कोई नहीं कह सकता कि यह बेशर्मी और दुष्टता की पराकाष्टा है। लोकतंत्र और कानून, संवेदनशीलता, मानवीय मूल्यों तथा मर्यादा‌ओं को कुचलने, शिष्टाचार एवं भारतीय परम्पराओं को तार-तार करने का आखिरी प्रयास है। संसद में, संसद परिसर में और सड़क पर राहुल गांधी क्या गिरी से गिरी हरकत कर जाएं, क्या वितण्डा खड़ा करें, किस हद तक झूठ व भ्रम की चादर तान कर करोड़ों भारतीयों को मूर्ख बनाने का प्रयास करें, जोकरों, विदूषकों की भांति क्या क्या नौटंकी करें और भारतीय राजनीति को किस स्तर तक गिरायेंगे, इसका अनुमान लगाने वाला दुनिया में कोई प्राणी नहीं है क्योंकि सत्ता हासिल न करने की छटपटाहट और इंडी गठबंधन के नेतृत्व से पत्ता साफ होने की संभावनाओं से आशंकित राहुल विक्षुब्ता की स्थिति में पहुंच चुका है। अपने कर्मकांडों के संभावित परिणामों की कल्पना से उद्वेलित है, भविष्य में जो भी बुरा कर जाए, उससे कुछ बईद नहीं।

राहुल ने मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल का प्रस्ताव मीडिया के सामने फाड़ डाला, संसद में ज्योतिरादित्य सिंधिया को आँख मारी, प्रधानमंत्री मोदी के अचानक आकर गले पड़ा, महिला सांसदों की ओर चुम्बन का इशारा उछालने का कुत्सित कार्य किया, मदारियों की तरह तालियां बजाई, भद्दे इशारे किये, भगवान शिव और गुरुनानक देवजी के चित्रों का अभद्र अनादरपूर्ण प्रदर्शन किया, बिना अध्यक्ष की अनुमति के आंदोलित किसानों की मृत्यु पर दो मिनट की श्रद्धांजलि अर्पित करने की घोषणा की और मात्र 32 सेकेंड में धम से बैठ गया। लोकतंत्र में इस शख्स का आचरण कैसा है, यह सब पार्लियामेंट टी.वी. में कैद है। भूकम्प लाने की शेखी भी।

शालीनता और गंभीरता का त्याग कर कभी काला, कभी नीला चोला धारण करना, संसद के सामने पुराना ट्रैक्टर फूंकना, सड़क पर टायरों में आग लगाना, सड़क छाप शोहदों की तरह बेरी केडिंग के ऊपर चढ़‌ना, संसद की कार्यवाहियों को लगातार ठप कराना, मीडिया वालों को धमकियां देना, नाम कहां तक गिनायें- कांग्रेस के पुराने, दिग्गज नेताओं को लगातार अपमानित कर उन्हें पार्टी छोड़ने को मजबूर किया। संसद को अपने खेल का मैदान बना दिया। उनका पालतू तोता भारत भर में आग लगाने की रट लगा रहा है क्यूंकि मालिक पहले कह चुका है कि पैट्रोल छिड़‌का हुआ है, माचिस की तीली जलाने भर की देर है।

इस खेल के चलते राहुल ने अपना कुटिल वीभत्स चेहरा दुनिया को दिखा दिया। प्रियंका कहती है- मेरे भाई ने कुछ नहीं किया। खड़‌गे और अन्य चापलूस पेशबंदी में भ्रम का ताना बाना बुन रहे हैं। यह आईटी का युग है। कैमरा सच बोलता है।

प्रताप चंद्र सारंगी जैसे साधु हृदय, सरल, निष्कपट व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने वाला राहुल लाख पेशबंदी एवं प्रपंच करने के बाद भी ईश्वरीय न्याय से कतई नहीं बच सकता।

जो व्यक्ति केंद्र में राज्यमंत्री बनने के बाद भी अपने छप्पर वाले झोपड़ी नुमा छोटे से मकान में रहता है। सार्वजनिक नल से खुद पानी भरता है, लग्जरी कारों को छोड़ पुरानी साइकिल पर चलता है, जिसके पास संपत्ति के नाम पर कुछ पुरानी पुस्तकें, एक पुराना बिस्तर, एक चटाई, 2-4 पुराने बर्तनों की कुल जमापूंजी हो, अपनी खेत की कमाई और सांसदी की पेंशन गरीब बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करता हो, जिसने अपनी वृद्धा माँ को अविवाहित रह कर ईश्वर के समान पूजा हो, राहुल ने इस बूढ़े फ़कीर के लहू‌लुहान होने पर सांत्वना के दो शब्द भी नहीं कहे, उल्टे घटना के बाद अपनी प्रेस कांफ्रेंस में अडानी राग अलापा।

राहुल जरा याद ‌करो तुम्हारी दादी इन्दिरा गांधी ने 7 नवंबर 1966 को संसद भवन के सामने गोभक्तों और भारतीय संस्कृति के उपासक हजारों साधु सन्तों तथा स्वामी ब्रह्मानन्द, निरंजन देव तीर्थ, रामचन्द्र वीर, प्रभुदत्त ब्रह्मचारी और संत शिरोमणि, सनातन के ध्वजवाहक स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ क्या किया था और उसका कुपरिणाम तुम्हारे पूरे खानदान को कैसे भुगतना पड़ा था। यह रास्ता महाविनाश का है। छल-प्रपंच, पाखंड छोड़ कर सत्य मार्ग का अनुसरण करोगे तो कल्याण होगा। विवेकशील व्यक्ति नियति के न्याय को ध्यान में रख अपना मार्ग निर्धारित करता है। तुम्हारे कुकृत्य से सारंगी की ही नहीं, करोड़ों भारतीयों की आत्मा पीड़ित हुई है। याद रखो, नियति के न्याय के समक्ष सब दांव-पेंच नाकाम हो जाते हैं।

गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'