18 नवंबर: मीडिया के एक वर्ग ने देश में ऐसा माहौल बना दिया है जिससे कि जनता यह मानने को मजबूर हो जाए कि हिन्दू, हिंदुस्तान, हिन्दुत्व तथा हिन्दू सरकारों का नाम लेने वाला हर शख्स देशद्रोही, साम्प्रदायिक व मुस्लिम विरोधी है। अतः जब भी कोई हिन्दू संस्कृति व हिन्दू हितों की बात करता है, मीडिया का एक विशेष वर्ग उसे लांछित करने में जुट जाता है।
गत 18 नवंबर को राजस्थान में भाजपा के पक्ष में प्रचार करने आये असम के मुख्यमंत्री हिमन्त विस्व सरमा के साथ ऐसा ही हुआ। प्रायोजित प्रश्न करने और इकतरफा प्रचार अभियान चलाने वाली मीडिया के एक पत्रकार ने श्री हिमन्ता पर जयपुर में सवाल दागा कि आप हिन्दू पॉलिटिक्स करते हैं। इस पर श्री हिमंता ने कहा- मैं खुलकर हिन्दूवादी पॉलिटिक्स करता हूँ जो सर्वे सुखन: की भावना पर आधारित है। मैं बाबर और औरंगजेब के नाम पर पॉलिटिक्स नहीं कर सकता।
सारी दुनिया, और बंधुवा मीडिया के कल-पुर्जे भी यह जानते हैं जिस लीगी मानसिकता ने दो-राष्ट्र सिद्धान्त और हिन्दू-मुस्लिम पॉलिटिक्स को आगे कर भारत के टुकड़े कराये, अब उसी मानसिकता के मुस्लिम नेता पूरी ताकत के साथ देश में मुस्लिम पॉलिटिक्स चला रहे हैं।
हैदराबादी भाई, देवबन्दी व बरेलवी मौलाना तथा फुरफुरा शरीफ़ जैसे दर्जनों इस्लामी इदारों के मुखिया क्या मुस्लिम राजनीति नहीं चला रहे ? कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब ये लोग घोर साम्प्रदायिकता से ओत-प्रोत जहर भरा भाषण न देते हों। हिन्दुओं को खुले आम धमकी दी जाती है कि पन्द्रह मिनट के लिए जरा पुलिस हटा कर दिखाओ। अतीत में बंगाल के डायरेक्ट एक्शन, मोपला दंगों और कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को याद दिलाया जाता है। ओवैसी खुले आम धमकी देता है कि जब मोदी पहाड़ों पर चला जायेगा और योगी कमंडल उठा कर अपने मठ में जा घुसेगा, तब तुम्हें कौन बचाने आयेगा? 1947 जैसे हालात बनाने वाले जिहादी नेता व उनकी पालतू मीडिया चाहती है कि देश में हिन्दुत्व का नाम लेने वालों की जुबान खींच ली जाए। क्या यह मुनासिब और मुमकिन है ?
गोविन्द वर्मा