इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस राजेश बिंदल ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश में ऐसी ब्यूरोक्रेसी पहले नहीं देखी जो आदेश का पालन नहीं करती और स्पष्टिकरण भी नहीं देती। यह टिप्पणी बेहद गंभीर है क्योंकि राज्य सरकार के महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र ने भी इस पर सहमति व्यक्त की है। श्री मिश्र ने अदालत में कहा ब्यूरोक्रेसी के रवैये से में भी असहाय हूँ।
यदि बड़ी अदालत नौकरशाही के कामकाज और आचरण पर इस प्रकार की टिप्पणी करती है तो यह गंभीर समस्या है। अदालत पहले भी नौकरशाहों के तौर-तरीकों पर कटु टिप्पणी कर चुकी है इससे ज्ञात होता है कि जनता लापरवाह नौकरशाही से किस प्रकार पीड़ित है। पिछले दिनों स्वास्थ्य विभाग में बड़े पैमाने पर चिकित्सकों के सामूहिक स्थानांतरण कर दिए गए लेकिन स्वास्थ्य मंत्री को इसकी खबर नहीं हुई। उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने इस पर कड़ा रुख अपनाया था। एक राज्य मंत्री ने सरकारी बाबुओं के रवैये से दुखी होकर त्यागपत्र भी दे दिया था। यह भी समाचार है कि कुछ राज्य मंत्री नौकरशाहों की उपेक्षावृति व लाहपरवाही से परेशान हैं। नौकरशाही का कर्तव्य सरकार को गतिशीलता से संचालित करने का होता है, न कि काम में बाधा डालने का। दुर्भाग्य से उत्तर प्रदेश में यही हो रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बेलगाम ब्यूरोक्रेसी की लगाम कसने की जरूरत है।
संपादक वर्मा
संपादक ‘देहात’