इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आजादी के बाद अरबों रुपये मूल्य की नजूल भूमि को अपने चहेतों, दलालों, भू-माफियाओं को कौड़ियों के भाव लुटाने की कांग्रेस सरकारों की कपट पूर्ण साजिशों की निन्दा करते हुए शासकों की कुटिल नीति का पोस्टमार्टम कर दिया।
अक्टूबर 2019 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रकृति राय सहित 6 आवेदकों ने याचिका डालकर बताया था कि प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा नजूल की जमीन को अपने चहेतों को मुफ्त में लुटाने को सन् 1992 में फ्री होल्ड भूमि नीति को जन विरोधी, संविधान विरोधी बताते हुए, इसको रद्द करने की प्रार्थना की थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं पर विचार करते हुए टिप्पणी की है कि सन् 1992 की सरकार की नजूल की भूमि को फ्री होल्ड करने की नीति पहली ही नज़र में मनमानीपूर्ण और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि नजूल भूमि की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता।
गौरतलब है कि 1857 के स्वाधीनता संग्राम में, या उसके बाद अंग्रेजों की हुकूमत का विरोध करने वाले देशभक्त जमींदारों अथवा स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेने वालों की जमीनों को ब्रिटिश शासकों ने जब्त कर लिया था। जब्तशुदा भूमि को नजूल की भूमि घोषित कर दिया था। इस जब्तशुदा भूमि को कई ब्रिटिश अधिकारियों को कौड़ियों के भाव बांटा गया। अंग्रेजों के चमचों और हिमायतियों में भी नजूल लैंड की बन्दरबांट हुई।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कई दशकों तक सत्ता पर कांग्रेस पार्टी का अखंड राज रहा। सत्ताधारियों ने नजूल लैंड की लूट के लिए इस ब्रिटिश कानून को अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु बार-बार संशोधित किया। सन् 1992 की शासकीय नीति की समीक्षा करते हुई हाईकोर्ट ने शासकों की कपटपूर्ण नीति की बखिया उधेड़ दी है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सन् 1992 में सरकार को उदारता दिखानी थी तो कमजोर या गरीब लोगों या भूमिहीन लोगों के पट्टे क्यूं निरस्त किये गए? ऐसी दूषित नीति से राज्य का भला नहीं हुआ, न गरीबों का। सरकार को नीति से साधन संपन्न दलालों, भू-माफियाओं व इसी तरह के अन्य व्यक्तियों को लाभ पहुंचाया गया। सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे समाज के कमजोर वर्गों का भला हो।
योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश विधानमंडल में नजूल भूमि पर संशोधन का विधेयक पास कराया है जिससे अरबों-खरबों रुपये की जमीन की लूट-खसोट पर पाबंदी लगने और वंचितों के हितों का पोषण का मार्ग प्रशस्त होगा।
गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'