20 अक्टूबर: भारत के नेताओं की महिमा न्यारी है। 19 अक्तूबर को तीन नेताओं के श्रीमुख से ऐसे वचन उच्चरित हुए जिनसे सुलटने को आप घंटों मग़ज़पच्ची करेंगे लेकिन माज़रा आपको समझ न आएगा। पलटूराम के नाम से चर्चित बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा व नरेन्द्र मोदी विरोधी पाले में खड़े हैं। प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी हैं। दर्जनों बार कह चुके हैं कि इस जन्म में तो भूल कर भाजपा की ओर रुख न करेंगे। सुशासन बाबू ने यह तो कहा लेकिन भाजपा के साथ दोस्ती का दम वे अब भी भर रहे हैं, हालांकि उन्हें अब दुलारने-पुचकारने वाले लालू यादव केंचुली बदलने वाला सांप कह चुके हैं।
ये नीतीश कुमार 19 अक्टूबर को मोतिहारी के एक समारोह में बोले कि जब तक जिन्दा हूं, भाजपा के नेताओं के साथ उनकी दोस्ती कायम रहेगी। कार्यक्रम में मौजूद भाजपाजन नीतीश बाबू के मुखारविन्द से निकले इन वचनों का निहितार्थ खोज रहे हैं। शायद नीतीश जी सोच रहे हैं: हटाये थे जो राह से दोस्तों की, वे पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं !

बरसों से सचिन पायलट और अशोक गहलोत की नूराकुश्ती देखने वाले बेचारे राजस्थानी भाई कुछ समझ ही नहीं पा रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में राहुल ने आकर बहकाया-जितनी देर 10 तक की गिनती गिनने में लगती है, उतनी देर तुम्हारे सारे कर्जे माफ करने में लगेंगी, बस गहलोत साहब को जिता दो। अब विधानसभा चुनाव फिर सिर पर हैं और सचिन-गहलोत की कुश्ती अब भी जारी है। 19 अक्टूबर को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में पहुँच कर अशोक गहलोत ने एक भद्र महिला की कथा सुनाई। वह भविष्यवाणी कर रही थी कि इसबार भी आप ही (गहलोत) मुख्यमंत्री बनोगे। गहलोत जी ने कहा- मुझे मुख्यमंत्री की कुर्सी का लालच नहीं, लेकिन कुर्सी ही मुझे छोड़ना नहीं चाहती। बीच में वसुन्धरा राजे का भी प्रसंग आया। संदेश दिल्ली पहुंच गया। अब सचिन पायलट का क्या दांव होगा ?

19 अक्टूबर को शाहजहांपुर में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यह रहस्योदघाटन किया-कांग्रेस ने हमारे साथ धोखा किया है। क्या वे पिछले चुनाव के बारे में बता रहे थे, जब हाथ व साइकिल थामें दो लड़के साथ-साथ चले थे ? या वे इंडी गठबंधन की बात कर रहे हैं? उनके कथन का मतलब निकलता है कि वे गठबंधन तो कर लेंगे लेकिन कांग्रेस के चिरकुट नेताओं के ज़रिये नहीं। वैसे यह गठबंधन है या ठगबंधन? ठग ही जाने ठग की रीति ! ये क्या कह रहे हैं, इसे तो वे आपस में समझ सकते हैं।
गोविन्द वर्मा