ता छपार, रुड़की जा रहे थे। वहाँ भाकियू कार्यकर्ताओं को सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी के कार्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना था। नि:संदेह यह एक शुभ कार्य था क्यूंकि वाहन मालिकों का कहना है कि एआरटीओ कार्यालय में कोई भी कार्य बिना भेंट-पूजा यानी बिना रिश्वत के नहीं होता।
जहां तक विदित है, महामहिम राष्ट्रपति जी ने, सुप्रीम कोर्ट ने, भारत सरकार अथवा उत्तर प्रदेश शासन ने ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया है, जिससे पता चले कि धरना-प्रदर्शन, रास्ता जाम या दफ्तरों का घेराव करने जा रहें यूनियन वालों को अपनी कारो का टोल टैक्स अदा नहीं करना होगा।
इस आशय के समाचार अक्सर आते रहते हैं कि टोल टैक्स बचाने के चक्कर में हंगामा हो गया। जैसे बिजली चोरी रोकने जाने वाली टीमों पर छापा लगाने के दौरान बिजली चोर आरोप लगाते हैं कि विद्युत विभाग के कर्मचारियों ने महिलाओं के साथ अभद्रता की है। ऐसे ही टोल टैक्स न अदा करने वाले कर्मचारियों पर अभद्रता का आरोप जड़ा जाता है। चूँकि टोल कर्मचारी अल्प वेतनभोगी, गरीब, संविदा अथवा दिहाड़ी कर्मचारी होते हैं, अतः वे मुफ्तखोर नेताओं के आगे हाथ-जोड़कर आत्मसमर्पण कर देते हैं, क्यूंकि उसे अपने बच्चों का पालन-पोषण करना है। टोल प्लाजा का प्रबंधन व पुलिस भी मामलों को रफा-दफा कर देते हैं। इतना ही नहीं, मुफ्तखोर नेता अपने सैकड़ों-हजारों वाहनों का टैक्स बचाने के साथ ही टोल टैक्स फ्री कराके सरकार एवं कंपनियों को लाखों-करोड़ों रुपये की क्षति पहुंचाने के आदी हो चुकें हैं।
22 अक्टूबर को ही शामली के पटनी-परतापुर टोल प्लाजा पर एक राजनीतिक दल के नेता ने टोल टैक्स बचाने के लिए ऐसा ही ड्रामा किया। टोल कर्मचारी पर अभद्रता का आरोप मढ़ा और अपने सैकड़ों कार्यकर्ताओं को टोल प्लाजा पर बुलाकर बैरियर हटवा टोल फ्री कराया।
आयें दिनों टोल प्लाजाओं पर ये नौटंकियां होती रहती हैं जिनका शिकार वेतन भोगी कर्मचारी होते हैं। ये मुफ्तखोर महिला कर्मचारियों को भी नहीं बख्सते।
शासन चलाने वाले नेता कानून व्यवस्था बनाने की खूब डींगे हांकते हैं सैकड़ों वन्देभारत ट्रेनों पर पथराव हुए। सवारियों तथा मालगाड़ियों को पलटने की पचासों साजिशें रची गईं, कुछ ट्रेन हादसे हुए भी। प्रतिदिन हवाई अड्डों व वायुयानों को बम से उड़ाने की 200 से ज्यादा झूठी धमकियां मिल चुकी हैं।
सीमा सुरक्षा बलों के स्कूलों को विस्फोटों से उड़ाने की धमकियां भी मिलीं हैं। सरकार की निक्कमी मशीनरी अथवा पुलिस एक भी दोषी को पकड़ कर सीखचों के पीछे नहीं भेज सकी। यह सरकार की नाकामी की पराकाष्ठा है।
एक लाचार, कमजोर, विवश सरकार से यह अपील की जा सकती है कि टोल प्लाजाओं के निरीह कर्मचारियों पर तरस खाइये और सभी यूनियनों के नेताओं-सदस्यों के लिए टोल फ्री का शासनादेश जारी कीजिए।
गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'