अक्सर संसार में ऐसा होता है कि निजी स्वार्थों में लिपटी दुनियादारी के चलते हम जानते हुए भी सच्चाई को कुबूल करने से बचते हैं किन्तु नियति का विधान यह है कि एक न एक दिन सत्य किसी न प्रकार से सामने आ जाता है।
उत्तरप्रदेश के 25 करोड़ लोग नारी सशक्तीकरण के नाम पर नेताओं द्वारा चलाई जा रही नौटंकी या यूं कहें कि धांधली से बखूबी परिचित हैं, उसकी पोल इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने एक झटके में खोल दी है।
हुआ यह कि बिजनौर जिले की एक ग्रामसभा की महिला प्रधान करमजीत कौर के पति सुखदेव सिंह व ग्रामसभा ने कोई वाद प्रधानपति होने के नाते अदालत में डाला। माननीय न्यायधीश ने इस अपील को इस बिना पर ख़ारिज कर दिया कि वह प्रधानपति ने अपनी पत्नी की ओर से दाखिल की थी। जस्टिस शमशेरी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्रधानपति एक बहुप्रचलित शब्द है किन्तु कानून इज़्ज़त नहीं देता कि महिला का पति उसे रबर की मुहर की भाति इस्तेमाल करे, किन्तु यह धड़ल्ले से हो रहा है।
अदालत ने कहा कि राज्य ने महिला सशक्तीकरण के उद्देश्य से निर्वाचित पदों के लिए महिलाओं का आरक्षण सुनिश्चित किया था। उनके पति इस प्रयास में पलीता लगा रहे हैं, यद्यपि प्रदेश में कुछ ऐसी महिला प्रधान हैं जो पतियों के हस्तक्षेप या दबाव के बिना अच्छा काम कर रही हैं। उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि वह महिला उम्मीदवारों से शपथ पत्र दाखिल कराये कि प्रधान पद का निर्वहन वे स्वयं करेंगी। न्यायालय ने ग्राम सभा और प्रधानपति की याचिका रद्द करते हुए दोनों पर 5000-5000 रुपये का हर्जाना भी ठोका और बिजनौर के जिला अधिकारी को निर्देशित किया कि वे देखें कि महिला प्रधान करमजीत कौर अपना काम स्वयं करें।
माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय ने ऐसी सच्चाई से पर्दा उठाया है, जिसे सब जानते हैं किन्तु जानते-बूझते यह धांधली या राजनीति में पुरुषों का दबदबा कायम रखने का षडयंत्र धड़ल्ले से चल रहा है। यह धांधली ग्राम प्रधान पद में ही नहीं अपितु जिला पंचायत अध्यक्ष, नगर पंचायत, नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष व सदस्य पदों में चल रही है। पुरुष प्रधान समाज में हर राजनीतिक दल इस प्रपंच में लिप्त है। क्या महिलाओं में इतना साहस है कि वे पतियों की रबर स्टाम्प न बनें? यह ताकत व ज़ज्बा तो नारी को स्वयं पैदा करना होगा।
गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'