8 अगस्त को मुजफ्फरनगर की जानसठ तहसील में कैबिनेट मंत्री अनिल कुमार ने किसानों के घरों के मालिकाना अधिकार का सरकारी दस्तावेज-घरौनी बांटी। तहसील परिसर में संपन्न इस समारोह में जिला अधिकारी अरविंद मलप्पा बंगारी व एसडीएम सुबोध कुमार भी उपस्थित थे।

घरौनी बांटना तो एक औपचारिक कार्य था किन्तु जिला पंचायत मुजफ्फरनगर के अध्यक्ष डॉ. वीरपाल निर्वाल ने किसानों की रोजमर्रा होने वाली समस्या से मंत्री, जिला अधिकारी, एसडीएम को अवगत कराके एक विचारणीय कार्य किया, जिसके लिए हम डॉ. निर्वाल की सराहना करते हैं। चूंकि समारोह राजस्व विभाग का था तो डीएम-एसडीएम के साथ ही राजस्व विभाग के सभी अधिकारी-कर्मचारी भी मौजूदा थे।

जिस प्रकार पुलिस का सबसे अहम किरदार ‘सिपाही जी’ होता है वैसे ही राजस्व विभाग का सबसे खास कारिन्दा ‘पटवारी जी’ (जिसे चौ.चरण सिंह ने लेखपाल बना दिया था) होता है। जब कोई संकट, परेशानी होती है तो आम आदमी, किसान इन्हीं ‘सिपाही जी’ और ‘पटवारी जी’ के इर्द-गिर्द चक्कर काटता घूमता है। उनकी कलम चलने या इनकी रिपोर्ट के बाद ही आईपीएस, आईएएस अपनी कलम को जुम्बिश देते हैं।

डॉ. वीरपाल निर्वाल ने तहसील परिसर में उपस्थित पटवारी जी को खूब खरी-खरी सुनाई। डॉ. निर्वाल ने कहा कि किसानों के प्रति लेखपालों का रवैया निहायत गैर जिम्मेदाराना है। वे एक आम किसान की समस्या निवारण के प्रति गम्भीर नहीं हैं। किसान का फोन उठाने में भी इन्हें परेशानी होती है। डॉ. निर्वाल ने कहा कि लोकराज में लेखपालों की धींगामस्ती बर्दाश्त के बाहर हो चुकी है। इसे अब और सहन नहीं किया जा सकता।

यह सिर्फ जानसठ तहसील की बात नहीं है। पूरे उत्तरप्रदेश का यहीं हाल है। कैबिनेट मंत्री अनिल कुमार ने अपनी परिचय बैठक में तहसीलों में व्याप्त भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था। रालोद विधायक दल के नेता राजपाल बालियान ने बुढ़ाना तहसील में 28 वर्षों से जमे एक लेखपाल की कारगुजारियों का मुद्दा उठाया तो पता चला कि तहसील में 20 लेखपाल ऐसे हैं जो 13 से भी अधिक वर्षों से एक ही हल्के में जमे हैं। सवाल इनकी तैनाती का नहीं अपितु तहसीलों में व्याप्त भ्रष्टाचार का है, जिसकी जड़ें लेखपालों की कारगुजारियों में फैली हैं, भलेही कोई इक्का-दुक्का ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ लेखपाल मिल जाए।

मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, जिला पंचायत अध्यक्ष अथवा किसी भी जनप्रतिनिधि की शिकायत पर भी सिर्फ स्थानान्तरण जैसी लीपापोती होती है। मंडलायुक्त, कलेक्टर, एसडीएम इनके आगे क्यूं फेल हैं?

छपते छपते:
तीनों तहसीलों के 20 लेखपालों को अदल बदल किया गया।

गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'