हिंदुत्व के फायर ब्रांड नेता, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिंदी पट्टी के तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों का धुवांधार तूफानी दौरा करके वापिस राजधानी लखनऊ लौट आये हैं। योगी जी की ख्याति देश में कठोर और दबंग प्रशासक के रूप में है। उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था सुधारने और माफियाओं के विरुद्ध कड़े कदम उठाने वाले प्रशासक के रूप में पूरे देश में उनकी पहचान है। वे एक प्रकार से भाजपा के ब्रांड एम्बेसडर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नवरत्नों में सम्मिलित हैं।
चुनाव अभियान का अनुकूल परिणाम निकलने के पश्चात भी योगी जी फुर्सत के क्षणों में नहीं हैं। मुख्यमंत्री पर जिम्मेदारियों का भार सदा लदा रहता है फिर भी हमारा आग्रह है कि वे गृह विभाग तथा पुलिस व प्रशासनिक मशीनरी के कल-पुर्जों के पेंच कसें और पुलिस व्यवस्था को पटरी पर लाने का सफल प्रयास करें।
यह बात इसलिए लिखी जा रही है कि योगी जी के बार-बार चेताने के बावजूद उत्तर प्रदेश की पुलिस औपनिवेषिक काल की मनोवृति को छोड़ नहीं पारही है। मुरादाबाद परिक्षेत्र की दो घटनाओं ने एक बार फिर सिद्ध किया है कि 21वीं सदी की पुलिस लोकतान्त्रिक व्यवस्था के चलते ब्रिटिश-कालीन तौर-तरीकों पर अब भी चल रही है।
बिजनौर के हसनगंज पुलिस थाने के इंस्पेक्टर, दरोगा, हेड कांस्टेबल ने व्यापारी इश्तिआक का अपहरण कर मोटी रकम ठगने के उदेश्य से उस पर झूठा केस बनाया व उसका उत्पीड़न किया।
यह ठीक है कि दरोगा अनुराग द्विवेदी तथा हेड कांस्टेबल यूसुफ हुसैन व थाना अध्यक्ष राजकुमार को निलंबित कर दिया गया है। किन्तु प्रश्न उठता है कि पुलिस द्वारा एक सभ्य नागरिक का उत्पीड़न करने का हौसला पुलिस जनों में कैसे आया ?
दूसरी घटना भी मुरादाबाद परिक्षेत्र की है। संभल शहर के बनियाठेर थाने के पुलिस कर्मचारियों ने तो हैवानियत की सभी सीमायें पार कर दीं। पुलिस ने बैटरी चोरी के आरोप में 7 लोगों को पकड़ कर गैरकानूनी ढंग से 4 दिनों तक हवालात में बंद रखा और जुर्म कबूल करने के उदेश्य से उन पर अमानुषिक अत्याचार किये। पकड़े गए लोगों के नाखून प्लास से खींचे गए और कुछ लोगों के हाथ-पैर तोड़ दिए गए। इस कुक्रत्य की निंदा करने के लिए कोई शब्द भी नहीं मिलता और प्रश्न उठता है कि निंदा करने से क्या पुलिस की क्रूरता व पैशाचिकता की मनोवृति में सुधार हो सकेगा?
अभी पिछले दिनों मुख्यमंत्री जी ने पुलिस दिवस पर कर्त्तव्यनिष्ठ पुलिसजनों की प्रशंसा की थी और पुलिस से अपेक्षा की थी कि वह आम जनता का विश्वास अर्जित करेगी। ऐसा लगता है कि पुलिसकर्मियों ने मुख्यमंत्री जी की भावना को महज़ रस्म अदायगी माना, उसे ह्रदय से अंगीकार नहीं किया। मुख्यमंत्री जी जहां माफिया, असामाजिक तत्वों के प्रति कठोर हैं वही उन्हें उत्पीड़क व भ्रष्टाचारी पुलिसजनों के प्रति भी कठोर नीति अपनानी चाहिए।
गोविन्द वर्मा