12 नवंबर: कृषि प्रधान देश में आज़ादी के अमृत काल में भी किसानों को बदहाली व आर्थिक तंगी के बीच जीना पड़ रहा है, बल्कि यह कहा जाए कि मरना पड़ रहा है तो गलत न होगा। केरल के कुट्टनाड इलाके के तकाझी गांव के किसान के.जी. प्रसाद ने धान का मूल्य समय पर न मिलने तथा आर्थिक संकट से परेशान हो कर आत्महत्या कर ली।
केरल में धान की खरीद राज्य सरकार करती है किन्तु समय से भुगतान नहीं होता। के.जी. प्रसाद के पास से एक पत्र बरामद हुआ है, जिसमें उन्होंने अपनी अकाल मृत्यु के लिए केरल की सरकार को दोषी बताया है।
केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता वी.डी. सतीशन ने कहा है केरल की पिनाराई विजयन सरकार ने किसान से धान तो खरीद लिया किन्तु महीनों बीत जाने के बाद भी भुगतान नहीं किया जिससे लाखों किसान आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। किसान के.जी. प्रसाद की मृत्यु के लिए मुख्यमंत्री विजयन पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। राज्यपाल आरिफ मौहम्मद खान ने किसान की खुदकुशी पर खेद प्रकट किया है। इधर, केन्द्रीय राज्यमंत्री वी. मुरलीधरन ने भी कहा है कि केरल की सरकार किसानों का हित साधने में विफल रही है। इस प्रकार केरल के किसान की आत्महत्या पर नेतागण दुःख प्रकट कर रहे हैं।
वास्तविकता यह है कि देश के प्रायः सभी राज्यों में किसानों को कम मूल्य और समय पर फसल का भुगतान न मिलने के संकट से दो-चार होना पड़ रहा है। कभी नासिक के प्याज उत्पादकों को मुम्बई तक मार्च निकालना पड़ता है तो कभी सेबों के बागान मालिक परेशान होते हैं। उत्तर प्रदेश में तो गन्ना उत्पादक समय पर भुगतान लेने के लिए घेराव व जाम लगाने तथा अधिकारियों को प्रताड़ित करने के आदी बन गए हैं।
किसानों को उनके उत्पादन का लाभकारी मूल्य दिलाने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार तीन कृषि कानून लाई थी लेकिन मण्डी माफियाओं और उनके गुर्गों ने उनका रामनाम सत्य बोल दिया।
आज केरल के किसान को सरकार के कुप्रबंध व नियत में खोट के कारण बे मौत मरना पड़ा किन्तु ये दुःखद घटनायें तो पूरे देश में होती हैं। आंकड़ेबाज़ी व एक-दूसरे पर दोषारोपण त्याग कर इस पुरानी कष्टप्रद समस्या का समाधान होना चाहिए। किसानों को भी समझना होगा कि कौन उनका हितैषी है और कौन उन्हें ‘अन्नदाता’ बताकर उनका शोषण कर रहा है।
गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'