बलिदानी साहिबजादों को नमन !

देश-धर्म हेतु आत्म बलिदान देने वाले और इन सिख गुरुओं के परिजनों द्वारा बलिदान देने वालों की उत्कृष्ट परंपरा भारत के अलावा दुनिया के किसी भी अन्य देश में नहीं मिलती। कश्मीरी पंडितों का धर्म बचाने के खातिर गुरु तेगबहादुर जी ने दिल्ली के चाँदनी चौक (जहां अब गुरुद्वारा शीशगंज साहिब स्थित है) में 24 नवंबर, 1675 में शहादत दी। उनके पुत्र गुरु गोबिन्द सिंह जी तथा साहिबजादे अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह व फतेह सिंह देश-धर्म की रक्षा में शहीद हो गए।

गुरु तेगबहादुर का सिर कलम कराने के बाद भी औरंगजेब के भीतर बैठा रक्त पिपासु दानव शान्त नहीं बैठा क्यूंकि उसे राष्ट्रभक्त हिन्दुओं व सिक्खों से चारों ओर से चुनौतियां मिल रही थीं। इस विद्रोह को दबाने और भारत का इस्लामीकरण करने के उद्देश्य से औरंगजेब ने चहेते मुस्लिम सिपहसालारों व गद्दार हिन्दुओं की मदद से हिन्दुओं के धर्मान्तरण व उनके कत्लेआम का अभियान चलाया।

औरंगजेब ने सरहिन्द के गवर्नर वजीर खान को गुरु गोबिन्द सिंह को पराजित कर आनन्द‌पुर साहेब पर कब्जा करने का आदेश दिया। मुगल सेना ने घेराबंदी कर चुनौती दी। सरसा नदी के किनारे भीषण युद्ध हुआ। 10 लाख मुगल सैनिको से मुकाबला था। वजीर खान के हजारों सैनिक मारे गए। 21 दिसंबर, 1705 को अदम्य वीरता से मुगलों का सामना करते हुए शाहजादा अजीत सिंह (18 वर्ष) तथा शाहजादा जुझार सिंह (14 वर्ष) शहीद हो गए। गंगू नामक सेवक ने गद्दारी कर माता गूजरी और साहिबजादे जोरावर सिंह व साहिबजादे फतेह सिंह को मुगलों के हवाले कर दिया। तब उनकी उम्र महज़ 9 बरस व 7 बरस थी। वजीर खान ने कड़‌कड़ाती ठंड मे तीनों को ऊंचे बुर्ज में कैद कर भीषण यातनायें दी। वजीर खान के दरबारी मोतीराम ने चुपके से तीनों के लिए गर्म दूध भेजा जिसका भेद खुलने पर वजीर खान ने मोतीराम को कोल्हू में पिलवाकर मार डाला। दोनों साहिबजादों पर मुसलमान बनने का जोर डाला। इंकार करने पर जिन्दा ही दीवार में चिनवा दिया। माता गुजरी को बुर्ज के नीचे फेंक कर मार डाला गया।

राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने चारों शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा था:

जिस कुल, जाति, देश के बच्चे दे सकते हों यौं बलिदान।
उसका वर्तमान कुछ भी हो, भविष्य है महा महान्‌।।

इन वीर बलिदानियों को हमारी और समग्र देश की विनम्र श्रद्धांजलि।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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