जब से अदालत ने ‘15 मिनट के लिए पुलिस हटा लो, इन्हें बता देंगे हम क्या हैं’ और ‘100 करोड़ पर 25 करोड़ भारी हैं’ जैसे बयानों को अदालत ने समाज में वैमनस्य और तनाव बढ़ाने वाला नहीं माना है तब से नये जिन्ना कहलाने वाले हैदराबादी भाईजान के गले का वाल्यूम बहुत बढ़ गया है। बडे़ भाई ने उत्तरप्रदेश चुनाव के दौरान ख़म ठोक कर कहा- ‘जब योगी मठ में और मोदी पहाड़ पर चले जायेंगे तब तुम्हारा क्या होगा, सोच लो।’ अब जब महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव होने जा रहे हैं, छोटे भाईजान ने अपने इलेक्शन कैम्पेन की शुरुआत औरंगाबाद से की। इस लिये नहीं कि औरंगाबाद मुस्लिम बहुल शहर है बल्कि इस लिए कि वहां हिन्दुओं पर जुल्म ढाने और हजारों मन्दिरों को ध्वस्त करने वाले छठे मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की कब्र है। वही औरंगज़ेब जिसने महाराष्ट्र के पंढरपुर में विठोबा मन्दिर, बसन्तगढ़ में शिव मन्दिर गिरवा कर खुद अपने हाथों से मस्जिद की नींव रखी थी। सोमनाथ मन्दिर, काशी विश्वनाथ मन्दिर, श्रीकृष्ण मन्दिर मथुरा और चित्तौड़गढ़ की यात्रा के दौरान 63 मन्दिर गिरवाये। बंगाल जाते समय औरंगज़ेब का काफिला सारनाथ में रुका था, तब उसने काशी विश्वनाथ मन्दिर गिरवाया था।

यह वही औरंगज़ेब है जिसने अपने पिता शाहजहां को कैद में डाल दिया था और अपने तीन भाइयों का कत्ल कर दिया था। इनमें इसका बड़ा भाई दारा सिकोह भी था जो भारत की सभ्यता एवं संस्कृति से प्रभावित था, जिसने गीता का और 52 उपनिषदों का फारसी भाषा में अनुवाद किया था। भारत की सभ्यता से प्रभावित दारा की हत्या करने से पहले 30 अगस्त 1659 को औरंगज़ेब ने उसे भिखारियों के कपड़े पहना कर दिल्ली की सड़कों पर घुमवाया और फिर उसका कटा हुआ सिर आगरा अपने पास मंगवाया। यह वही औरंगज़ेब है जिसने गुरुतेग बहादुर जी का सिर लालकिले के सामने चांदनी चौक में कटवा कर शहीद किया था और जिसके कारिन्दे वज़ीर खां (नवाब सरहिन्द) ने गुरु गोबिन्द सिंह जी के दो अल्पवयस्क साहिबजादों- जोरावर सिंह और फतेहसिंह को जिन्दा ही दीवार में चिनवा कर शहादत दी थी। संभा जी का हत्यारा भी औरंगज़ेब ही है।

वही औरंगज़ेब जिसने हिन्दुओं पर फिर से जजिया कर लगाया, हिन्दुओं की महिलाओं को पालकी की सवारी करने से रोका और हिन्दू मर्दों को हथियार ले कर चलने से रोक दिया था। हिन्दू त्यौहारों होली व दीपावली मनाने पर रोक लगाई। मन्दिरों में मृदंग, झांझ-मजीरे आदि बजाने पर पाबन्दी लगाई। देश के चन्द गद्दार हिन्दू राजा उसका साथ दे कर सत्ता का आनन्द भोग रहे थे लेकिन स्वाभिमानी लोगों ने साधनहीन और सैन्यबल में कमजोर होते हुए भी औरंगज़ेब और उसके कारिन्दों का वीरतापूर्वक मुकाबला कर उसे धूल चटाई। ब्रजप्रदेश के गोकला जाट ने 1669 में मुट्ठीभर किसानों को साथ लेकर औरंगज़ेब की विशाल सेना से भिडंत की। इसी प्रकार फरीदाबाद के खेड़ीकलां के जाटों ने सन् 1659 में औरंगज़ेब के सैनिकों द्वारा एक जाट लड़की की पालकी जबरदस्ती छीनने पर जेली (कृषि कार्यों में काम आने वाला औजार) व बल्लमों का इस्तेमाल कर मुगल सैनिकों को भगा दिया था। 1686 में राजाराम जाट ने औरंगज़ेब के अत्याचारों के विरुद्ध हथियार उठाये। राजाराम की मृत्यु के बाद चूड़ामन तथा बदन सिंह जाट के नेतृत्व में किसानों ने औरंगज़ेब के जुल्मों के खिलाफ मोर्चा खोला। नारनौल में सतनामी सिखों ने अत्याचारी औरंगज़ेब से टक्क्र ली। चारों शहजादों की शहादत के बाद गुरु गोबिन्द सिंह महाराज ने 30 मार्च, 1699 में धर्म की रक्षा के निमित्त खालसा पंथ की स्थापना की। गुरु महाराज ने औरंगज़ेब की सभी करतूतों व जुल्मों का हवाला देते हुए कहा कि धर्म की रक्षा के लिये खालसा पंथ की स्थापना कर दी गई है। हम सिर देकर भी धर्म की रक्षा करेंगे। फारसी भाषा में लिखे इस पत्र को इतिहास में ‘ज़फरनामा’ के नाम से जाना जाता है। उस समय औरंगज़ेब दक्षिण को फतह करने के मकसद से अहमदनगर गया हुआ था। भाई दयासिंह ‘ज़फरनामा’ लेकर रवाना हुए। औरंगज़ेब गम्भीर रूप से बीमार था। उसे पेचिश हुई थी। औरंगज़ेब ‘ज़फ़रनरमर’ पढ़ कर दंग रह गया। भाई दयासिंह की खै़रखबर न मिलने पर गुरु महाराज खुद अहमदनगर की ओर चल दिये। इसी बीच 30 मार्च 1707 को औरंगज़ेब की मृत्यु हो गई। उसे खुल्दाबाद में फकीर बुरहानुद्दीन की कब्र के पास दफनाया गया।

औरंगज़ेब का वास्तविक नाम मुहिउद्दीन मौहम्मद था किन्तु भारत को इस्लामी राष्ट्र के रूप में तब्दील कराने के उद्देश्य से इस्लामिक धर्म गुरुओं ने उसे औरंगज़ेब आलमगीर गाजी का नाम दिया। औरंगज़ेब ने घोषणा की कि भारत को दारुल हरब (गैर इस्लामी) के स्थान पर दारुल इस्लाम (इस्लामी देश) बनायेगा। उसने ऐलान किया कि सारी व्यवस्था फतवा-ए-आलमगीरी से चलेगी जो इस्लामी उसूलों पर आधारित है। जिन्ना और सुहरावर्दी ने नोआखाली व मुल्लापुरम में डायरेक्ट एक्शन यानि हिन्दुओं का नरसंहार कराके और हिन्दू-मुस्लिम आबादी का मुद्दा बना लाखों लोगों का कत्ल करा कर भारत का विभाजन तो करा लिया लेकिन वे दोनों भारत को दारुल इस्लाम बनाने के औरंगज़ेब के सपने को पूरा नहीं कर पाए।

अकबरुद्दीन ओवैसी ऐसे जालिम औरंगज़ेब की कब्र पर फूल व चादर चढ़ा कर मुसलमानों को क्या सन्देश देना चाहते हैं? औरंगज़ेब की कब्र का सजदा करने के बाद पहले चाय लेलो! चाय लेलो!! कह कर प्रधानमंत्री की मजाक उड़ाई फिर राज ठाकरे की ओर इशारा करते हुए कहा- ‘कुत्ते भौंकते रहते हैं, शेर अपना काम करता है। मुसलमानों तुम शेर हो, कुत्तों के भौंकने पर ध्यान न दे कर अपना काम करो।’ निश्चित रूप से कानून, आईन (संविधान) व डेमोक्रेसी का नाम इस लिए लिया जाता है कि इनका औरंगज़ेबी एजेंडा आगे बढ़े। देश के भाग्यनियन्ता, कार्यपालिका और न्यायपालिका क्या यह सब टुकुर-टुकुर देखती रहेगी?

गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'