यह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का युग है। बड़े-बड़े मीडिया हाउस सत्य के पहरुवे बन कर झूठ को सत्य की झूठी चाशनी में लपेट कर परोसते हैं और टी.आर.पी बढ़ा कर डींगें हांकते हैं। कभी झूठे, मनघडंत समाचार और विचार छापने वाले संपादकों-पत्रकारों को गलत रास्ते पर चलते ही उन्हें पीत पत्रकारिता करने वाला कहा जाता था, आज झूठे, अर्द्धसत्य, मनघडंत समाचार-विचार पेश करने वाले टीवी चैनलों को कोई कुछ नहीं कहता, भारतीय प्रेस परिषद भी चुप रहती है।
टीआरपी बढ़ाने के उद्देश्य से प्रायः सभी टी.वी चैनलों ने अलग-अलग नाम से वाद-विवाद प्रतियोगितायें शुरू की हैं, जिनमें हिस्सा लेने वाले पैनेलिस्ट मर्यादा और शिष्टाचार को ताक पर रख कर सच्चाई और तथ्यों की धज्जियां उड़ाते हुए एक दूसरे पर इस तरह टूट पड़ते हैं मानो टीवी डिबेट नहीं, मुर्गों की लड़ाई हो रही हो। इन डिबेट में एंकर कभी हंटरमास्टर बन कर बोलने वाले को लताड़ता है (या लताड़ती है), तो कभी किसी राजनीतिक दल का एक प्रवक्ता न केवल एंकर को अपमानित करता है बल्कि गाली-गलौज पर उतर आता है।
अभी हाल में अयोध्या, कोलकाता, कन्नौज में अत्यंत शर्मनाक घटनायें हुईं। दोषियों की तरफदारी अथवा पैरोकारी या बलात्कारियों को निर्दोष साबित करने के लिए राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने जिस निर्लज्जता और ढीठपन से दलीलें दीं और तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा ,उसे देख कर कोई भी कहेगा कि अपने आकाओं की स्वामीभक्ति में उनकी बुद्धि, विवेक, शर्महया सब नष्ट हो चुका है।
कन्नौज की घटना पर टीवी चर्चा के दौरान सपा की प्रवक्ता जूही सिंह ने कहा- 'आखिर रात के 11 बजे लड़की वहां कौन सी नौकरी हासिल करने गई थी?' इसी प्रकार कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने अयोध्या, कोलकाता, कन्नौज के दुष्कर्म के सवाल को गोल करके हाथरस का मुद्दा उठा मुस्कराना शुरू कर दिया। बलात्कार जैसे जघन्य कुकृत की चर्चा के दौरान खेड़ा की मुस्कुराहट उनकी और उनकी पार्टी कांग्रेस के चरित्र का खुलासा कर रही थी। क्या इन लोगों का एक ही मक़सद रह गया है- झूठ, झूठ और सिर्फ झूठ! झूठे ढपोलची हर युग में होते रहे हैं।
गोस्वामी जी ने इनके विषय में ठीक ही लिखा है:-
झूठहि लेना, झूठहि देना, झूठहि भोजन, झूठ चबेना!
टी.वी का स्विच ऑन करेंगे तो यह झूठ सुनना ही पड़ेगा।
गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'