किशोर और युवावस्था में पहले आल इंडिया रेडियो यानी आकाशवाणी से और बाद में दिल्ली दूरदर्शन से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्रियों द्वारा लालकिला दिल्ली की प्राचीर से दिये जाने वाले राष्ट्र के नाम संबोधनों को सुना और देखा। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर महामहिम राष्ट्र‌पति जी के राष्ट्र के नाम सन्देश को भी सुना। इनमें कुछ रस्मी बातें और सरकार की नीतियों का बखान होता था। नरेन्द्र मोदी के लालकिले के भाषणों से दिशा में यह सकारात्मक बदलाव आया कि सरकार ने घोषणाओं को अमल में लाने के लिए ठोस कदम उठाना शुरू कर दिये।

फिर भी हम इन औपचारिक घोषणाओं से कहीं अधिक प्रेरणादायक एवं राष्ट्रहितैषी उन भाषणों, सन्देशों, उद्‌बोधनों को मानते हैं जो समग्र राष्ट्र के हितों को दृष्टिगत रख विजयदशमी के पर्व पर नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक संबोधित करते है।

इस बार भी डॉ. मोहन भागवत के संबोधन को देश-विदेश के करोड़ों हिन्दुओं ने सुना। उन्होंने देश, भारतीय समाज और विदेशी परिदृश्यों का गहराई के साथ विश्लेषण कर भारत और बांग्लादेश, पाकिस्तान सहित दुनियाभर के हिन्दुओं को सन्देश दिया है- 'दुनियाभर के हिन्दुओं को समझना चाहिये कि दुर्बल और असंगठित रहना अपराध है। यह अत्याचारों को निमंत्रण देना है। यदि हिन्दू समाज संगठित नहीं रहता है तो उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। सांस्कृतिक, मार्क्सवादी और आन्दोलनजीवी ताकतें हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं के घोषित दुश्मन हैं। राष्ट्र को क्षति पहुंचाने या नष्ट करने के प्रयासों को समय पूर्व रोकना जरूरी है।'

संघ प्रमुख का हिन्दू समाज से यह पूछा जाना हृदय को आलोड़ित करने वाला और आत्म निरीक्षण का प्रेरक है कि वाल्मीकि रामायण तो पूरे समाज के लिए लिखी गई थी, फिर वाल्मीकि जयन्ती अकेले वाल्मीकि कॉलोनियों में क्यूं मनाई जाती है? वाल्मीकि और रविदास जयन्ती मिल कर क्यूं नहीं मनाते।

बहुसंख्यक हिन्दू अपने ही देश में अपमानित, असुरक्षित हैं। अपनी रक्षा के लिए सक्षम नहीं। ओवैसी 15 मिनट के लिए पुलिस हटाने की धमकी देता है। दुर्गामूर्ति विसर्जन पर हमले होते हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा का सामर्थ्य पैदा करना लक्ष्य होना चाहिए। डॉ. मोहन भागवत ने संक्षेप में बहुत कुछ समझा दिया। इसको हृद‌यंम करने की अनिवार्यता हमारे सामने है।

गोविन्द वर्मा