21 मार्च, 2025 को जब मीडिया में खबर आई कि दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर लगी आग को बुझाने जब अग्निशमन दल के लोग पहुंचे तो वहां करोडों रूपयों के करेंसी नोटों की अधजली गड्डियां उन्हें देखने को मिलीं। इतना ही नहीं, जज साहब की कोठी के बाहर कचरे के बोरे में भी जले हुए नोट बड़ी मात्रा में मिले।

लोग जानते तो पहले से ही थे कि न्यायपालिका में क्या क्या गुल खिलते हैं लेकिन न्यायपालिका की मर्यादा को अक्षुण्ण रखने की भावना और अवमानना के डंडे से भयाक्रान्त लोग चुप रह कर कथित निष्पक्ष न्यायपालिका का तमाशा देखते रहे।

मुकदमों को कैसे निपटाया जाता है, कैसे पैसे के बल पर तारीख पर तारीख लगाई जाती हैं, वादों को लम्बा खींचा जाता है, कचहरी में न्यायव्यवस्था से जुड़े लोगों का कॉकस कैसे पूरे सिस्टम पर हावी रहता है, इसे हर वादी और प्रतिवादी जानता है। सेवा निवृत्त होने के पश्चात कई न्यायधीशों ने न्याय प्रणाली की खामियों को गिनाते हुए कहा है कि सामान्य व्यक्ति के लिए न्याय पाना दुर्लभ है।

अब मजबूती से कहा जा सकता है कि अधिकार पाकर जैसे विधायिका व कार्यपालिका निरंकुश हो जाती है, भ्रष्ट राजनेता और भ्रष्ट ब्यूरोक्रेट्स अपनी जिम्मेदारियों और अपनी सीमाओं को भूल कर हदों को पार कर जाते हैं, इसी प्रकार न्यायपालिका अपनी लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करने से बाज नहीं आती, उदाहरण दस-बीस नहीं, सैकड़ों में हैं। ये प्याज़ के छिलके हैं, उघड़ेंगे तो उघड़ते ही रहेंगे।

जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका, घटना के 6 दिन बाद कॉलेजियम में चर्चा, जांच दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी. के. उपाध्याय को सौंपने, दिल्ली फायर सेवा के प्रमुख अतुल गर्ग की लीपापोती, इलाहाबाद हाईकोर्ट बार संघ अध्यक्ष अनिल तिवारी ने जस्टिस वर्मा को वापस भेजने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर कहा- इलाहाबाद हाई कोर्ट कचरे की टोकरी नहीं है। एक पंक्ति में उन्होंने न्यायपालिका की कैफियत बता दी, लेकिन सुनवाई कुछ नहीं।

यह स्थिति सुप्रीम कोर्ट की है जिसके जज कहते हैं कि न्याय के सिंहासन पर बैठते ही हम न हिन्दू रहते है, न मुसलमान। धर्मनिरपेक्ष हो जाते हैं। लेकिन फैसले हदों से पार जा कर करते हैं।

आखिर किसी न किसी को असलियत पर पड़े पर्दे को हटाना ही था। यह साहस उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दिखाया। बिल्ली के गले में घंटी बांधने वाला कोई तो मिला। श्री धनखड़ ने प्रशिक्षुओं के बीच कहा- 'सुप्रीम कोर्ट को असाधारण अधिकार देने वाला संविधान का अनुच्छेद 124 लोकतांत्रिक ताकतों के विरुद्ध परमाणु मिसाइल बन गया है। यह न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध है। इस लिए हमारे पास ऐसे न्यायधीश हैं जो कानून बनायेंगे, जो कार्यपालिका के कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उनपर लागू नहीं होता है।' श्री धनखड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की समयबद्ध सीमा में कार्य करने के लिए राष्ट्रपति को आदेश देने का अधिकार नहीं है।

उपराष्ट्र‌पति ने जो कहा है वह इस देश के बहुसंख्यक लोगों की आवाज है। इसे अनसुना करना लोकतंत्र का अपमान और तानाशाही होगी।

सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या,
कहती है तुझ को ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ग़ाएबाना क्या!

गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'