भारत में संविधान संशोधन क्यों होते हैं और ये कैसे लागू होते हैं, यह हमेशा चर्चा का विषय रहा है। हाल ही में संसद में पेश किया गया 130वां संविधान संशोधन बिल-2025 भी इसी तरह के बहस का केंद्र बन गया है। यह बिल राजनीतिक और सामाजिक दोनों ही स्तर पर चर्चित है, और आम जनता में इसे लेकर जिज्ञासा भी बनी हुई है।
130वां संविधान संशोधन बिल-2025 क्या है?
बुधवार, 20 अगस्त 2025 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में तीन बड़े बिल पेश किए:
- 130वां संविधान संशोधन बिल 2025
- गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज संशोधन बिल 2025
- जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल 2025
इन बिलों को अभी पास नहीं कराया जाएगा, बल्कि संसद की सेलेक्ट कमेटी को भेजा जाएगा ताकि इनके हर पहलू पर विस्तार से विचार हो सके।
130वां संविधान संशोधन बिल खास तौर पर मंत्रियों की जवाबदेही और नैतिकता बढ़ाने के उद्देश्य से लाया गया है। इसके मुताबिक, यदि कोई केंद्रीय या राज्य मंत्री, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री किसी गंभीर आपराधिक मामले में गिरफ्तार होते हैं—जिसमें कम से कम पांच साल की जेल हो सकती है—और उन्हें लगातार 30 दिन हिरासत में रखा जाता है, तो 31वें दिन उन्हें पद से हटा दिया जाएगा।
इससे पहले प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या अन्य मंत्री गिरफ्तारी या जेल जाने के बावजूद पद पर बने रह सकते थे। उदाहरण के लिए, अरविंद केजरीवाल 156 दिन तिहाड़ जेल में रहने के बावजूद दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहे। झारखंड के हेमंत सोरेन और तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी भी जेल में रहते हुए अपने पद पर बने रहे।
सरकार और विपक्ष की प्रतिक्रिया
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “जनता का भरोसा बनाए रखना लोकतंत्र की आत्मा है। अगर कोई मंत्री संदेह के घेरे में है, तो उसे पद छोड़ना ही चाहिए।” वहीं, विपक्षी नेता ममता बनर्जी ने इसे इमरजेंसी जैसी स्थिति से जोड़ते हुए कहा कि यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक मिसाल बन सकता है और सत्ता इसका गलत इस्तेमाल कर सकती है।
संविधान संशोधन का इतिहास
भारत में पहला संविधान संशोधन 1951 में हुआ था। उस समय जमींदारी उन्मूलन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से सरकार को झटका लगा था। पहला संशोधन 18 जून 1951 को लागू हुआ और इसमें जमींदारी उन्मूलन की कानूनी सुरक्षा, अभिव्यक्ति की आजादी पर ‘यथोचित प्रतिबंध’, और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण शामिल था।
इसके बाद कई महत्वपूर्ण संशोधन हुए हैं, जिनमें विवाद भी रहा और दूरगामी असर भी पड़ा:
- 42वां संशोधन (1976): इमरजेंसी के दौरान आया, संविधान में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े।
- 44वां संशोधन (1978): इमरजेंसी के दुरुपयोग को रोकने के लिए संपत्ति के अधिकार में बदलाव।
- 73वां (1992) और 74वां संशोधन (1992): पंचायती राज और स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा।
- 86वां संशोधन (2002): 6-14 साल के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा।
- 91वां संशोधन (2003): मंत्रिपरिषद के आकार को सीमित किया और दल-बदल रोकने के कानून को मजबूत किया।
- 93वां संशोधन (2005): OBC के लिए शिक्षा में आरक्षण।
- 101वां संशोधन (2016): GST लागू किया।
- 103वां संशोधन (2019): आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10% आरक्षण।
- 104वां संशोधन (2020): SC/ST आरक्षण की समयसीमा बढ़ाई।
130वां संशोधन की खास बातें
इस बिल के अनुसार, यदि कोई केंद्रीय या राज्य मंत्री किसी गंभीर अपराध—जैसे भ्रष्टाचार, हत्या, बलात्कार, आतंकवाद, मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स—में 30 दिन से अधिक हिरासत में रहता है, तो वह पद पर नहीं रह सकता। इसे स्वतः लागू किया जाएगा और यदि कोर्ट बरी कर देता है तो मंत्री दोबारा पद पर लौट सकता है। यह अनुच्छेद 75 (केंद्र), 164 (राज्य) और 239AA (दिल्ली) में बदलाव करेगा।
संविधान विशेषज्ञ प्रो. फैजान मुस्तफा के अनुसार, “यह बिल नैतिक राजनीति की दिशा में बड़ा कदम है, लेकिन इसके गलत इस्तेमाल की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।” इतिहास गवाह है कि संविधान में बदलाव शुरुआत में विवादों के साथ आते हैं, लेकिन दूरगामी प्रभाव से देश की दिशा तय होती है।
`