आज भारत की दो चर्चित नेत्रियों से संबंधित संक्षिप्त समाचारों अथवा घटनाक्रमों के विषय में कुछ कहना चाहूंगा। संसद के बजट सत्र के पहले दिन आज जब समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और दीर्घकाल तक प्रदेश की राजनीति के ध्रुव रहे मुलायम सिंह यादव सदन में अपनी हाजरी लगा कर दो सहायकों के सहारे संसद भवन की सीढ़ियों से उतर रहे थे तो केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने उन्हें आते देखा, वे तीव्रता से आगे बढ़ीं और नीचे झुक कर उनके चरण स्पर्श कर लिये। स्वाभाविक ही समाजवादी आंदोलन के शिखर पुरुष ने उन्हें आशीष दिया।
मैं इस घटना को कोरी औपचारिकता नहीं मानता। ये वे संस्कार हैं जिनके इर्दगिर्द आदमी पनपता और जीता है। परिस्थितियां और व्यक्ति की परवरिश तथा सदगुरुओं से मिली शिक्षा उसे संस्कारवान बनाती है। मुलायम सिंह यादव निश्चित रूप से वर्तमान समय के बड़े नेता हैं जो कड़े संघर्ष और आम आदमी के सरोकारों के लिये लड़ते हुए इस मुकाम तक पहुंचें हैं। आज वे बूढ़े शेर की स्तिथि में हैं किंतु उनकी उपलब्धियों और सेवाओं को नकारा नहीं जा सकता। देश के करोड़ो लोग आज भी उनकी संघर्षशीलता और राजनीति में योगदान के कायल हैं। उनकी कुछ नीतियों से असहमत होते हुए भी मैं उनका प्रशंसक हूं, क्योंकि वे जमीन से जुड़े नेता हैं। विरोधी पक्ष का नेता होने के बाद भी स्मृति ईरानी ने नेताजी के प्रति आदरभाव दिखाया, जो हमारी पुरातन संस्कृति का प्रतीक है।
दूसरा समाचार पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से संबंधित है जो खुद को घायल शेरनी और स्ट्रीट फाइटर कह कर खुद ही अपनी पीठ थप-थापती हैं। वे किन फार्मूलों (जिन्हें हथकंडे भी कहा जा सकता हैं) को अपना कर बंगाल की सत्ता पर काबिज़ हैं, यह सर्वविदित है। बरहाल वे संविधानिक प्रक्रिया से चुनी हुई मुख्यमंत्री हैं। जिस प्रकार एक सामान्य नागरिक पर देश का कानून आयद होता है, इसी प्रकार मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री पर भी कानून व नियम लागू होते हैं किंतु ममता बनर्जी अपनी सनक व तानाशाही के अलावा कानून-कायदों को मानने को तैयार नहीं। संविधान की, कानून की और केंद्र तथा अदालतों के नियमों व निर्देशों को मानना ममता को नहीं सुहाता। संविधान के अनुसार राज्यपाल राज्य का प्रमुख होता है। राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच समन्वय होना अति आवश्यक है, किंतु समन्वय तो दूर ममता राज्यपाल जगदीप धनखड़ के विरुद्ध निरन्तर विषवमन करती आई हैं। इतना ही नहीं अपने समर्थकों के जरिये राज्यपाल का अपमान ही नहीं, गाली-गलौज तक करवा रही हैं। आज तो ममता बनर्जी ने अपनी तानाशाही और मर्यादाओं के अतिक्रमण के रिकॉर्ड ही तोड़ दिए। ममता ने राज्यपाल धनखड़ का ट्विटर एकाउंट ब्लॉक कर दिया। यानि वे अपने राज्य के संवैधानिक प्रमुख का कोई विचार सुनने को तैयार नहीं। यह राजनीतिक दुष्टता की पराकाष्ठा है। संविधान व नियम कायदे किसी नेता की जेब में बंद करके नहीं रखे जा सकते, चाहे वह मुख्यमंत्री ही क्यूं न हों। ममता की तानाशाही व असहिष्णुता सीमायें लांघ चुकी है। इसका इलाज होना जरूरी हो गया है।
गोविंद वर्मा
संपादक देहात