उत्तरप्रदेश मंत्रिमंडल ने अपनी 10 मई की बैठक में जो निर्णय लिये हैं उनमें एक चौंकाने वाला फैसला आया है, यह कि राज्य सरकार अब घरों में भी बार यानि मयख़ाना खोलने के लाइसेंस जारी करेगी। अपर मुख्य सचिव संजय भूसरेडी ने बताया है कि अपने मित्रों व मेहमानों को घरों में शराब परोसने के लिये अब किसी बार में जाने की आवश्यकता नहीं होगी वरन् घर में ही बार खुल सकेगा, मकान मालिक को उसकी लाइसेंस फीस जमा करनी होगी।

सम्भवतः आपको याद होगा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने जब नयी शराब नीति घोषित कर उस पर अमल शुरू किया था तब बहुत कोहराम मचा था। केजरीवाल सरकार ने शराब की नयी दुकानों के लिये स्थान की दूरी, हदूदर्बा यानि आसपास की स्थिति, दुकान खुलने का समय और दुकानों की बंदिशों को खत्म कर दिया था। केजरीवाल की नई आबकारी नीति के आधीन कोई भी कहीं भी शराब की दुकान खोल सकता है अर्थात स्कूल, मंदिर, मस्जिद आदि नजदीक होने के बावजूद शराब की दुकानें खुल सकेंगी। बाजार बन्द होने की समय सीमा भी नहीं लागू होगी। इतना ही नहीं, लोग अपनी छतों पर भी शराब बेच सकेंगे। दिल्ली सरकार की इस नयी आबकारी नीति के लागू होते ही भारतीय जनता पार्टी ने चिल्ल-पुकार मचा दी थी और कहा गया था कि केजरीवाल एक ओर पंजाब को नशामुक्त कराने का दावा कर रहें हैं, दूसरी ओर दिल्ली को मुकम्मल शराबख़ाने में तब्दील कर रहे हैं। दिल्ली भाजपा ने विरोध में पूरी दिल्ली में चक्का जाम करा दिया था।

इतिहास में कुछ पीछे जायें तो पता चलेगा कि महात्मा गांधी ने देश में पूर्ण नशाबन्दी की बात कही थी। उनकी अपील पर देशभर में जगह-जगह शराब की दुकानों के सामने कांग्रेस कार्यकर्ता पिकेटिंग करते थे और गिरफ्तारियां देते थे। स्वदेशी सरकार बनने पर महात्मा जी के इस विचार को तिलांजलि दे दी गई क्योंकि शराब राजस्व का बड़ा साधन था। यह भी याद दिलाना समीचीन होगा कि हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल को शराबबन्दी की कीमत अपनी सरकार खो कर चुकानी पड़ी थी। बिहार सरकार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने जब से अपने राज्य में शराबबन्दी लागू की है, तभी से कभी जहरीली शराब के मसले और राजनीतिक छीछीलेदर का सामना कर रहे हैं।

आपको याद होगा कि कोरोना काल में कुछ ढील होते ही केजरीवाल ने सबसे पहले शराब के ठेके खोले थे। शराब की कीमतें दुगनी होने के बाद भी दुकानों पर लम्बी-लम्बी कतारें लग गई थीं। वे दृश्य टी.वी. चैनलों व सोशल मीडिया में भी खूब आये थे। केजरीवाल ने बजट का घाटा एक हफ्ते में ही पूरा कर लिया था। अपने इस अनुभव का पूरा लाभ उठाने के लिए ही केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने नयी आबकारी नीति बनाई है। केजरीवाल तो खुद को बेझिझक ‘स्वीट टेरीरिस्ट’ बतातें हैं किन्तु योगी जी के बारे में क्या कहा जाये? उनकी शोहरत सख्त प्रशासक की है। ईमानदारी और निष्पक्षता पर भी कोई सवालिया निशान नहीं। हमें याद है कि मुलायम सिंह यादव जब रक्षामंत्री थे तब वाइन किंग बाबू किशनलाल की लड़की की शादी में बारात के स्वागत में घंटों हाथ जोड़े खड़े रहे थे। पोंटी चड्ढा नेताजी की सत्ता जाने के बाद बहिन जी के मुरीद बन गये थे और शराब की बोतलों पर माया टैक्स लगने लगा था। योगी जी के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है। उन्होंने तो ऑन लाइन बोली की पृथा शुरू कर शराब सिंडीकेट का वर्चस्व खत्म किया है। तो फिर यह निर्णय क्यों हुआ?

शराब राजस्व का सरल और उम्दा साधन है। पैट्रोल, गैस, नून-तेल-लकड़ी के दाम थोड़े बढ़ते हैं तो कोहराम मचने लगता है लेकिन शराब की कीमत बढ़ने पर न तो पीने वाले और न ही विपक्षी दल ही चू-चपड़ करते, इस लिए क्या योगी जी को अधिकारियों ने यह गलत फार्मूला सुझाया है? कहीं ऐसा न हो कि पीने वाले कहने लगेंः

पी शौक से वाइज़ अरे क्या बात है डर की,
दोज़ख़ तिरे कब्जे में है, जन्नत तिरे घर की!
यह स्थिति आने से पहले योगी बाबा अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें।

गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'