माता नानकी ने तुहारा नाम 'मनमोहन' ठीक ही रखा था। तुम 'सिंह' बन कर जिये और शान्त, निष्पृहभाव से दुनिया में रह कर चले गये। वह दुनिया जो छल, कपट, दम्भ, घात प्रतिधात तथा धोखाधड़ी, विश्वासघात की वर्जनाओं से भरी है।

26 दिसंबर, 2024 को नश्वर शरीर त्यागा। दिवंगत के प्रति भारत में अनेक औपचारिकतायें हैं- रस्म अदायगी है, शब्दों का मकड़‌‌जाल है जिनमें जाने वाले का व्यक्तित्व उलझ जाता है, स्पष्ट बोध नहीं होता। मनमोहन सिंह के विषय में ऐसा नहीं हुआ। भारत के सामान्य नागरिक से लेकर महामहिम राष्ट्रपति तक ने जो कहा, मन से कहा, यह 140 करोड़ भारतियों के अंतःकरण की आवाज़ है। उन के जीवित रहते नरेन्द्र मोदी ने कहा- आप हमारे लिए गाइडिंग लाइट हैं, लोकतंत्र को सुदृढ़ता प्रदान करने वाले योद्धा। आप के जाने के बाद प्रधानमंत्री ने कहा- 'वे सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी का प्रतिबिंब थे। राष्ट्र के संकट के दौर में आर्थिक सुधारों के शिल्पी थे, खेवनहार थे। हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिये मनमोहन सिंह प्रेरणा के स्रोत रहेंगे।' मोदी जी के इन शब्दों में कोई औपचारिकता, दुराव-छिपाव नहीं है। यह समग्र राष्ट्र की आवाज़ की प्रतिध्वनि है।

डॉ. मनमोहन सिंह का संघर्ष, जीवन की उपलब्धियां, पद और राष्ट्रसेवा, सब का विवरण, लेखा जोखा सामने है। इन सब का उल्लेख आवश्यक नहीं। एक कथन को याद दिलाना जरूरी है। अर्थशास्त्री और देश का हितैषी होने के नाते उन्होंने कहा था कि फ्री बीज यानी कर्जमाफी, चुनावी मुफ्तखोरी, बिजली-पानी मुफ्त, टैक्स माफी देश को तबाही की ओर ले जाने का रास्ता है। स्वामी नाथन रिपोर्ट को अव्यवाहरिक मानकर उस पर अमल नहीं किया। इसे किसान विरोधी माना।

यह भी नहीं भूला जा सकता कि डॉ. मनमोहन सिंह ने लाइसेंस राज का खात्मा कर विदेशी एवं देशी पूंजी निवेश का क्रान्तिकारी कदम उठा कर उद्योग जगत को सरकारी शिकंजों से मुक्त कर प्राणदायक माहौल बनाया जिसमें अम्बानी और अदानी जैसे औद्योगिक घराने पनपे। यह मनमोहन सिंह का यथार्थवादी दृष्टिकोण था, जिससे राष्ट्र की प्रगति के द्वार खुले। बदले में कांग्रेस नेतृत्व ने उनके साथ क्या किया, यह समय इस पर विचार का नहीं। देश को उन्होंने जो दिया, उसके प्रति उनका सदा कृतज्ञ रहेगा।

शत् शत् नमन !

गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'