भारतीय मीडिया सनसनी फैलाने वालों, कानून व्यवस्था को चुनौती देने वालों एवं बाहुबलियों, माफियाओं को महिमा मंडित करने या उन्हें हाईलाइट करने को पत्रकारिता का उद्देश्य मानता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, सेनाओं के पराक्रमी व बलिदानी जवानों की वीरता अथवा देश के निर्माण व विकास में जुटे इंजीनियरों, शिल्पकारों, चिकित्सकों एवं उद्यमियों के कार्यों को कम तरजीह देता है।
देश की रक्षा एवं सुरक्षा प्रयासों में अपना जीवन खपाने वाले मौन राष्ट्र सेवकों को मीडिया दोयम दर्जा देता है। अभी 15 अगस्त को अग्निमैन के रूप में जाने वाले वैज्ञानिक डॉ. राम नारायण अग्रवाल का 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया। प्रिंट मीडिया ने भीतर के पृष्ठों में 8-10 लाइनों की सिंगल कॉलम खबर छाप कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली, जबकि यह समाचार अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर 8 कॉलमों में छपना चाहिये था। अलबत्ता कुछ टी.वी. चैनलों ने इस समाचार को महत्व दिया। पाठकों की जानकारी के लिए हम डॉ. राम नारायण अग्रवाल का जीवन परिचय प्रकाशित कर रहे हैं:
देश के जाने-माने एयरोस्पेस साइंटिस्ट और अग्नि मिसाइल के जनक डॉ. राम नारायण अग्रवाल का गुरुवार (15 अगस्त) को निधन हो गया। उन्होंने 83 साल की उम्र में हैदराबाद स्थित अपने घर पर आखिरी सांस ली। वे कुछ समय से बीमार थे। उनके परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं।
आरएन अग्रवाल ने भारत में लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। वे अग्नि मिसाइलों के पहले प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे। उन्हें अग्नि मैन के नाम से भी जाना जाता था। उन्हें 1990 में पद्म श्री और 2000 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
"22 सालों तक अग्नि मिशन प्रोजेक्ट्स का नेतृत्व किया"
डॉ. अग्रवाल रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के साइंटिस्ट थे। उन्होंने 1983 से 2005 तक प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में अग्नि मिशन प्रोजेक्ट्स का नेतृत्व किया। वे 2005 में एडवांस्ड सिस्टम्स लेबोरेटरी (ASL), हैदराबाद के डायरेक्टर पद से रिटायर हुए थे।
उनके नेतृत्व में मई 1989 में टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर मिसाइल की सफल टेस्टिंग हुई। इसके बाद, मिसाइल के कई वर्जन विकसित किए गए और रक्षा बलों में शामिल किए गए। आज अग्नि 5, परमाणु-सक्षम, इंटरमीडिएट रेंज की बैलिस्टिक मिसाइल 5000 किलोमीटर से ज्यादा दूर के टारगेट पर हमला करने की क्षमता रखती है।
आरएन अग्रवाल ने डॉ. अरुणाचलम और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ अग्नि और अन्य मिसाइल प्रोग्राम पर काम किया। उन्होंने अपने 22 सालों के लंबे कार्यकाल में मिसाइलों के लिए री-एंट्री टेक्नोलॉजी, ऑल कंपोजिट हीट शील्ड, ऑनबोर्ड प्रोपल्शन सिस्टम, गाइडेंस और कंट्रोल स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
"अग्नि-3 के प्रदर्शन से भारत चुनिंदा देशों की लिस्ट में शामिल हुआ"
डॉ. अग्रवाल को 1995 में अग्नि-2 के हथियारीकरण और तैनाती के लिए अग्नि का प्रोजेक्ट डायरेक्टर नियुक्त किया गया था। 4 साल के भीतर, 1999 में डॉ. अग्रवाल और उनकी टीम ने अग्नि-1 से ज्यादा स्ट्राइक दूरी के साथ रोड-मोबाइल लॉन्च क्षमता के साथ अग्नि-2 मिसाइल बनाया।
इसके बाद डॉ. अग्रवाल ने इससे भी ताकतवर अग्नि-3 मिसाइल तैयार की। अग्नि-3 के प्रदर्शन ने भारत को लंबी दूरी की परमाणु-सक्षम मिसाइल शक्ति वाले उन चुनिंदा देशों की लिस्ट में शामिल कर दिया, जो मिसाइल के सभी सिस्टम को अपने ही देश में तैयार करते हैं।
1983 में भारत सरकार की तरफ से शुरू किए गए इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत विकसित की जाने वाली 5 मिसाइलों में अग्नि मिसाइल सबसे ताकतवर थी। बाकी के चार मिसाइल- पृथ्वी, आकाश, नाग और त्रिशूल थे।
"जयपुर में जन्मे, मद्रास-बेंगलुरु से पढ़ाई की"
डॉ. अग्रवाल का जन्म 24 जुलाई, 1941 को राजस्थान के जयपुर में एक व्यापारी परिवार में हुआ था। उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, गुइंडी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेस, बेंगलुरु से मास्टर्स किया। उन्होंने राजस्थान यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि भी ली।
वह कई नेशनल एकेडमी के सदस्य थे और आत्मनिर्भरता और मिसाइल टेक्नोलॉजी पर लेक्चर देते थे। वह एयरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया और नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग के फेलो थे।
"कई पुरस्कार से हो चुके सम्मानित"
डॉ. अग्रवाल ने मिसाइल विकसित करने में योगदान के लिए कई पुरस्कार जीते। उन्हें 2004 में प्रधानमंत्री की तरफ से एयरोस्पेस और अग्नि के क्षेत्र में योगदान के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला था।
इसके अलावा उन्हें DRDO टेक्नोलॉजी लीडरशिप अवॉर्ड, पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव और भारत रत्न एम एस सुब्बालक्ष्मी के साथ चन्द्रशेखर सरस्वती नेशनल एमिनेंस अवॉर्ड और बीरेन रॉय स्पेस साइंसेस अवॉर्ड भी मिला था।
गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'