"स्वामी भीष्म जी"

8 जनवरी : क्रन्तिकारी सन्त, भारतीय संस्कृति के उपासक तथा ऋषि द‌यानन्द के सच्चे अनुयायी भीष्म जी की 8 जनवरी को 42वीं पुण्यतिथि थी। ऋषि संदेशों के प्रचार-प्रसार में जुटे आचार्य गुरुदत्त आर्य (मुजफ्फरनगर) की कृपा से मुझे स्वामी जी के दर्शन का सौभाग्य मिला जब वे आनन्दपुरी आर्य समाज में आदरणीय गुरुदत्त जी के आमंत्रण पर मुजफ्फरनगर पधारे थे। स्वामी जी का जन्म मार्च 1859 में हरियाणा के ग्राम तेवड़ा (कुरुक्षेत्र) में हुआ। उनकी राष्ट्रभक्ति, क्रान्तिकारिता एवं पाखंड के विरुद्ध संघर्ष की लम्बी गौरव गाथा है। शहीद-ए-आजम भगत सिंह व क्रांतिवीर चन्द्रशेखर आजाद सरीखे देशभक्त करहेड़ा (गाजियाबाद) स्थित उनकी कुटिया में पहुंच कर उनसे प्रेरणा लेते थे। 8 जनवरी, 1984 में भीष्म जी ने नश्वर शरीर त्याग दिया। उनका वीरोचित क्रांतिकारी जीवन अनंतकाल तक भारत के राष्ट्रप्रेमी युवाओं का मार्गदर्शन करेगा। शत-शत प्रणाम!

"किशन सरोज"

हिन्दी गीतों के कालजयी रचनाकार किशन सरोज को प्रत्यक्ष रुप से देखने-सुनने का सौभाग्य नहीं मिला, यद्यपि मुजफ्फरनगर के कवि सम्मेलनों व गोष्ठी में वे पधारे थे। पांच दशकों से मेरे मित्र, भाई सरीखे डॉ. प्रदीप जैन का मैं अति आभारी हूँ कि उन्होंने सरोज जी की समग्र रचनाओं का संग्रह 'मैं तुम्हें गाता रहूंगा' सप्रेम भेंट किया।

सरोज जी का जन्म बरेली जिले के बलिया ग्राम में 30 जनवरी सन् 1939 में हुआ। विरह की कसक और प्रेम की चाशनी में डुबोये उन के गीत उन्हें अमर कर गए, तथापि उनका भौतिक शरीर 8 जनवरी, 2020 को छूट गया। जब-जब हिन्दी गीतों की चर्चा होगी, तब तब सरोज जी खूब याद आएंगे।

तन की सीमा के पास-पास
तन की सीमा से दूर-दूर
तुमने यूं महकाई मेरी सूनी गलियाँ
ज्यों रजनीगन्धा खिले पराये आँगन में

सरोज जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते यह भी सच्ची बात कहूंगा कि मैंने डॉ. प्रदीप जैन जैसा अनुरागी प्रेमी नहीं देखा जो अपने फेसबुक एकाउंट में सरोज जी द्वारा रचित एक दो हृदयग्राही पक्तियां डालता हो। उन्हें बहुत-बहुत प्रणाम !

गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'